Saturday, 22 August 2020
।। आचार्य हिमांशु गौड़ के संस्कृतकाव्यों में गणेशस्तुति ।।
।। आचार्य हिमांशु गौड़ के संस्कृतकाव्यों में गणेशस्तुति
।।
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मेरे अभी तक
लिखे लगभग १५ काव्यों में (१० प्रकाशित और ५ अप्रकाशित) प्रत्येक में प्रायः भगवान् गणेश की वन्दना या उल्लेख किया
गया है । तथा अलग से श्रीगणेशशतकम् तो लिखा ही है । इसमें अनेक छन्द हैं, १०१
श्लोक हैं । जो लोग गणेशशतकम् प्राप्त करना चाहते हैं, वे True Humanity Foundation,Ghaziabad की वेबसाइट पर ईमेल करके मंगवा
सकते हैं । गणेशशतकम् में भक्तिभाव का प्रामुख्य है । इसमें किस स्तर के श्लोक
हैं, यह आप , इन कुछ अधोलिखित श्लोको से जान सकते हैं, ऐसा नहीं है, क्योंकि इसे
लिखने में मुझे ६ वर्ष लगे, २०१५ में लिखना शुरु किया था, अतः इसका प्रत्येक श्लोक
एक नए भाव के साथ अपने स्वरूप का आपके हृदय में विस्तार करता हुआ गणेशायमान होगा ।
गणेशशतकम् के
कुछ श्लोक -
भक्तिभ्राजितलोकशोकहरणस्संलोक्य
मज्जीवनम्
दन्तिन्! ब्राह्मणबालकस्य तनुतां भूयो महामङ्गलम्
सद्यो
विघ्नगणान् विनश्य गणराट्! सम्राड्जनं मां कुरु
यस्माद्यौवनपुष्पसौरभमनास्स्यां
त्वत्समर्चाकरः।। २२।।
भक्ति से शोभित लोगों का शोक आप ही हरण करते हैं ! दन्तिन् !
आप (मुझ) ब्राह्मण-बालक
के जीवन पर दृष्टिपात करके मेरा महान् मङ्गल करो । हे गणराज! बहुत जल्दी ही मेरे सभी
विघ्नों को नष्ट करके मुझे सम्राट्
बनाओ ! जिससे मैं यौवन के पुष्पों की सुगन्धि से सुगन्धित
मन वाला होकर आपकी ही पूजा-अर्चना
करने में लग जाऊं ।।२२।।
मखोद्भूतधूमैस्सदा
तुष्टिमन्तं
सुमन्त्रैस्तथा
श्रद्धया हृष्टिमन्तं
मधून्यापिबन्तं
घृतैरिष्टवन्तं
गणेशं हि
होमप्रियं भावयाम: ।।२३।।
यज्ञ
से उठते हुए धुँएं की सुगन्ध
से सदा ही सन्तुष्ट
होते हैं ! ब्राह्मणों के
श्रद्धा-युक्त उच्चारित
वेद-मन्त्रों को सुनकर जो बहुत ही हर्षित होते
हैं ! जब घी और
शहद से उनके नाम की आहुति हवन-कुण्ड
में
पड़ती है, तो वे
घी और शहद को पीते हुए बहुत ही खुश होते हैं, और
आशीर्वाद देते हैं । ऐसे गणेशजी को हवन बहुत ही प्रिय है । मैं उनकी भावना अपने मन में करता
हूं ।।२३।।
सुगन्धिप्रियं
रक्तगन्धानुलिप्तं
समृद्धौ च
सिद्धौ हृदा सक्तिमन्तं
सहस्रैस्सदाख्यैर्जलैश्चाभिषिक्तं
विविक्तं
विवृद्धिप्रदं पूजयाम:।।२४।।
भगवान्
गणेश को पुष्पों तथा
इत्रों की सुगन्धि
बहुत ही प्रिय है । उनका शरीर लाल
चन्दन से
चर्चित है । ऋद्धि
और सिद्धि में अपनी हार्दिक भावनाओं से आसक्त
हैं । सहस्र नामों
से ब्राह्मण लोग उनका अभिषेक करते हैं । वे
गणेशजी, अधिकतर एकान्त
में रहते हैं । और वही मनुष्य की प्रसन्नता में वृद्धि करते हैं । सम्पत्ति बढ़ाते हैं । आज हम सब उनका
