Monday, 25 November 2019

नरवराश्रम की कहानियां

उसने अपनी संपूर्ण छात्रावस्था एक ही गुरुकुलाश्रम में रहकर  गुजारी - प्रथमा से लेकर आचार्य तक।
लेकिन कुछ ऐसे भी विद्यार्थी थे, जिन्होंने मध्यमा के 2 साल बाबा के यहां गुजारे , 2 साल बिहारघाट , 2 साल कर्णवास, 2 साल रामघाट , शास्त्री बनारस के किसी आश्रम से की , और आचार्य हरिद्वार के किसी आश्रम से ।

उससे ऐसा नहीं हुआ।
यद्यपि बहुत बार ऐसी परिस्थितियां आईं कि लगा कि उसे अब यह नरवराश्रम छोड़ना पड़ेगा, लेकिन फिर भी वह यथा-तथा वहीं रहते रहे !

जो एक आश्रम से दूसरे आश्रम में जाने वाले बहुत से छात्र थे , उनसे जब पूछा जाता था कि आप इतने आश्रमों की अदला बदली क्यों करते हैं , तो वे कहते थे - आश्रमाद् आश्रमं व्रजेत् ।
वे यह नहीं जानते थे कि इस पंक्ति का अर्थ अलग है।

जो आज स्वामी मनोजानंद सरस्वती हैं, वो भी उनमें से एक थे ।
उन्होंने भी कई आश्रमों पर अदला-बदली की थी ।
पहले वे मखलानंद बाबा के आश्रम  पर रहते थे ,
उसके बाद सीतारामबाबा के आश्रम में जाकर रहने लगे , उनसे ही कुछ मंत्र विद्या के गुर सीखे ।
उसके बाद ननुआ चपरासी के आश्रम में जाकर रहने लगे ।
कभी-कभी वह हनुमान मन्दिर के आश्रम में भी देखे जाते थे ।
जहां के स्वामी जी से उनकी बड़ी घनिष्ठता थी ।
और कर्णवास वाले विशिष्टानंद जी उनको अपना खास शिष्य मानते थे।

विजया-पान, शुष्कविजयापत्रीधूमग्रहणादि  अनेक क्रियाएं विशिष्टानंद जी अपने शिष्य मनोजानंद जी के साथ ही किया करते।
एक बार नरवर से साइकिल चला-चला कर के स्वामी कटारानंद भी कर्णवास जब पहुंचे,
तो उन्होंने देखा कि विशिष्टानंद स्वामी जी के आश्रम पर ही स्वामी मनोजानंद जी बैठे हैं जो कि उनके परम मित्र थे
फिर क्या था !
दोनों वहां स्थित विजयौषधवृक्षों की तरफ गए !
एवं मर्दितविजयापत्रधूमसेवन के द्वारा उन्होंने उस शाम को और कुछ ज्यादा रंगान्वित किया,
एवं फिर दोनों एक ही साइकिल पर बैठकर  नर्वराश्रम आ गए ।

उस समय चरवाहे अपनी बकरियों को लेकर अपनी मंज़िल की तरफ लौट रहे थे।

कटारानंद साइकिल चला रहे थे और स्वामी मनोजानंद जी पीछे बैठे हुए थे ।

कटारानंद ने उनसे बताया कि कल मैंने जिस जजमान का पूजन कराया , उसने गणेशपूजन में ही कम से कम डेढ़ सौ रुपए चढ़ा दिए थे।
मनोजानंद जी बोले- " हमें भी एक बार प्रबलजीमहाराज के यज्ञ में ले चलो " , वृंदावन, कर्णवास, बनारस , सब  विद्यार्थी उसमें जाते हैं , लेकिन हमारा तो सूची में नाम ही नहीं आता।

कटारानंद ने कहा- अजीब बात है ! कोई तो जान-बूछ कर यज्ञ में जाता नहीं है , और जो जाना चाहता है ,उसका सूची में नाम नहीं है !

मनोजानंद आश्चर्य से बोले - "ऐसा कौन है जो वहां पर जाना नहीं चाहता",
श्यामबाबा के आश्रम पर जो रहते हैं - स्वामी धर्मानंद ,
वे कभी जाते नहीं !
क्योंकि उनके द्वारा  अनेक अनुष्ठानकारक यजमान अर्जित किये गये हैं।

विजयापत्रीधूमसेवन के बाद भी स्वामी मनोजानंद इस बात से उदास हो गए थे ,कि हमारा नाम यज्ञ की बनाई की लिस्ट में नहीं है ।

वे दोनों साइकिल चलाते-चलाते कॉलोनी के गेट पर पहुंच गए थे , तभी उन्होंने देखा कि सामने से कंधे पर झोला लटकाए स्वामी प्रतीकानंद आ रहे हैं !
स्वामी प्रतीकानंद मूल रूप से राजस्थान के रहने वाले थे ,
लेकिन अपने वैरागी स्वभाव के कारण इस अल्प आयु में उन्होंने स्वामित्व धारण कर लिया था और बाबा की शरण में दीक्षा लेकर नर्वराश्रम में वास किया।

स्वामी कटारानंद भी यद्यपि राजस्थान के ही मूलनिवासी थे,  लेकिन वरिष्ठता के मामले में कटारानंद  प्रतीकानंद से काफी ज्यादा थे।

दोनों एक ही नरवराश्रम में रहने के कारण बड़ा ही प्रेम मानते थे।

शिष्टाचार प्रणाम के बाद स्वामी मनोजानंद का उतरा हुआ चेहरा देखकर प्रतीकानंद ने पूछा- "स्वामी ! तुम्हारी उदासी का कारण क्या है ?
वे बोले - ना तो मुझे कोई भंडारों में बुलाता है और ना ही प्रबलजीमहाराज की यज्ञ की लिस्ट में मेरा नाम कभी रहता है!

