गांवों में फिर रंग सजा दो
लोगों को सम्मान सिखा दो
धरती की आभा का इक
संपत्ति-प्रतिमान दिखा दो
गंगा जी की लहरों में
भक्ति और विज्ञान दिखा दो
नृत्य शास्त्र की परंपरा का
खुश होकर उद्यान दिखा दो
किस किसको सोचोगे अब
सबको ही नव तान सुना दो
पुण्यसंपदा प्राप्त करो
वैष्णव लोकों का दृश्य दिखा दो
गणपति के मंदिर में जा
दूर्वा का श्रंगार चढ़ा दो
बिल्वपत्र विजया से शोभित
शिव जी को संभार चढ़ा दो
लौकिक और अलौकिक गतियां
शास्त्रों के अनुसार बना लो
डामर और पुत्तलिका तंत्रों
को शक्तिआधार बना लो
स्वरशास्त्रों की व्याख्याओं से
गंधर्वो के तार सजा दो
सरस्वती के मंत्रों से
आत्म तत्व झंकार बना लो
श्रवण धनिष्ठा नक्षत्रों के दिन
अनुष्ठान प्रारंभ करा दो
नानारूपधरी यक्षी से
चित्पक्षी साक्षात् करा दो
गुंजा सफेद का यंत्र बनाकर
डाकिनियों को पास बुला लो
.....
यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु: हंसा महीमण्डलमण्डनाय हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां येषां मरालैस्सह विप्रयोग:।। हंस, जहां कहीं भी धरती की शोभा बढ़ाने गए हों, नुकसान तो उन सरोवरों का ही है, जिनका ऐसे सुंदर राजहंसों से वियोग है।। अर्थात् अच्छे लोग कहीं भी चले जाएं, वहीं जाकर शोभा बढ़ाते हैं, लेकिन हानि तो उनकी होती है , जिन लोगों को छोड़कर वह जाते हैं । *छायाम् अन्यस्य कुर्वन्ति* *तिष्ठन्ति स्वयमातपे।* *फलान्यपि परार्थाय* *वृक्षाः सत्पुरुषा इव।।* अर्थात- पेड को देखिये दूसरों के लिये छाँव देकर खुद गरमी में तप रहे हैं। फल भी सारे संसार को दे देते हैं। इन वृक्षों के समान ही सज्जन पुरुष के चरित्र होते हैं। *ज्यैष्ठत्वं जन्मना नैव* *गुणै: ज्यैष्ठत्वमुच्यते।* *गुणात् गुरुत्वमायाति* *दुग्धं दधि घृतं क्रमात्।।* अर्थात- व्यक्ति जन्म से बडा व महान नहीं होता है। बडप्पन व महानता व्यक्ति के गुणों से निर्धारित होती है, यह वैसे ही बढती है जैसे दूध से दही व दही से घी श्रेष्ठत्व को धारण करता है। *अर्थार्थी यानि कष्टानि* *सहते कृपणो जनः।* *तान्येव यदि धर्मार्थी* *न भूयः क्लेशभाजनम्।।*...
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