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भण्डारे खाया करता था - कविता, हिमांशु गौड

वह रोज हरि के गुण गाया करता था
दूर हो या पास, मंदिर ज़रूर जाया करता था
कहां तक कहूं , उसके जीवन की कहानी
वह अनेक आश्रमों में जा, भंडारे खाया करता था।।

आत्मानंद आश्रम पर उसे एक महात्मा मिला
जिसे देख कर उसके मन का कमल खिला
क्योंकि वह किस्से बहुत बढ़िया कहता था
हमेशा पीली धोती में ही रहता था।।

वह अपने आश्रम में ही सोता रहता था
प्रभु कब मिलेंगे इसलिए रोता रहता था
संसार से बचने का प्रयास करता था
वह अद्भुत कार्य अनायास करता था।।

वह कोई धनी महात्मा नहीं था, बड़ा ही फकीर था
शैवभासी परंपरा की जीवंत लकीर था
दिखावे का उसके जीवन में कोई स्थान नहीं था
इसीलिए संसार में उसका कोई सम्मान नहीं था।।

अधिकतर लोग तो उसे जानते भी नहीं थे,
उसके मंत्रों की शक्ति को पहचानते नहीं थे,
उसे भी एकांतवास ही भाता था,
इसीलिए वह सुनसान इलाकों में डेरा जमाता था।।

रामघाट में उसे ननुआ चपरासी जी मिले, जोकि तांत्रिक महात्मा थे
उनके शिष्यों की दृष्टि में, वो स्वयं परमात्मा थे
उसने ननुआ जी से पूछा, कि मुझे राम कब मिलेंगे
इस शरीर में बंधी आत्मा को, हरिधाम कब मिलेंगे।।

ननुआ चपरासी ने ध्यान लगाया और कहा
अभी कई जन्म है तुम्हारी मुक्ति के बाकी,
तुम थोड़ा और भजन कर सको ताकि
अपने आश्रम पर ही राम का भजन करते रहो
सुख दुख में समभाव रखते रहो ।।

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