ए.आई. की दस्तक
••••••••
(विशेष - किसी भी विषय के हजारों पक्ष-विपक्ष होते हैं, अतः इस लेख के भी अनेक पक्ष हो सकतें हैं। यह लेख विचारक का द्रुतस्फूर्त विचार है, इस विषय पर अन्य प्रकारों से भी विचार संभव है। )
******
पिछले दशकों में किसी विद्वान् के लिखे साहित्य पर पीएचडी करते थे तब प्रथम अध्याय में उस रचयिता के बारे में जानने के लिए, और विषय को जानने के लिए उसके पास जाया करते थे, यह शोध-यात्रा कभी-कभी शहर-दर-शहर हुआ करती थी! लेकिन आजकल सब कुछ गूगल पर उपलब्ध है, आप बेशक कह सकते हैं कि इससे समय और पैसे की बचत हुई।
लेकिन इस बारे में मेरा नजरिया दूसरा भी है, उस विद्वान् से मिलने जाना, उसका पूरा साक्षात्कार लेना, वह पूरी यात्रा- एक अलग ही अनुभव है।
और अब ए.आई. का जमाना आ गया! अब तो 70% पीएचडी में किसी की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।
बेशक नयी तकनीक हमें सुविधा देती है, लेकिन कुछ बेशकीमती छीनती भी है।
आप समझ रहे हैं ना कि कोई व्यक्ति आपके ही लिखे साहित्य पर पीएचडी कर रहा है और आपकी उसको लेश मात्र भी जरूरत नहीं!
क्योंकि सब कुछ आपने अपना रचित गूगल पर डाल रखा है।
या फिर व्याकरण शास्त्र पढ़ने के लिए वैयाकरण गुरु जन की जरूरत नहीं। या फिर किसी श्लोक की सुंदर व्याख्या हेतु किसी साहित्यिक विद्वान् की जरूरत नहीं। किसी पाण्डुलिपि के टेक्स्ट को पहचानने के लिए किसी संस्कृत विद्वान् की जरूरत नहीं!
सोच कर देखिए! आपने इतनी मुश्किल से यह शास्त्र ज्ञान हासिल किया, और एक मशीन ने आकर आपके बहुत सारे रोजगार के स्रोतों को छीन कर आपको घर बैठने को मजबूर कर दिया!
यहां तक की संस्कृत का अनुवाद भी ए.आई. कर देगा! व्याख्या भी काफी हद तक कर देगा! इंसान की आवश्यकता यह मशीन खत्म कर रही है, अर्थात् इंसान को ही खत्म कर रही है!
यह किसी के लिए सुविधा है, तो किसी के लिए नुकसान भी है।
आज हजारों कर्मचारियों को एक मशीन आने पर कंपनी से बाहर निकाल दिया जाता है।
ए.आई. के अपने कुछ फायदे निश्चित हैं, तो कुछ भयभीत करने वाले नुकसान भी हैं।
संस्कृत का समग्र ज्ञान गूगल पर उपस्थित हो जाने पर कोई धूर्तमति अनधिकृत पुरुष भी दो-चार श्लोक याद कर स्वयं को विद्वान् बताता है, उसको न शास्त्र के गौरव का पता है, ना ही मर्यादा का! वह दो श्लोक कालिदास के भी सुना सकता है, और दो श्लोक बाणभट्ट, और अभिराज राजेंद्र मिश्र के !!
सुनने वाले को आधुनिक धनिक जन को लगेगा कि शायद साहित्य का विद्वान् यही है!
AI के अच्छे वर्जन से सामान्य संस्कृत का अनुवाद अब संभव है (कादंबरी आदि का तो मुश्किल है)। सुविधा की दृष्टि से यह बेशक अच्छी बात हो सकती है, लेकिन एक दूसरे नजरिए से खराब बात भी है, कि जो हिंदी से संस्कृत अनुवाद का काम करते हैं, उनके रोजगार पर असर पड़ेगा।
दूसरा अनुवाद की एप्लीकेशन उपलब्ध होने पर कोई व्यक्ति संस्कृत सीखने में इतना उत्सुक नहीं होगा।
जैसे आज अमुक शब्द में कौनसा प्रत्यय है ऐसा सर्च करने पर इसका जवाब गूगल पर आ जाता है, तब ऐसे दो-चार प्रश्नों का ज्ञान रखने वाला भी खुद को व्याकरण का विद्वान् समझ सकता है, इससे विद्वन्मन्य आधा अधूरा ज्ञान रखने वालों की संख्या में भारी बढ़ोतरी होगी।
अल्पज्ञ या आसानी से शास्त्र को हासिल करने वाला शास्त्र के गौरव की रक्षा नहीं कर सकता।
जिसको सरस्वती की गरिमा का भान नहीं, वह ज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने का भी अधिकारी नहीं है।
एक मेरे परिचित (जो संस्कृत क्षेत्र के नहीं थे) ने मेरे सामने ही एआई से वेदमन्त्र का अनुवाद किया, तथा उसमें अपनी तर्क शील बुद्धि लगाकर अर्थ का अनर्थ करने लगे, तब मैंने समझा कि वेदों का विचार करना भी सबके बस की नहीं।
असल में किसी भी मंजिल पर पहुंचने के लिए एक विशेष तरन्नुम में रहना होता है, एक अलग रंग में रंगना होता है, सब तरफ चलने वाला आदमी कहीं नहीं पहुंच पाता यह सुसिद्ध है।
इसी प्रकार यह नया तकनीक युग विचारकों को सोचने पर मजबूर कर रहा है! विद्वान् पुरुषों को चाहिए कि वे अभी आगे के युग की सम्यक् कल्पना करके, अपने साहित्यादिक क्षेत्र में कदम बढ़ाएं!
क्योंकि अभी तक संस्कृत क्षेत्र ऐसा था कि इसमें तकनीकी लोगों का बस नहीं चलता था, झक मारकर विद्वान् पुरुषों के पास आना ही पड़ता था! लेकिन आजकल स्थिति काफी बदल चुकी है, विचाणीयमेतत्!
हर हर महादेव।
******
हिमांशु गौड़
११:५४ दोपहर
१९/०१/२०२५
No comments:
Post a Comment