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हिमेश अपनी कहानी सुना रहा था और ऋतुकान्त उसके मुंह से झरने वाली लफ्फ़ाजी को मुग्ध हो कर सुन रहा था !
"इस जगह पर मैं न जाने कितनी बार आ चुका था, जो आज मैंने सपने में देखी!
वह अस्पताल वाली गली , जिसके मैं बचपन में एक दिन में , दौड़ दौड़ कर कई कई चक्कर काट डालता था!
वे बाजार जहां दुकानदार अपनी दुकानों से बाहर आते जाते राहगीरों को ही देखते रहते हैं , मतलब आपस में लोगों में बड़ी ही नजदीकी है और बड़े ही उत्सुक लोग भी हैं औरों के विषय में! उन बाजारों में ज्यादा भीड़ नहीं रहती थी!
"बाजार में भीड़ नहीं फिर वो कैसे बाजार?" - ऋतुकान्त ने कहा!
हिमेश मुस्कुराते हुए बोला-
"वो वक्त और था! कोई आज की तरह भागम-भाग का दौर तब नहीं था!"
"दोपहर के समय तो कोई इक्का-दुक्का ही निकलता था लेकिन नोवेल्स और कॉमिक्स की दुकान पर बच्चों और नौजवानों की भीड़ हमेशा ही इकट्ठा रहती थी!
जहां लोग निकलने-बड़ने वाले हर आदमी को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं , ऐसे बाजार में , मैं कितना ही दौड़ा था ।
ऐसी कौन सी दुकान है, जहां पर मैं नहीं बैठा !"
उस समय जनसंख्या इतनी ज्यादा नहीं थी वहां कि !
और लोगों के अंदर मोहब्बत भी बहुत थी, ऐसा मुझे आज भी लगता है !
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वक्त रिस रिस कर निकलता जा रहा है!
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अब फूलों की सुगंध सिर्फ फूल वाले की दुकान में ही है ! वो भी शहर में एकाध है!
और सब लोग वहां जा नहीं सकते!
अब और क्या कहूं!
अब सुबह की शुरुआत बगीचे में टहलने से नहीं होती !
अब दोपहर छायादार मैदानों में बैठकर नहीं गुजरती!
अब अपनी मनमोहक काया लेकर सांझ नहीं उतरती!
अब रात की शुरुआत में वह जुगनुओं की झिलमिलाहट नहीं रही!
अब कहां वे कहानी कहने और सुनने वाले!
अब गहरे सपने नहीं आते!
अब कहां वे महकती वादियों वाले दिन!
नयी उमंगों वाले आशान्वित मन, और प्रफुल्लित चेहरे!"
हिमेश ने कहना जारी रखा -
"एक साल में शायद ही दो-तीन बार ऐसे सपने आते हैं , जब मैं उन सपनों में पूरी तरह डूब जाता हूं !
आपको भी कई बार ऐसा अहसास हुआ होगा कि आप सपने में डूब गए उसके बाद जब जागो तो ऐसा लगता है ये शायद सपना है वह हकीकत थी !
हम सपने को हकीकत और हकीकत को सपने की तरह महसूस करते हैं ।
उस समय हम हवा के जैसे होते हैं ।
हवा की तरह किसी को भी नजर ना आकर सब जगह घूम आते हैं !
और ये ही वे शहर होते हैं !
यही वह जगह होती हैं ,
जहां के दृश्य हमारे मनो-मस्तिष्क की दीवारों पर अंकित होते हैं।
कई बार सपनों के माध्यम से मैं ऐसे शहरों में भी , ऐसे स्थानों पर भी गया हूं जहां में वास्तव में तो कभी नहीं गया , लेकिन फिर भी लगता है यहां मैं पहले बहुत बार आ चुका हूं या यहां मैं रह चुका हूं !
तो मुझे लगता है कि ये हमारे पूर्व जन्मों के स्थान होते हैं जहां हम कभी-कभी सपनों के माध्यम से पहुंच जाते हैं!"
हिमेश ने चाय का घूंट पी कर कप नीचे रख दिया!
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................... जारी है!
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