ही पूजन कर रहे हैं ।।२४।।
यदा नृत्यकाले
क्वचिद्ब्रह्मभाण्डे
स्वशुण्डं परिभ्रामयेद्वक्रतुण्ड:
तदा
तारकाश्चन्द्रनक्षत्ररूपा:
क्षिपन्ति द्रुतं
तत्प्रहारेण दूरम् ।।२६।।
जब कभी इस ब्रह्मांड में
नाचते-नाचते वे वक्रतुण्ड, अपनी सूण्ड
को इधर-उधर घुमाते हैं, तब ये तारे, ये चन्द्रमा
और ये नक्षत्र,
उस सूण्ड के प्रहार से खण्ड-खण्ड होकर दूर-दूर
जा गिरते हैं ।।२६।।
क्वचिन्मेघरूपैर्महावृष्टिरूपः
क्वचित्सूर्यरूपैर्महातापयुक्त:
क्वचिद्वा
हिमांशूयते शीतरश्मि:
क्वचित्पुष्पराशौ
सुगन्धायतेऽसौ ।।२७।।
बादलों के रूप में वे ही कभी इस संसार में महावृष्टि करते
हैं! कभी सूर्य के रूप में वे ही
महान् ताप से युक्त रहते हैं,और
कभी चंद्रमा बनकर, वे ही
शीतल किरण बरसाते हैं, तथा कभी फूलों में सुगन्धि बनकर वे ही
महकते हैं ।।२७।।
क्वचिद्वा समष्टीयते
लोकरूप:
क्वचिद्व्यष्टिरूपैश्चरेद्ब्रह्मरूप:
श्रुतिस्मार्तशास्त्राक्षरैर्लक्ष्यते
वा
पुराणादिलेखङ्करं तं
नमाम: ।।२८।।
कहीं
इस संसार के समष्टि-रूप में वे ही हैं, कहीं व्यष्टि-रूप
में विराजमान हैं । कहीं
ब्रह्मरूप होकर वे गणेशजी ही घूमते हैं। वेद, शास्त्र,
स्मृतियां और पुराण - इनके
अक्षरों में वे गणेशजी ही लक्षित होते हैं ।
पुराणों लिखने वाले उन गणेश जी को हम नमस्कार करते हैं ।।२८।।
मेरे अन्य
काव्यों में भी बहुलता से गणेशजी की स्तुति का प्रयोग हुआ है,जिनमें से किञ्चित्
मात्र का उल्लेख यहां कर रहा हूँ –
भावश्रीः ग्रन्थ में गणेशस्तुति –
कृत्वा
प्रणाममथ शैलसुतासुतं तं
श्रीमच्छिवस्य
तनयं शुभदं गणेशम्
नश्यन्ति यस्य
कृपया सकलापदाश्च
बाबागुरोश्चरणयोः
विनिवेदयामि।।१।।
भावश्रीः,बाबागुरवे लिखितपत्रे – पृष्ठ.सं. -६,
ये नैव च प्रतिदिनं गणपं स्मरन्ति
तत्रैव एम्.चन्द्रशेखरमहोदयाय लिखितपत्रे,३६ पृ.
शिवपुत्रं गजास्यं तं
मूषके राजितं गुरुम् ।
अङ्कुशाभयशङ्खाढ्यं मोदकात्तं शुभप्रदम् ।।४५।।
तत्रैव जैनेन्द्रभारद्वाजाय लिखितपत्रे, पृ.सं. - ८८
इत्यादि बहुत
स्थलों पर भावश्रीः में गणेश-स्तुति है ।
वन्द्यश्रीः –
नामं नामं गणपतिपदं नीतवान् लड्डुकानि - ३९
पृ.
गणपनृत्यमिवार्थकरं महद् – पृ. ४४
गङ्गागोगणनाथगीर्गुरुगतङ्गोविन्दगीताङ्गिनम्, ७५ पृ.
इत्यादि ।
काव्यश्रीः –
श्रीगणेशस्स्वलोकाज्जनाँल्लोकयन्
दिव्यदृश्योऽप्यदृश्यो जगद्ध्वान्तहो
नृत्यकाले स शुण्डं परिभ्रामयन्
नव्यसृष्टेर्दिने वक्ति दुर्गार्चनम् ।।१।।
-
काव्यश्रीः छन्दोबद्धकाव्यवल्लर्यां - पृ.२
गणपतिपूजां लक्ष्मीपूजनं करोतु चास्यां श्रद्धया,
शास्त्रविधिं ज्ञात्वा विद्वद्भिः, करोतु
मोदिन्! निष्ठया,
दीपावली स्वागता----।।१।।
काव्यश्री-गीतवल्लर्यां - ४४ पृ.
