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Showing posts from April, 2020

श्री शिव महिम्न स्तोत्र

श्रीशिव महिम्नः स्तोत्रं ****** श्रीशिव महिम्न: स्तोत्रम् ******** शिव महिम्न: स्तोत्रम शिव भक्तों का एक प्रिय मंत्र है| ४३ श्लोकों के इस स्तोत्र में शिव के दिव्य स्वरूप एवं उनकी सादगी का वर्णन है| स्तोत्र का सृजन एक अनोखे असाधारण परिपेक्ष में किया गया था तथा शिव को प्रसन्न कर के उनसे क्षमा प्राप्ति की गई थी | कथा कुछ इस प्रकार है … एक समय में चित्ररथ नाम का राजा था| वो परं शिव भक्त था| उसने एक अद्भुत सुंदर बागा का निर्माण करवाया| जिसमे विभिन्न प्रकार के पुष्प लगे थे| प्रत्येक दिन राजा उन पुष्पों से शिव जी की पूजा करते थे। फिर एक दिन … पुष्पदंत नामक के गन्धर्व उस राजा के उद्यान की तरफ से जा रहा था| उद्यान की सुंदरता ने उसे आकृष्ट कर लिया| मोहित पुष्पदंत ने बाग के पुष्पों को चुरा लिया| अगले दिन चित्ररथ को पूजा हेतु पुष्प प्राप्त नहीं हुए | पर ये तो आरम्भ मात्र था … बाग के सौंदर्य से मुग्ध पुष्पदंत प्रत्यक दिन पुष्प की चोरी करने लगा| इस रहश्य को सुलझाने के राजा के प्रत्येक प्रयास विफल रहे| पुष्पदंत अपने दिव्या शक्तियों के कारण अदृश्य बना रहा। और फिर … राजा चित्ररथ...

दान देने और पूजा-पाठ करने में कुछ विशेष सावधानियां : आचार्य हिमांशु गौड़

१.दान हमेशा पात्र को देना चाहिए (मतलब जो दान में दिए हुए धन आदि का दुरुपयोग ना करें और शास्त्र विहित कर्म से युक्त हो)। २.दान बहुत ही नम्रता पूर्वक देना चाहिए, अभिमान पूर्वक या अपमान करके दिया हुआ दान बहुत ही निष्फल एवं पाप-पूर्ण हो जाता है ! ३.अपने दिए हुए दान का कभी भी बखान नहीं करना चाहिए , क्योंकि अपने किए हुए सत्कर्म को कहने मात्र से ही उसका फल नष्ट हो जाता है । ४.अपनी भजन-पूजा ज्यादा लोगों को बताना नहीं चाहिए या दिखाना नहीं चाहिए, क्योंकि उससे अपने तपस्वी होने का अभिमान जगता है , और अपने जप-तप को किसी से बताने से भी उसका पुण्य फल नष्ट होता है। ५. जहां तक संभव हो पूजा-पाठ शास्त्र की विधि के अनुसार ही करना चाहिए क्योंकि जो शास्त्र की विधि को छोड़ता है और मनमानी पूजा करता है उसको कोई फल प्राप्त नहीं होता। ६. जो भी कहता है कि श्रद्धा होनी चाहिए विधि विधान का क्या है, तो वे लोग गीता के श्लोक को याद रखें कि श्रद्धा विश्वास तो है ही , साथ में विधि-विधान भी होना चाहिए (यश्शास्त्रविधिमुत्सृज्य....) । **** आचार्य हिमांशु गौड़

मनुस्मृति में मांस खाने का निषेध : डॉ हिमांशु गौड़

****** यावन्ति पशुरोमाणि तावत्कृत्वो ह मारणम् ।  वृथापशुघ्नः प्राप्नोति प्रेत्य जन्मनि जन्मनि ॥ ******** एक पशु की हत्या करने पर, जानवर के शरीर में जितने रोएं होते हैं, उतने जन्म तक वह मारने वाला पशु बनता है। *********  नाकृत्वा प्राणिनां हिंसां मांसमुत्पद्यते क्वचित्। न च प्राणिवधः स्वर्ग्यस्तस्मान्मांसं विवर्ज्जयेत् ॥ ********* प्राणी को मारे बिना मांस नहीं प्राप्त होता, और प्राणी हत्या कभी भी स्वर्ग देने वाली नहीं, इसलिए मांस कभी भी नहीं खाना चाहिए। ********  समुत्पत्तिञ्च मांसस्य वधबन्धौ च देहिनाम् ।  प्रसमीक्ष्य निवर्त्तेत सर्व्वमांसस्य भक्षणात् ॥ ***** इसलिए जो नरक में नहीं जाना चाहते, जो पशु योनि में नहीं जाना चाहते वे लोग बिल्कुल भी मांस न खाएं। *******  मनुस्मृति/पंचम अध्याय

छंदों का स्वरूप एवं परिचय: हिमांशु गौड़

छन्द स्वरूप : अति सरल रूप में