Tuesday, 6 August 2019

संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष के लिए दोहात्मक

बीमारी के कारण अवकाश स्वीकृति के सन्दर्भ में---

मौसम रोज बदल रहा, गर्मी की है मार ।
सर्दी-गर्मी से क्वचित्, हो जाता है बुखार ।।

ऑफिस में एसी चले, बाहर लू भरमार ।
खाँसी नजला हो गया, पीडित करे बुखार ।।

बुधवार की सुबह को, चले हाथ ना पैर।
कैसे करता जागकर, बागानों की सैर।।

ज्वर से भीतर जल रहा, तपता रहा शरीर ।
रुक-रुक कर सिर में मेरे, उठती रहती पीर।।

दूरभाष पर सूचना, यद्यपि दी फैलाय ।
कार्यालय ना गमन पर, कर्महीन कहलाय ।।

श्रीमन् तेज बुखार में, पी रहा हूँ घुट्टी ।
अतः तीन दिन तक मुझे, लेनी पड़ी है छुट्टी ।।

सोमवार की प्रात को, हो गया मैं तैयार ।
बेचैनी हड़कल तुरत, चढ आया बुखार ।।

आज मुहल्ले में मेरे, मर गया बुढ्ढा एक ।
सब हैं वहाँ जुटे हुए, अर्थी दी है टेक ।।

किन्तु इस ज्वर-हेतु ही, आना हुआ अशक्य ।
शरीर की रक्षा करो, कहते हैं चाणक्य ।।

यह विनती स्वीकार कर, दीजे छुट्टी आज ।
मन्ये, कल निश्चय करूँ, कार्यालय के काज ।।

निवेदक – हिमांशु गौड
दिनाङ्क – 07-05-2018

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