ध्येयो
धूम्रवपुर्गणेशभगवान् लोकस्य सोऽस्त्येकराट्
-तत्रैव ८४ पृ. मण्डूकमोदकाव्ये प्रथमश्लोकः।
दिव्यन्धरशतकम् –
इस श्लोक में कोई ब्राह्मण दिव्यन्धर से कह रहा है कि तुम
कभी अन्धकार में भूतों के साथ रहकर और कभी प्रकाश में दन्ती(गणेश) के साथ एकात्मता
(ध्यानरूपेण हृदयावस्थितत्वात्) करके पाताल के पिशाचों की कथा मुझे सुनाते हो।
अन्धकारे
प्रभासे त्वं भूतैर्वा दन्तिना सह ।
पातालस्य पिशाचानां कथां मे कथयेः द्विज ।।३०।।
नरवरभूमिः –
या सीतेशकथाश्रया
गणपतेस्सुस्थापनोल्लासदा – श्लो. - ४१
नत्वेशं गणनायकं
हरिपदं स्कन्दं च गौरीं गिरां – श्लोकः -१५१
कलिकामकेलिः –
इसका
एक अध्याय लिखना बाकि है । इसमें अभी तक गणेशस्तुति तो नहीं, किन्तु अनेक स्थलों
पर शिवप्रार्थना अवश्य है –
कामोऽस्ति
ते प्रबलशत्रुरिमां च वार्तां जानाति को न जगति श्रितभक्तिभावः ।
भस्मीकरोसि भगवन् मदनं न चाहं शक्तोऽस्मि
सोढुमिह चास्य महाप्रभावम् ।।
-
अध्याय- ५, श्लोक -५
क्षुद्रं हि वस्तु लभते न जनोऽपि तस्मै तद्वै
महत्तरमहो भवतीति मन्ये ।
तस्यां स्थितौ निपतितस्स्मरबाणघातैः, सौख्याय
देहि भगवन् नवकामकेलीः।।
अध्याय- ५, श्लोक -९
नरवरगाथा –
यह काव्य भी अभी लिखा जा रहा है। इसमें प्रसङ्गवशात् नरवर के ब्राह्मण-वटुकों
का गणेशपूजन दिखाया गया है –
श्रीमद्गणेशसदनं
प्रविशन्ति भक्त्याऽथर्वं च भक्तिभिरहो प्रपठन्ति केचित् ।
दूर्वाङ्कुरैश्शिवसुतं
परिपूजयन्ति
विघ्नादिदोषरहितास्त्रिदिवं
प्रयान्ति ।।३०।।
नरवरगाथा-छात्रकौतुककाण्ड/प्रथमाध्याय/श्लोकः – ३०
Sunday, 2 August 2020
फिल्म – हिना । गीत – जाने वाले, ओ जाने वाले । संस्कृतम् - हे प्रयात्रिन् ! हे रे प्रयात्रिन् !

हिन्दी
|
संस्कृतम्
|
सदा न बुलबुल नगमें गाये
सदा न फसले बहारा
सदा न हुस्न जवानी रहते
सदा न सोहबतें यारा
रब जाने किस दामण के लिए
कौन सा गुल चुनता है
कहते है सच्चे दिल की
दुवाये
जल्द खुदा सुनाता
है
तेरा अल्लाह निगेहबान
तेरा मौला निगेहबान
तेरा अल्लाह निगेहबान
तेरा मौला निगेहबान ओ ओ ओ ओ………
जानेवाले ओ जानेवाले
जानेवाले ओ जानेवाले
किया तुझे हमने
किया तुझे हमने
ख़ुदा के हवाले
जानेवाले ओ जानेवाले
जानेवाले ओ जानेवाले
तेरा अल्लाह निगेहबान
तेरा मौला निगेहबान
तेरा अल्लाह निगेहबान
तेरा मौला निगेहबान
कोई मुश्किल न आये,
तेरी राहों
में
पोहंचे साथ ख़ैरियत के,
अपनी मंज़िल की बाहों में
कोई मुश्किल न आये,
तेरी राहों में
पोहंचे साथ ख़ैरियत के
अपनी मंज़िल की बाहों में
तुझे तेरी मंज़िल
तुझे तेरी मंज़िल, गले से लगाले
जानेवाले ओ जानेवाले
जानेवाले ओ जानेवाले
तेरा अल्लाह निगेहबान
तेरा मौला निगेहबान
तेरा अल्लाह निगेहबान
तेरा मौला निगेहबान
ओ ओ ओ…
यह बेलौस चाहत, यह बेदाग़ नाते
जहां में कहाँ
लोग ऐसे निभाते
तुम्हारी मुहब्बत भूला न
सकूंगा
तुम्हारा यह एहसान चुका ना
सकूंगा
दिए ज़िन्दगी के,
दिए ज़िन्दगी के तुम्ही ने उजाले
दिलवाले ओ दिलवाले
दिलवाले ओ दिलवाले
मेरा दिल न चाहे
मेरा दिल न चाहे के
तुमसे विदा ले
दिलवाले ओ दिलवाले
दिलवाले ओ दिलवाले
नायिका -
तू है दिल के करीब, दूर आँखों
से
हम तन्हाईयों में, बातें करे
तेरी यादों से
तू है दिल के करीब, दूर आँखों
से
हम तन्हाईयों में, बातें करे
तेरी यादों से
फूल से दिल पर,
फूल से दिल पर, पड़ गए छाले
जानेवाले ओ जानेवाले
सदा खुश रहे तू
सदा खुश रहे तू
ये मेरी दुआ ले
जानेवाले ओ जानेवाले
जानेवाले ओ जानेवाले
तेरा अल्लाह निगेहबान
तेरा मौला निगेहबान……
|
सदा पिकानां नो मधुगानं
सदा न वै मधुमास:
सदा युवत्वं नैव तिष्ठति
सदा न प्रियतमसङ्ग:
जानातीश एव स कस्मै
किं पुष्पं विचिनोति
उक्तं, छलरहितस्य प्रार्थनाम्
ईशस्सद्यश्शृणोति
तव शम्भू रक्षयिता,
तव
शम्भु: पालयिता
तव शम्भू रक्षयिता,
तव
शम्भु: पालयिता..... ओ ओ ओ ओ...
