Thursday, 10 December 2020

।। जय राम-जन्मभूमि ।। हिन्दी कविता ।। डॉ.हिमांशु गौड़ ।।



।। जय राम-जन्मभूमि ।।

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सहा जिन्होंने एकवचन के लिए वनों में वास

एकवचन के लिए किया राक्षसजाति का नाश

एकवचनपरिनिष्ठित को जो देते हैं उल्लास

उन्हीं राम का चिंतन कर मेरा ये वाक्यविलास।।१।

 

नहीं मात्र मानव वे हैं , साक्षात् विष्णु की मूर्ति हैं,

उनकी पूजा करने से ही, सकल कामना-पूर्ति है

दस अवतारों की गिनती में, इक राम रूप बतलाया है

धनुष बाण लेकर जिसने दुष्टों को मार भगाया है।।२।।

 

हे राम! पंचशत वर्षों से यवनों ने जिसको ध्वस्त किया

पावन पुण्यप्रद, जिस धरती को बाबर ने विध्वस्त किया

उसी भूमि पर पुनः तुम्हारा मंदिर बनने वाला है

कोटि-सनातन-धर्मधरों का भाग्य संवरने वाला है।।३।।

 

कितनों ने लाठी झेली और कितनों ने गोली खाई

कितनों ने तो बरसों तक बस रामचरितगाथा गाई

व्रत-उपवास रखे कितनों ने, कितनों नेें संकल्प किया

तब जाकर ये राम जन्म भूमि पूजन संपन्न हुआ।।४।।

 

गजब विश्व का हाल है देखो सच को सच साबित करना

कितना मुश्किल इस दुनिया में राम नाम का व्रत रखना

कायर क्रूर विदेशी हन्ता , उनको तो सम्मान मिला

लेकिन देखो रामलला को वर्षों तक अपमान मिला।।५।।

 

साधु संत की जय हो जो, जीते हैं केवल राम हेतु

उन वीरों की भी जय हो जो मरते हैं केवल राम हेतु

गुणी , सुधी, नेताओं,भक्तों को भी देता धन्यवाद

आदर्श-नीति-गुण-धाम-राम के मंदिर हेतु साधुवाद।।६।।

 

आज रंगों की होली है आज मनी दिवाली है

शंखनाद है चहुंओर, और बज रही ताली है

रामजन्म भूमि का पूजन , धर्म-राज्य उतरा सा है

हर्षित हैं सब जन-गण-मन, कलि में युग-त्रेता सा है।।७।।

 

सत्य सनातन धर्मनिष्ठ, चरणों में शीश झुकाते हैं

युगों युगों से, युगों युगों तक जिसकी गाथा गाते हैं

उन्हीं राम की सत्यकाम की,जन्म भूमि का पूजन है

हर्ष मनाओ दिए जलाओ, भक्तियज्ञ-आयोजन है।।८।।

 

महा भयंकर असुरों को भी खेल-खेल में जो मारें,

साधु संत की रक्षा हेतु मानव तन को जो धारें,

एक बाण से ही जो तीनों, लोकों को हर सकते हैं

सभी मनोरथ भक्तजनों के वे पूरे कर सकते हैं।।९।।

 

क्या कहूं अधिक, हे राम! तुम्हारी धरती पर ही आज पुनः

धर्मस्थापन हुआ, यथाविधि, सजा सत्य का राज पुनः

सदा रहे यह मोद, धर्म, उत्कर्ष तुम्हारी नगरी में

"जय श्री राम" सदैव गूंजता रहे अयोध्या नगरी में।।१०।।

 

यही रीत रघुवंशी की है , सदा जो चलती आई है

प्राण जाए पर वचन ना जाए, सच में ढलती आई है

सत्य धर्म में जन्म लिए श्री राम ने इसको सिद्ध किया

भावी पीढ़ी हेतु इक आदर्श मार्ग अनुबद्ध किया ।।११।।

 

मर्यादा पुरुषोत्तम सत्य धर्म के पालक, जय श्री राम

धर्म धुरंधर यज्ञनिष्ठ, दशरथ के बालक, जय श्री राम

नम्र,दयालु,कर्मनिष्ठ,प्रिय सृष्टि-सुचालक जय श्री राम

पूजा की थाली ले आओ, जोर से बोलो जय श्री राम।।१२।।

 

ध्येय,गेय,अनुमेय,ज्ञेय,विज्ञेय,भाव से उद्भासित!

