108 कलशो में जल भरवा दो,
इन सब जजमानों का मुंडन करवा दो ।
दिल्ली मैं नहीं मिल रही तो कोई बात नहीं,
वेणीराम गौड़ जी से रुद्री मंगवा लो
अग्नि के लिए माचिस नहीं
अपितु अरणी मंगवा लो ।
क्या तुमको पंचभू-संस्कार आता है,
बताओ यज्ञ-पात्रों में क्या क्या होता है?
जो-जो जजमान हैं उनसे प्रायश्चित करवाओ,
उनके गंजे सिर पर सतिये धरवाओ ।
जनेऊ किस किस ने पहना है
कुर्ता उतार कर दिखाए ,
जिसको तर्पण करना नहीं आता ,
उसको पंडित जी करना सिखाएं ,
स्वाहाकार किस मुद्रा में छोड़ना है ,
मंत्र को कैसे आहुति से जोड़ना है ,
समिधाओं को कैसे तोड़ना है,
नारियल कैसे फोड़ना है ,
ये सब यज्ञ के अंग हैं ,
वेदी बनाने में प्रयुक्त बहुत से रंग हैं ,
सर्वतोभद्र की चौकी सजाओ ,
यज्ञ शुरू होने से पहले शंख बजाओ,
यज्ञशाला में वर्जित है सिले हुए वस्त्र,
कूष्मांड बलि के लिए चाहिए कोई शस्त्र,
यज्ञाचार्य बुलाने को नई कार मंगाओ नहीं कोई खटारा,
उपद्रवियों के नियन्त्रण हेतु बुलवा लो नरवर से कटारा,
अगर अच्छे भोजन और दक्षिणा की व्यवस्था ना हो तो यज्ञ करवाओ ही मत,
जीवन में ब्राह्मणकष्ट रूपी पाप भरवाओ ही मत,
क्योंकि यज्ञ सर्वस्व ब्राह्मण पर ही आश्रित है
मंत्र,देवता,परंपरा सब विद्वान् पर ही संश्रित हैं,
इस कलयुग में बड़ा ही मुश्किल है ,
असली यज्ञ-धर्म को निभाना ,
विद्वान तो हैं छुपे हुए ,
ढोंगियों का है जमाना ।।
हर हर महादेव ।।
यज्ञ पुरुष भगवान की जय ।।
यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु: हंसा महीमण्डलमण्डनाय हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां येषां मरालैस्सह विप्रयोग:।। हंस, जहां कहीं भी धरती की शोभा बढ़ाने गए हों, नुकसान तो उन सरोवरों का ही है, जिनका ऐसे सुंदर राजहंसों से वियोग है।। अर्थात् अच्छे लोग कहीं भी चले जाएं, वहीं जाकर शोभा बढ़ाते हैं, लेकिन हानि तो उनकी होती है , जिन लोगों को छोड़कर वह जाते हैं । *छायाम् अन्यस्य कुर्वन्ति* *तिष्ठन्ति स्वयमातपे।* *फलान्यपि परार्थाय* *वृक्षाः सत्पुरुषा इव।।* अर्थात- पेड को देखिये दूसरों के लिये छाँव देकर खुद गरमी में तप रहे हैं। फल भी सारे संसार को दे देते हैं। इन वृक्षों के समान ही सज्जन पुरुष के चरित्र होते हैं। *ज्यैष्ठत्वं जन्मना नैव* *गुणै: ज्यैष्ठत्वमुच्यते।* *गुणात् गुरुत्वमायाति* *दुग्धं दधि घृतं क्रमात्।।* अर्थात- व्यक्ति जन्म से बडा व महान नहीं होता है। बडप्पन व महानता व्यक्ति के गुणों से निर्धारित होती है, यह वैसे ही बढती है जैसे दूध से दही व दही से घी श्रेष्ठत्व को धारण करता है। *अर्थार्थी यानि कष्टानि* *सहते कृपणो जनः।* *तान्येव यदि धर्मार्थी* *न भूयः क्लेशभाजनम्।।*...
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