यह बात सन् 2009 की है जब मैं शास्त्रीकक्षा के द्वितीय वर्ष में था !! मनोरंजन भाईसाब का बाबा के यहां फोन आया कि बाबा ३ विद्यार्थियों को भेज दीजिए, एक महामृत्युंजय का जाप है बदायूं जिले में!!
बाबाजी ने मुझे जीतू और अमित को भेज दिया एवं विद्यालय से सुग्रीव एवं शोभित पंडित यह दो ब्राह्मण और भी थे !
एक व्यक्ति खुद मनोरंजन भाई साहब एवं उनके खास शिष्य प्रदीपानंद !
इस तरह से 7 व्यक्तियों द्वारा यह 7 दिन किया जाने वाला महामृत्युंजय
जाप था।
हम सभी लोग नरवर से निकले और राजघाट स्टेशन पहुंचे तथा वहां से चंदौसी वाली ट्रेन में बैठे।
चंदोसी पहुंचकर गणेश मंदिर के सामने हमें मनोरंजन भाईसाहब खड़े दिखाई दिए ।
उन्होंने सफेद रंग के पैंट शर्ट पहन रखे थे! उन लोगों में से मैंने कुर्ता पजामा पहन रखा था, सुग्रीव ने कमीज और जींस पहन रखा था अमित और जीतू भी पैंट शर्ट में ही थे!!
मनोरंजन तिवारी भाईसाब साधक थे!! बहुत परिश्रमपूर्वक जाप करते थे !
लगातार 10 घंटे ! लेकिन वो ज्यादा ढोंग-ढपारे में विश्वास नहीं रखते थे, इसलिए जजमान के घर डायरेक्ट पैंट पहनकर ही चले जाते थे ।
लेकिन ब्राह्मणों की जो तिलक , चुटिया एवं कलावा , जनेऊ यह चिह्न उनके सदा रहते थे।
सिर्फ शरीर के ऊपर सफेद रंग के पेंट कमीज़ ! जो ब्राह्मण के कपडों का रंग बताया गया है धारण किए होते थे!
वैसे कोई पूर्वाग्रह नहीं था कि पेंट कमीज ही पहनने हैं , लेकिन बस यह था कि लंबी यात्रा में भागना दौड़ना बहुत पड़ता है , इसलिए धोती कभी-कभी उलझ कर व्यक्ति को गिरा देती है। इसलिए प्राय: अधिकतर ब्राह्मण इसी तरकीब का इस्तेमाल करते थे कि यात्रा में पेंट कमीज अथवा कुर्ता पजामा, किंतु अनुष्ठान के समय धोती कुर्ता पहनते थे! और संपूर्ण भारत में इतने विधि विधान से शायद कोई अनुष्ठान ना कराता हो , जितना नरवर के ब्राह्मण कराते थे !!
अतः फिलहाल की स्थिति यह थी कि हम सब मिलकर एक रोडवेज बस में बैठे, सीधे बदायूं के लिए !हम सब का किराया शिवरंजन तिवारी भाईसाब ने ही दिया, क्योंकि वही अनुष्ठान के आचार्य थे ।
उस समय जजमान के घर जब अनुष्ठान करने जाते थे तो किराया भी जजमान देता था!
शाम के लगभग 8:00 बजे हम सब उनके घर पहुंच गए, जो हमारे जजमान थे!
बातों बातों में मुझे पता चला जजमान जो है वो अत्यंत वृद्ध है और हॉस्पिटल में वेंटिलेटर पर पड़े , अंतिम सांस ले रहे हैं डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है !
लेकिन मनोरंजन भाई साहब को शायद भगवान पर बहुत विश्वास था ,अतः वह हॉस्पिटल में जाकर ही उनके हाथ से संकल्प करवा कर एक कलावा छुड़वा दिया था एवं वह कलावा ब्राह्मण लोगों को के हाथों में बांध दिया था ।
जजमान के तीन लड़के थे जिनकी आयु 40 से 50 के बीच थी एवं खुद जजमान की आयु लगभग 80 वर्ष थी। यह एक सात दिन का अनुष्ठान था !!