हे प्रयात्रिन् ! हे रे प्रयात्रिन् !
हे प्रयात्रिन् ! हे रे प्रयात्रिन् !
कृतस्त्वं मया रे!
कृतस्त्वं मया रे!
ईशार्पित एव
हे प्रयात्रिन् ! हे रे प्रयात्रिन् !
हे प्रयात्रिन् ! हे रे प्रयात्रिन् !
तव शम्भू रक्षयिता,
तव शम्भु: पालयिता
तव शम्भू रक्षयिता,
तव शम्भु: पालयिता.....
काचिन्नेयाद् विपत्तिस्-
तव मार्गे
प्राप्यो लक्ष्यस्त्वया
सौगम्येन
काचिन्नेयाद् विपत्तिस्-
तव मार्गे
प्राप्यो लक्ष्यस्त्वया
सौगम्येन
गन्तव्यं लभेस्स्वं
गन्तव्यं लभेस्स्वं, मोदेन प्रगन्त:!
हे प्रयात्रिन् ! हे रे प्रयात्रिन् !
हे प्रयात्रिन् ! हे रे प्रयात्रिन् !
तव शम्भू रक्षयिता,....
तव शम्भु: पालयिता......
तव शम्भू रक्षयिता....
तव शम्भु: पालयिता......
ओ ओ ओ…
अच्छला तव प्रीति: , पवित्रात्मबन्ध:
जगत्यां जना: क्वैवं
मिथो निर्वहन्ति
प्रेम तवैतन्न विस्मर्तुमर्हम्
न कार्तज्ञमेतच्च विस्मर्तुमर्हम्
त्वयैव प्रदत्ता:
त्वयैव प्रदत्ता: , जीवनप्रकाशा:
हृदयवन् हे! रे हृदयवन् मे
हृदयवन् हे! रे हृदयवन् मे
न वाञ्छामि त्वत्तो
न वाञ्छामि त्वत्तो
विरहतां कदापि
हृदयवन् हे! रे हृदयवन् मे
हृदयवन् हे! रे हृदयवन् मे
नायिका -
रहसि समावृण्वन्ति, ते स्मृतयो मां
त्वं हृदयस्थोसि, नेत्रतो दूर:
रहसि समावृण्वन्ति, ते स्मृतयो मां
पुष्पवद् हृदये
पुष्पवद् हृदये, घात इव जातो
हे प्रयात्रिन् ! हे रे प्रयात्रिन् !
सदा भू: प्रसन्नस्-
सदा भू: प्रसन्नस्-
त्वियं प्रार्थना मे
हे प्रयात्रिन् ! हे रे प्रयात्रिन् !
हे प्रयात्रिन् ! हे रे प्रयात्रिन् !
तव शम्भू रक्षयिता
तव शम्भु: पालयिता......
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संस्कृत क्षेत्र में AI की दस्तक
ए.आई. की दस्तक •••••••• (विशेष - किसी भी विषय के हजारों पक्ष-विपक्ष होते हैं, अतः इस लेख के भी अनेक पक्ष हो सकतें हैं। यह लेख विचारक का द्र...
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यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु: हंसा महीमण्डलमण्डनाय हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां येषां मरालैस्सह विप्रयोग:।। हंस, जहां कहीं भी धरती की शोभा ...