वेद-शास्त्र-पुराण-वाक्य-सल्लक्षित दिव्य! परिभाषित!

सर्वतन्त्रस्वतन्त्र! मन्त्रतन्त्रान्वित!भावसमुद्भासित!

शिवमय राम! राममय शिव! वैष्णव-शैवों से प्राकाशित!!१३!!

 

भक्त-प्राण-त्राण-हित-बाण-सुधारण तेरी जयजयजय

कारण! वारण ! श्रावण ! शोकनिवारण!तेरी जयजयजय

शत्रु-विद्रावण!रावण-मारण! जगकारण!तव जयजयजय

भवनिधितारण! भयहारण! रणवीर!धीर तव जयजयजय।।१४।।

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१०:३७ रात्रि,०५/०८/२०२०, गाजियाबाद।


संस्कृत श्लोक/ डॉ.हिमांशुगौड़

 


।। हरिकृपा शुभदा भज तत्पदम् ।।

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(केवल हरि की कृपा ही शुभ फल देने वाली है इसलिए उन्हीं के चरणों का भजन करो)

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वदतु संस्कृतसेवक!सज्जन!

क्व वयमर्थविनिश्चिनुयाम रे

न तमसीव वृते जगतीह नो

सुपथदर्शकतामभियाति ना ।।१।।

 

अरे संस्कृत के सेवक! सज्जन! आप मुझे बताओ , कि मैं किस अर्थ का (तात्पर्य का) निश्चय प्राप्त करूं ? इस अंधेरे से भरे हुए संसार में सच्चे रास्ते को दिखाने वाला मनुष्य कोई नहीं (अर्थात् दुर्लभ है) ।

 

अथ च शास्त्रनिषेवणमद्भुतं

विविधकाव्यरसामृतपायनं

शिवपथाश्रितलोकनिजीवनं

स्वहितमार्गविलोकनसंश्रितम्।।२।।

 

शास्त्रों का सेवन करना यह तो बड़ी अद्भुत बात है ! विविध काव्य रसों के अमृत का पान करना या पिलाना , कल्याणमय पथ के आश्रित संसार में जीना, यह भी बहुत अच्छा है ! यह सब वस्तुतः अपनी ही हितकर-मार्ग युक्त, दृष्टि के आश्रित है।

 

न विषहीनमिदं जगदर्थितं

विषयवासितजीवनयापनम्

अहह रागविवर्धनमत्र वा

स्वपतनाय समुद्यतनं ह वै।।३।।

 

अरे भाई , इस संसार से जो मांगा गया है (जगदर्थितं) वह विषहीन नहीं है (अर्थात इस संसार की कामनाएं विषैली हैं) । विषय वासनाओं में जीवन यापन करना , इस संसार में अनुराग बढ़ाना , यह निश्चित रूप से, ऐसा ही है , जैसे अपने पतन के लिए खुद ही प्रयत्नशील होना।

 

त्यजतु नो यदि लौकिकवासना

सरतु नो यदि शम्भुपदार्चना

श्रयतु नो यदि चात्मविलोकनं

विफलतां प्रतियास्यति जीवनम्।।४।।

 

यदि लौकिक वासनाओं को नहीं छोड़ोगे , शिव के चरणों की अर्चना नहीं करोगे और आत्मविलोकन नहीं करोगे , तो भैया, जीवन तो  विफल जाएगा ही।

 