हमें डर था कि कहीं जजमान बीच में ही ना टपक जाए क्योंकि उस बुड्ढे की हालत बड़ी ही नाजुक थी ।
लेकिन मनोरंजन भाईसाब के कहने पर हम उस अनुष्ठान में आ गए थे!
खैर अगले दिन सुबह 4:00 बजे ही उठ गए!
नित्य कर्म स्नानादि से निवृत्त होकर चौकी आदि बनाना शुरू कर दिया!
जैसा कि सबको पता था मनोरंजन भाईसाब जाप करने में अत्यंत कठोर थे !
वे खुद भी खूब जाप करते थे एवं ब्राह्मणों से भी लगातार जाप करवाते थे!
उनकी यही खूबी प्रसिद्ध थी !
12:00 घंटे जाप करना प्रतिदिन!
प्रतिदिन सुबह 5:00 से रात्रि 9:00 बजे तक लगातार पूजा-पाठ !
सिर्फ मध्यान्ह में आधे घंटे का विश्राम!
यह सब कुछ बड़ा थका देने वाला था, लेकिन उसके अनुकूल ही उस मंदी के दौर में वे अच्छी दक्षिणा दिलवा देते थे ,
जिस कारण ब्राह्मण उनके पास आ जाते थे!!
कुछ विश्वास भी था उनका !
वह कभी भी बीच में दक्षिणा काटते नहीं थे!
इसीलिए लोग उनसे जुड़े रहते थे!
करीब 9:00 बजे स्वस्तिवाचन शुरू हुआ!
फिर पुण्याहवाचन, नांदीश्राद्ध इत्यादि प्रथम दिवस के कार्य पूर्ण हो चुके थे !
फिर जाप की बारी आई तो ब्राह्मणों ने खूब मन लगाकर जाप किया !
दोपहर को थोड़ा सा फलाहार लेकर के 5 मिनट का विश्राम, तथा फिर जाप में लग गए !
इस तरह से रात्रि के 9:00 बजे हम लोग उठे। तभी यजमान के बड़े लड़के , जो कि बुलंदशहर में पत्रकार थे, , कहने लगे -पंडित जी आप थोड़ा घूम लीजिए ! तब तक हम भोजन के लिए बर्तन लगाते हैं!
हम लोग थोड़ा तरोताजा होने के लिए छत पर टहलने लगे और मानसिक थकान को मिटाने लगे !!
10 मिनट बाद आवाज आई - पंडित जी! खाना लग चुका है !
हम लोग भी नीचे आए!
सभी लोग खाने के लिए बैठ चुके थे !
पानी परोसा जा रहा था तभी उनका छोटा वाला लड़का जो कि अस्पताल से आया था, उसने आकर अपनी पत्नी से कुछ कहा ! फिर वह अंदर आया!!
मनोरंजन भाई साहब- क्या हुआ आपके पिताजी की कैसी तबीयत है ??
वह बोला- पिताजी की तबीयत कुछ अच्छी नहीं है !!
उसका इतना कहना था कि रसोई में खाना बना रही उसकी पत्नी खूब जोर से े रोने लगी।
हम सब समझ गए कि मृत्युंजय मंत्र से जजमान जी की मुक्ति हो गई है !!
सभी पंडितों ने धोती की तह बनाकर अपने बैग में रखी और जल्दी से अपने यात्रा के वस्त्र पहनने लगे !
जजमान जी चुपके से मनोरंजन भाई साहब से पूछने लगे पंडित जी कुछ दक्षिणा??
मनोरंजन भाई साहब दुखी हो गए थे, अतः उन्होंने कहा - जिस काम के लिए हम आए थे वह काम ही नहीं हुआ तो कैसी दक्षिणा ??
ऐसा कह कर के हम लोग तुरंत ही वहां से निकल आए। उस समय रात के 10:00 बजे थे । मैं रास्ते में सबसे पीछे चला आ रहा था!!
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