प्रतीकानंद ने कहा -
"महात्मा तुम मत होओ जरा भी उदास ,
कल फिर भंडारा होगा - आत्मानंद आश्रम के पास!"

स्वामी प्रतीकानंद की इस वाणी को  सुनकर, स्वामी मनोजानंद जी एक विशिष्ट आनंद से भर उठे,
और उन्होंने रात्रि में भोजन ना करने की ठानी , क्योंकि अगले दिन बहुत ज्यादा भोजन करने की उनकी इच्छा थी।
अभी अपनी झोपड़ी पर करेंगे क्या ?साग-पात उबालकर खाएंगे!
अगले दिन भंडारे में खीर और पूड़ी और गोभी की सब्जी भी मिलेगी ,
इसलिए प्रतीकानंद की सुनाई हुई इस शुभ सूचना के कारण मनोजानंद की यह शाम काफी अच्छीे हो गई थी।

.......
......

एक ठंडी रात !
मनोजानंद के पास सिर्फ एक हल्का सा कंबल ही था जो कि 5 साल में काफी झीना हो गया था,
स्वामी विशिष्टानंद जी ने न जाने कितनी बार उनसे कहा था कि हमसे कंबल ले लो , लेकिन मनोजानंद जी  अपने गुरु से कंबल लेना नहीं चाहते थे , क्योंकि वे जानते थे कि गुरुजी के पास तो खुद ही एक कंबल है!

रात के 12:00 बजते-बजते स्वामी मनोजानंद की नींद खुल गई !
बाहर उनकी झोपड़ी के आसपास कुछ कुत्ते भी भौंक रहे थे ।
स्वामी मनोजानंद ने रात में भोजन भी नहीं किया था, इसलिए भी अपनी झोपड़ी से बाहर निकले और आसपास से कुछ कागज लकड़ी वगैरह इकट्ठा किए ।
और आग  जला कर बैठ गए और उस पर हाथ तापने लगे, कुछ कुत्ते भी उनके पास आकर ही बैठ गए!
वहां के कुत्ते  भी स्वामी जी से बड़ा प्रेम मानते थे , क्योंकि स्वामी जी स्वयं भूखे पेट रहकर भी अपना भोजन कुत्तों को ही खिला दिया करते थे।
............
......
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✍✍✍
स्वामी मनोजानंद जी साइकिल में तेज-तेज पेंडल मार रहे थे और जल्दी से जल्दी भंडारे में पहुंचने की कोशिश में थे ।
और आखिरकार वे आत्मानंद आश्रम पहुंच ही गए।

वहां उन्होंने देखा कि पहले से भी बहुत से महात्मा भंडारा-प्रसादी के लिए वहां आए हुए हैं ,
और "हर हर महादेव शंभो, काशी विश्वनाथ गंगे" भजन को गा रहे हैं ।
उनमें से कोई महात्मा निरंकारी परंपरा का था, कोई निर्मोही एवं कोई जटाधारी और बहुत से दंडी स्वामी भी थे।
कुछ उन महात्माओं के बीच सफेद वस्त्र धारण करने वाले नैष्ठिक ब्रह्मचारी लोग भी थे। उनमें से अधिकतर महात्मा 50 से ऊपर की उम्र के बूढ़े थे !
लेकिन 10-15 महात्मा कम उम्र के भी थे।

उन्होंने ज्यादातर गेरुआ, लाल, पीले एवं सफेद वस्त्र धारण कर रखे थे।
स्वामी मनोजानंद जी ने भी एक पीले रंग का कुर्ता और गेरुआ रंग का कटिवस्त्र पहन रखा था ।
उनके कंधे पर उनका एक पुराना झोला लटका हुआ था , जिसमें वे हमेशा अपना एक चिलम और चिमटा रखते थे।

उनके गले में अपने गुरु की दी हुई तुलसी-माला हमेशा ही पड़ी रहती थी।
और माथे पर लगा रहता था - गंगाजी की मिट्टी का तिलक!

