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Showing posts from November, 2023

गुरु कैसा हो, कविता

 ।। गुरु-पूर्णिमा (गुरु कैसा हो)।। ******* वही तो है जो तप में तपता , विप्रवंश का अभिमानी वही शंभु की माला जपता, दिव्यतांश का सम्मानी वही बना जाता कैसे हैं , तुमको आज बताता हूं नये-नये,शास्त्रों के करतब, तुमको आज सिखाता हूं ।।१।। उससे पहले मुझे बताओ मेरे शिष्य बनोगे क्या? अपने भीतर तेज-पुंज का दिव्याकाश जनोगे क्या? अगर तुम्हें मंज़ूर निमंत्रण शास्त्रों के उपदेष्टा का ! आमंत्रण मंजूर अगर हो शैव-मार्ग-प्रवेष्टा का!!२!! अगर जगत् के सर के ऊपर अपना नाम लिखाना है ताकत का यदि इस दुनिया को उज्ज्वल धाम दिखाना है, तो आओ फिर मेरी दीक्षा, अपने दिल में धारो तुम  शास्त्र वचन सुनने से पहले, मन भोगों से मारो तुम।।३।। तो आओ फिर तुमको लेकर चलता हूं मैं उस पारे जहां देवता ओंकार की ध्वनि को कंठों में धारे बैठे जहां त्रिपुण्ड्र लगाए शिवशंकर वे त्रिपुरारी गरुड़ध्वज है जहां बिराजे भक्तों के अभयंकारी।।४।। चिंतन के ही मार्ग पकड़ कर क्षण में जाते भक्त जहां, मंथन करके बुद्धि का जाते तत्वों में सक्त जहां, और कहो तो उससे भी, आगे जो लोक प्रतिष्ठित हैं , ब्रह्मलोक की आभा में ही , आत्मतत्व परिनिष्ठित हैं।।५।...