Skip to main content

Posts

Showing posts from December, 2020

।। जय राम-जन्मभूमि ।। हिन्दी कविता ।। डॉ.हिमांशु गौड़ ।।

।। जय राम-जन्मभूमि ।। **** सहा जिन्होंने एकवचन के लिए वनों में वास एकवचन के लिए किया राक्षसजाति का नाश एकवचनपरिनिष्ठित को जो देते हैं उल्लास उन्हीं राम का चिंतन कर मेरा ये वाक्यविलास।।१।   नहीं मात्र मानव वे हैं , साक्षात् विष्णु की मूर्ति हैं , उनकी पूजा करने से ही , सकल कामना-पूर्ति है दस अवतारों की गिनती में , इक राम रूप बतलाया है धनुष बाण लेकर जिसने दुष्टों को मार भगाया है।।२।।   हे राम! पंचशत वर्षों से यवनों ने जिसको ध्वस्त किया पावन पुण्यप्रद , जिस धरती को बाबर ने विध्वस्त किया उसी भूमि पर पुनः तुम्हारा मंदिर बनने वाला है कोटि-सनातन-धर्मधरों का भाग्य संवरने वाला है।।३।।   कितनों ने लाठी झेली और कितनों ने गोली खाई कितनों ने तो बरसों तक बस रामचरितगाथा गाई व्रत-उपवास रखे कितनों ने , कितनों नेें संकल्प किया तब जाकर ये राम जन्म भूमि पूजन संपन्न हुआ।।४।।   गजब विश्व का हाल है देखो सच को सच साबित करना कितना मुश्किल इस दुनिया में राम नाम का व्रत रखना कायर क्रूर विदेशी हन्ता , उनको तो सम्मान मिला लेकिन देखो रामलला को वर्षो...

संस्कृत श्लोक/ डॉ.हिमांशुगौड़

  ।। हरिकृपा शुभदा भज तत्पदम् ।। ****** ( केवल हरि की कृपा ही शुभ फल देने वाली है इसलिए उन्हीं के चरणों का भजन करो) ****** वदतु संस्कृतसेवक!सज्जन! क्व वयमर्थविनिश्चिनुयाम रे न तमसीव वृते जगतीह नो सुपथदर्शकतामभियाति ना ।।१।।   अरे संस्कृत के सेवक! सज्जन! आप मुझे बताओ , कि मैं किस अर्थ का (तात्पर्य का) निश्चय प्राप्त करूं ? इस अंधेरे से भरे हुए संसार में सच्चे रास्ते को दिखाने वाला मनुष्य कोई नहीं (अर्थात् दुर्लभ है) ।   अथ च शास्त्रनिषेवणमद्भुतं विविधकाव्यरसामृतपायनं शिवपथाश्रितलोकनिजीवनं स्वहितमार्गविलोकनसंश्रितम्।।२।।   शास्त्रों का सेवन करना यह तो बड़ी अद्भुत बात है ! विविध काव्य रसों के अमृत का पान करना या पिलाना , कल्याणमय पथ के आश्रित संसार में जीना , यह भी बहुत अच्छा है ! यह सब वस्तुतः अपनी ही हितकर-मार्ग युक्त , दृष्टि के आश्रित है।   न विषहीनमिदं जगदर्थितं विषयवासितजीवनयापनम् अहह रागविवर्धनमत्र वा स्वपतनाय समुद्यतनं ह वै।।३।।   अरे भाई , इस संसार से जो मांगा गया है (जगदर्थितं) वह विषहीन नहीं है (अर्थात इ...

Sanskrit Geet By Himanshu Gaur

  बिल्वपत्राणि ते चार्पयेSहं शिव! सर्वजन्मानि ते चार्पयेSहं शिव! बिल्वपत्राणि ते चार्पयेSहं शिव! किं ददामीव ते किं वदामीव ते का क्रिया चर्यतां वा मया त्वत्कृते सर्वमेवं त्वया कल्पितं शूलधृत्! किम्मयान्यद् वृथा त्वत्कृते चर्यताम्।। अश्रुपातोपि नैवाद्य मे जायते निस्सरेद् वाङ् मुखान्न स्तवायापि ते कुत्र पूजार्चना लौकिकी धीयतां मानसी भावनानां ततिर्दीयते शम्भुभालस्थचन्द्रो भवेद्दु:खहा तत्तृतीयाक्षिवह्निस्त्वरीन् सन्दहेत् तद्गलाहिश्च फुङ्कारनिक्षेपणै: सद्य आपत्तिसङ्घांश्च मे नाशयेत् तज्जटागाङ्गवारि श्रियं कल्पयेत् भोगमोक्षे स नश्शङ्कर: कल्पयेत् नीलकण्ठस्य या नीलिमा शान्तिदा सा नभोविस्तृते: कीर्तिमाकल्पयेत् व्याघ्रचर्माम्बरस्तत्कटौ भूषितो यच्छतान्नोपि वैराग्यमार्गं द्रुतम् त्वत्त्रिशूलो हरेन्नस्त्रितापं शिव! त्वद्वपुर्नश्शिवं सर्वदा कल्पताम् ।

|| श्री मङ्गलचण्डिकास्तोत्रम् ||

❤❤❤❤❤❤❤❤ ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके I ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः II पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः I दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् II मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः I ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् II देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम् I सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम् II श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् I वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् II बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम् I बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् II ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पललोचनाम् I जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् II संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे II देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने I प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः II शंकर उवाच रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके I हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके II हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके I शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके II मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले I सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलाल...

Sanskrit Kavita By Dr.Himanshu Gaur

Sanskrit Kavita by Dr Himanshu Gaur