मनोजानंद ने भी अपना कमंडल वही रख दिया और चिमटा बजा बजाकर , वे भी इस भजन को गाने लगे।

फिर भंडारा खाने के बाद उन्होंने देखा तो स्वामी कटारानंद उनकी तरफ बढ़े चले आ रहे थे।
उन्होंने कहा - श्रीप्रबलजी महाराज के यज्ञ की लिस्ट में इस बार तुम्हारा भी नाम है ,
और यह यज्ञ, इस बार कुंभ के मेले हरिद्वार में होगा।
एक साथ दो-दो खुशी मनोजानंद जी सहन नहीं कर पाए और वे वहीं नाचने लगे !
अपने मित्र और गुरुभाई मनोजानंद की प्रसन्नता को देखकर कटारानंद बहुत खुश हुए।

इतने में आश्रम के अंदर से निकलकर स्वामी प्रतीकानंद आए जिन्होंने गोभी की सब्जी कुछ ज्यादा खा ली थी !
स्वामी मनोजानंद ने चूंकि रात में भी भोजन नहीं किया था , इसलिए उन्होंने  ३५ कुल्हड़ खीर पी ली थी, इसलिए वे जल्दी से जल्दी अपनी झोपड़ी पर पहुंचकर विश्राम करना चाहते थे !
स्वामी कटारानंद बोले - मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूंगा ।
इसलिए साइकिल की पिछली सीट पर स्वामी कटारानंद बैठे!
  इस बार साइकिल चलाने की बारी थी मनोजानंद की!
प्रतीकानंद अपने दूसरे महात्मा साथियों के साथ पैदल-पैदल ही श्यामबाबा के आश्रम की तरफ बढ़ गए, क्योंकि इस समय उनका निवास वहीं था!

......

.............

.....................................ज़ारी है।

१०/२६ पूर्वाह्ण, मंगलवार।
२६ नवंबर २०१९

Sunday, 10 November 2019

दीपावली श्लोक २०१४, हिमांशु गौड

मायूरनाभसनिभं परिलोक्य हृद्यं
हारित्यसम्भृतवनानि तरूंस्तथार्द्रान्।
प्राभातिके शरदि दीपवदुत्सवेऽस्मिन्
श्रीवर्षिसौख्यवनितारमणं च नस्स्यात्॥

भावार्थ :

मोर जैसे नीले रंग की आकाश की हृत्प्रिय आभा को देखकर और हरियाले जंगलों को देखकर तथा भीगे वृक्षों को देखकर ,
आज मैं इस शरद ऋतु में , सुबह के समय दिवाली के दिन कामना करता हूं कि लक्ष्मी की वर्षा करने वाला सौख्य रूपक योषिद्रमण हमें प्राप्त हो ।

Seeing the lovely glow of the blue sky like peacocks, and seeing the green forests and the soaked trees,
Today, in this autumn, in the morning, on the day of Diwali, I wish that we get the happiness of rain of wealth.

#dr.himanshu_gaur

Dr.Himanshu Gaur

Writing date:
Diwali, 25/10/2014

Saturday, 2 November 2019

Free book publishing by True Humanity foundation



You can publish your book for free
Connecting with the True Humanity foundation!
Yes!
Our organization promotes such writers, who write on subjects related to humanity and human welfare.
And writes on many aspects of Indian culture or is related to Sanskrit language.
For budding writers who want to publish their book,
Or even the old writers who want to publish any book on nationalism, humanism, global unity, cultural diversity of any kind, can also be contacted on the website of our organization.
People of Sanskrit, poets, writers are given special facility in publishing the book.
http://www.truehumanityngo.com/




True Humanity foundation द्वारा फ्री में पुस्तक प्रकाशित कराएं



अपनी पुस्तक फ्री में प्रकाशित करा सकते हैं
True Humanity foundation से जुड़कर!
जी हां !
हमारी यह संस्था ऐसे लेखकों को प्रमोट करती है , जो शैक्षिक, स्वास्थ्य,पर्यावरण,मानवता एवं मानवता कल्याण संबंधी विषयों पर लिखते हैं ।
एवं भारतीय संस्कृति के अनेक पक्षों पर लिखते हैं या फिर हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत आदि भाषाओं से संबंधित है।
ऐसे नवोदित लेखक जो अपनी पुस्तक प्रकाशित करना चाहते हैं ,या पुराने लेखक भी, जो अपने किसी भी प्रकार की राष्ट्रवाद मानववाद वैश्विक एकता सांस्कृतिक विविधता संबंधी कोई भी पुस्तक प्रकाशित करवाना चाहते हैं , तो भी हमारी संस्था की वेबसाइट पर संपर्क कर सकते हैं।
संस्कृत के लोगों को, कवियों को, लेखकों को पुस्तक प्रकाशित करने में विशेष सुविधा दी जाती है।


Friday, 1 November 2019

संसार का सबसे बड़ा भारतीय और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र, ऋषियों का शोध

संसार का सबसे बड़ा भारतीय और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का शोध )



■ क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 76 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )
सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।
तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।
चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।
पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।
छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।
सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।
आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।
नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।
दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।
उक्त जानकारी शास्त्रोक्त  आधार पर... हैं ।
#श्री राम

संस्कृत क्षेत्र में AI की दस्तक

 ए.आई. की दस्तक •••••••• (विशेष - किसी भी विषय के हजारों पक्ष-विपक्ष होते हैं, अतः इस लेख के भी अनेक पक्ष हो सकतें हैं। यह लेख विचारक का द्र...