तुम भी इस गाथा में
अपना नाम लिखा लो
अंधेरे के प्रेतों से
अपनी ताल मिला लो
रात कोे जंगलों में घूमा करो
मंत्रों से अपने गले के ताबीजों को चूमा करो
स्वामी अभयानंद तुम्हें
प्रेतों का पता बता सकते हैं
तुम्हारी कई जिज्ञासा मिटा सकते हैं
और वह जो पागल बुड्ढा
गंगा जी पर नाचता है
उसके पागलपन पर मत जाना
और उससे बहुत सारे रहस्य अपनाना
वह दुनिया की दृष्टि में बहुत पागल है
लेकिन जादू की दुनिया का
बहुत बड़ा आमिल है
अपने दिल और दिमाग में ,
दिल की ही सुनना
प्रोफेसरी और पुजारीगिरी में,
पुजारीगिरी को ही चुनना ।।
प्रोफेसरी में कोट पेंट है ,
और अयोग्यों के लिए व्याख्यान हैं
पुजारीगिरी में देवताओं का पूजन
और शास्त्रों का सम्मान है
आधुनिक कोई भी हो व्यवसाय
कितनी भी ज्यादा हो आय
धार्मिकता का है अपना आनंद
खैर जो चाहो वह चुनो,
अपनी अपनी पसंद
यह मेरी कच्ची झोपड़ी
वह तुम्हारा पक्का मकान है
तुम्हारी नेताओं से
मेरी महात्माओं से जान पहचान है
तुम तंत्र की ऐसी शक्तियों को
क्यों नहीं अर्जित कर लेते
जो एक क्षण में कुछ भी कर सकें
समंदर में रेत और
रेत में समंदर भर सकें
कल वह बाबा मुझसे बोला-
तपते हुए सहरा का रेत हो गया हूं
रातों को घूमने वाला प्रेत हो गया हूं ।
यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु: हंसा महीमण्डलमण्डनाय हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां येषां मरालैस्सह विप्रयोग:।। हंस, जहां कहीं भी धरती की शोभा बढ़ाने गए हों, नुकसान तो उन सरोवरों का ही है, जिनका ऐसे सुंदर राजहंसों से वियोग है।। अर्थात् अच्छे लोग कहीं भी चले जाएं, वहीं जाकर शोभा बढ़ाते हैं, लेकिन हानि तो उनकी होती है , जिन लोगों को छोड़कर वह जाते हैं । *छायाम् अन्यस्य कुर्वन्ति* *तिष्ठन्ति स्वयमातपे।* *फलान्यपि परार्थाय* *वृक्षाः सत्पुरुषा इव।।* अर्थात- पेड को देखिये दूसरों के लिये छाँव देकर खुद गरमी में तप रहे हैं। फल भी सारे संसार को दे देते हैं। इन वृक्षों के समान ही सज्जन पुरुष के चरित्र होते हैं। *ज्यैष्ठत्वं जन्मना नैव* *गुणै: ज्यैष्ठत्वमुच्यते।* *गुणात् गुरुत्वमायाति* *दुग्धं दधि घृतं क्रमात्।।* अर्थात- व्यक्ति जन्म से बडा व महान नहीं होता है। बडप्पन व महानता व्यक्ति के गुणों से निर्धारित होती है, यह वैसे ही बढती है जैसे दूध से दही व दही से घी श्रेष्ठत्व को धारण करता है। *अर्थार्थी यानि कष्टानि* *सहते कृपणो जनः।* *तान्येव यदि धर्मार्थी* *न भूयः क्लेशभाजनम्।।*...
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