क्रीत्वा पंचगृहाणि यश्च नगरे सम्पत्तिभिश्शोभते
धृत्वा कोटिशतं च रूप्यकमहो नैकेषु कोशेष्वपि।
वाणिज्यं हि विदेशमार्गशरणं यो वायुयानैरपि
कुर्यात्सोsत्र जनो समस्तमनुजैस्सम्मान्यते लौकिकै:।।
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