मनुजता सुकृतैर्द्विज! लभ्यते

पशुवदाचरणं चरतान्नहि

हरिकृपा शुभदा, भज तत्पदं

कुरु च सौख्यविनिश्चयमानसम् ।।५।।

 

अरे भाई, यह मनुष्यता तो बहुत ही पुण्य से प्राप्त होती है ,इस मनुष्य जन्म को पाकर पशुओं की तरह आचरण करना उचित नहीं है ।  सिर्फ हरि की कृपा ही शुभ फल देने वाली है , इसलिए उनका ही भजन करो , और उससे ही अपने मन को सुखी करो।

 

यदि शतैरपि काव्यमनश्श्रितै:

सकलजीवनमेव वियापितं

हरिविचिन्तनवर्जितमानसै:

न कवितापि तदोद्धरतात्कवीन्।।६।।

 

यदि अपने मन के आश्रित सैकड़ों काव्यों के द्वारा भी अपना पूरा जीवन बिता दिया , और हरि का चिंतन नहीं किया, तो वे कविताएं भी उन कवियों का उद्धार नहीं कर सकतीं।

 

धनमहो यशसां यदि ते चय:

सुबुधता तव बुद्धिगतास्ति चेत्

हरिदयैव , न हेतुरिहान्यथा

भज सदा सुखदं कमलापतिम्।।७।।

 

अगर आपके पास धन है , यश है , और तुम्हारी बुद्धि में विद्वत्ता है, तो यह सब सिर्फ भगवान् विष्णु की कृपा से ही है , यहां दूसरा कोई कारण नहीं है , इसलिए उन्हीं लक्ष्मीपति भगवान का भजन करो वही सभी सुख देने वाले हैं।

 

हरिचरित्रसुधापरिमग्नता

सुरसरीजलसेवनलग्नता

ह तुलसी स्वगृहे यदि रोपिता

क्व यमराट् तव दु:खकरस्तदा।।८।।

 

हरि के चरित्र रूपी अमृत में ही डूबा रहना , गंगा जी के जल के सेवन में ही लगा रहना, और तुलसी का अपने घर में बोना , यह काम मनुष्य यदि करें तो भैया , यमराज की क्या मजाल जो आपको दुख दे जाए।

 

नहि जगत्परिगाथनमश्नुहि

सदसतीव च के , न विवेत्ति य:

स परिसीदति भीतिकरे जनो

हरिसुचिन्तनवर्जितमानस:।।९।।

 

संसार की बातों पर मत जाओ , (अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करो ) क्या कर्म अच्छा है क्या कर्म बुरा है जो इस बात को नहीं जान पाता और हरि के चिंतन को छोड़ता है, वह इस भयंकर संसार में बड़ा ही पछतावा प्राप्त करता है ।

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- डॉ हिमांशुगौड:

लेखनकालो दिनाङ्कश्च - ०८:१३ रात्रौ, १८/०३/२०२०

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Wednesday, 9 December 2020

Sanskrit Geet By Himanshu Gaur

 

बिल्वपत्राणि ते चार्पयेSहं शिव!

सर्वजन्मानि ते चार्पयेSहं शिव!

बिल्वपत्राणि ते चार्पयेSहं शिव!
किं ददामीव ते किं वदामीव ते
का क्रिया चर्यतां वा मया त्वत्कृते
सर्वमेवं त्वया कल्पितं शूलधृत्!
किम्मयान्यद् वृथा त्वत्कृते चर्यताम्।।
अश्रुपातोपि नैवाद्य मे जायते
निस्सरेद् वाङ् मुखान्न स्तवायापि ते
कुत्र पूजार्चना लौकिकी धीयतां
मानसी भावनानां ततिर्दीयते
शम्भुभालस्थचन्द्रो भवेद्दु:खहा
तत्तृतीयाक्षिवह्निस्त्वरीन् सन्दहेत्
तद्गलाहिश्च फुङ्कारनिक्षेपणै:
सद्य आपत्तिसङ्घांश्च मे नाशयेत्
तज्जटागाङ्गवारि श्रियं कल्पयेत्
भोगमोक्षे स नश्शङ्कर: कल्पयेत्
नीलकण्ठस्य या नीलिमा शान्तिदा
सा नभोविस्तृते: कीर्तिमाकल्पयेत्

व्याघ्रचर्माम्बरस्तत्कटौ भूषितो
यच्छतान्नोपि वैराग्यमार्गं द्रुतम्
त्वत्त्रिशूलो हरेन्नस्त्रितापं शिव!
त्वद्वपुर्नश्शिवं सर्वदा कल्पताम् ।




Thursday, 3 December 2020

|| श्री मङ्गलचण्डिकास्तोत्रम् ||



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ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवी मङ्गलचण्डिके I

ऐं क्रूं फट् स्वाहेत्येवं चाप्येकविन्शाक्षरो मनुः II

पूज्यः कल्पतरुश्चैव भक्तानां सर्वकामदः I

दशलक्षजपेनैव मन्त्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम् II

मन्त्रसिद्धिर्भवेद् यस्य स विष्णुः सर्वकामदः I

ध्यानं च श्रूयतां ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्व सम्मतम् II

देवीं षोडशवर्षीयां शश्वत्सुस्थिरयौवनाम् I

सर्वरूपगुणाढ्यां च कोमलाङ्गीं मनोहराम् II

श्वेतचम्पकवर्णाभां चन्द्रकोटिसमप्रभाम् I

वन्हिशुद्धांशुकाधानां रत्नभूषणभूषिताम् II

बिभ्रतीं कबरीभारं मल्लिकामाल्यभूषितम् I

बिम्बोष्टिं सुदतीं शुद्धां शरत्पद्मनिभाननाम् II

ईषद्धास्यप्रसन्नास्यां सुनीलोल्पललोचनाम् I

जगद्धात्रीं च दात्रीं च सर्वेभ्यः सर्वसंपदाम् II

संसारसागरे घोरे पोतरुपां वरां भजे II

देव्याश्च ध्यानमित्येवं स्तवनं श्रूयतां मुने I

प्रयतः संकटग्रस्तो येन तुष्टाव शंकरः II

शंकर उवाच रक्ष रक्ष जगन्मातर्देवि मङ्गलचण्डिके I

हारिके विपदां राशेर्हर्षमङ्गलकारिके II

हर्षमङ्गलदक्षे च हर्षमङ्गलचण्डिके I

शुभे मङ्गलदक्षे च शुभमङ्गलचण्डिके II

मङ्गले मङ्गलार्हे च सर्व मङ्गलमङ्गले I

सतां मन्गलदे देवि सर्वेषां मन्गलालये II

पूज्या मङ्गलवारे च मङ्गलाभीष्टदैवते I

पूज्ये मङ्गलभूपस्य मनुवंशस्य संततम् II

मङ्गलाधिष्टातृदेवि मङ्गलानां च मङ्गले I

संसार मङ्गलाधारे मोक्षमङ्गलदायिनि II

सारे च मङ्गलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् I

प्रतिमङ्गलवारे च पूज्ये च मङ्गलप्रदे II

स्तोत्रेणानेन शम्भुश्च स्तुत्वा मङ्गलचण्डिकाम् I

प्रतिमङ्गलवारे च पूजां कृत्वा गतः शिवः II

देव्याश्च मङ्गलस्तोत्रं यः श्रुणोति समाहितः I

तन्मङ्गलं भवेच्छश्वन्न भवेत् तदमङ्गलम् II

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II इति श्री ब्रह्मवैवर्ते मङ्गलचण्डिका स्तोत्रं संपूर्णम् II

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संस्कृत क्षेत्र में AI की दस्तक

 ए.आई. की दस्तक •••••••• (विशेष - किसी भी विषय के हजारों पक्ष-विपक्ष होते हैं, अतः इस लेख के भी अनेक पक्ष हो सकतें हैं। यह लेख विचारक का द्र...