Skip to main content

नरवर की विचित्र कहानियां : हिमांशु गौड

एक कहानी ऐसी भी -

✍✍✍✍✍✍✍✍
भोजन का निमंत्रण आने की योगा को बहुत खुशी होती थी ! आज मुझे लगता है कि
शायद वहां घूमते हुए प्रेतों की वजह से ही कुछ लोगों पर उनका असर आ जाता था!
योगा कि इन्हीं विचित्र हरकतों के चलते उस को लोग एक विचित्र पुरुष मानते थे !
वह अनेक कलाओं में कुशल था!
गाने में प्रवीण था !
वह इतनी गप्प मारता था, और कल्पना-शक्ति उसकी इतनी ज्यादा थी कि लगता था कि उसकी कुंडली में चंद्रमा बहुत मजबूत हालत में है!
वह बहुत ज्यादा पढ़ता नहीं था क्योंकि गप्पबाजी से फुर्सत मिले , तब तो पढ़ें ! या फिर वह कभी-कभी अपनी सामर्थ्य को गुप्त भी रखता था जैसे न्याय शास्त्र के ग्रंथ
कारिकावली ,
जोकि शास्त्रों के महारथी श्री बाबा गुरु जी से ,अपने सभी सहपाठियों के साथ में पढ़ता था ,तो वह प्रायः सामान्य ही प्रदर्शन करता था ।
लेकिन एक बार वह सब से छुपकर एकांत और घने जंगलों में जा वटवृक्ष के नीचे सुबह 4:00 बजे से लेकर के और सुबह 9:00 बजे तक लगातार उसको कंठस्थ करता था और 1 दिन ऐसा आया ,
कि जब गुरुदेव ने उससे पूछा कि चलो कारिकावली सुनाओ,
तो उसने मानो जैसे झरने से जल की धारा गिरती है
वैसे ही
पूरी कारिकावली को एक झटके में ही सुना डाला !!
तब सारे शास्त्री एक ही बार में आश्चर्यचकित हो गए।
इसी तरह उसने एक छंद शास्त्रीय ग्रंथ को भी अचानक ही याद करके सुना दिया था।
क्योंकि और लोगों को यह पता भी नहीं था,
कि इसने याद कब कर लिया?
क्योंकि वह पूरा दिन तो गप्प ही मारता रहता है।
चलो !! आज आपको उन दिनों की तरफ ले चलता हूं ,
जब आसमान से बारिश होती थी तो
माहौल बहुत ही हरिल्लोक स्वप्नायमानानि दिनानि पश्यन् की तरह हो जाता था!!
जब कभी भयंकर बारिश हो रही है, और गंगा जी अपनी तीव्र गति से बह रही हैं ,
ऐसे में व्याकरण शास्त्र वेद पुराण आदि को पढ़ने वाले कुछ युवक, दिव्य गति से ,
हरे-भरे जंगलों में दौड़ते हुए एवं कभी गंगा जी की तरफ दौड़ते हुए
लगभग 20 फीट ऊपर से गंगा जी में छलांग लगाते थे !!
और बाबा की कुटिया के , 1 दिन में लगभग 20-30 चक्कर काट डालते थे !!
यह उन दिनों की बात है ,
जब हरिशंकर शर्मा , नाश्ते में 10 रोटियां सिर्फ गंगाजल के साथ ही खा जाता था !
और फिर दोपहर के भोजन में 20 रोटियां दाल के साथ ,
और रात्रि में फिर 15 रोटियां रात्रि भोजन के समय!
और २ किलो दूध पी कर सो जाता था!
और यह तो कुछ भी नहीं ,
जिसकी बॉडी देखकर पूरा शहर सुखमिश्रित-आश्चर्य का अनुभव करता था,
वह देवीप्रसाद शर्मा, जो प्रतिदिन,
तीन बार स्नान करता था !
सभी शास्त्रों के नियमों का पालन एवं दुर्गा सप्तशती का रोजाना पाठ करता था!
उसकी भूख इतनी ज्यादा थी ,
कि वह कम से कम 50 रोटी एक बार में खा जाता था।
और 5 किलो खीर एक ही बार में पी जाता था ,
एक बार वह जिम करने के लिए शहर के किसी जिम में गया ,
वहां जैसे ही कोच ने उसे सिखाने की कोशिश की , उसने बहुत सारे वज़न को एक ही साथ उठा दिया।
इस आश्चर्य को देख कर कोच, उनके चरणों में गिर पड़ा और कहा- गुरु जी ! आज से आप मेरे कोच हुए , और मैं आपका शिष्य......
देवीप्रसाद ने जीवन भर पेंट कमीज नहीं पहने थे ,वे हमेशा धोती कुर्ता ही पहनते थे और बड़े ही शुद्धता और सात्विकता से जीवन जीते थे ।
एक उनके ही मित्र थे अशोक पाठक,
जोकि उनसे बहुत मजे लिया करते थे एवं विवाह संबंधी हास-परिहास करते रहते थे!
देवीप्रसाद का भैया शिवप्रसाद, बहुत अच्छा सिंगर था , गाना गाता था।
एक बार एक लवकुश नाम के छात्र ने शिवप्रसाद को कुछ कह दिया या शायद चांटा भी मार दिया था !
इस बात को लेकर देेेवीप्रसाद को इतना गुस्सा आया कि वह डंडा लेकर के उसके पीछे पीछे कुटिया पर आ गया सिर पर एक मुंडासा बांधकर !!
उससे लड़ने की खातिर लवकुश अपने साथ रीतेश को भी ले आया !
अभी लड़ाई शुरू होने वाली ही थी कि
श्री बाबागुरुजी, जो कि उधर से गुजर रहे थे उन्होंने ही इस मामले को रफा-दफा करवा दिया......
............
............जारी है
© हिमांशु गौड़

Comments

Popular posts from this blog

संस्कृत सूक्ति,अर्थ सहित, हिमांशु गौड़

यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु: हंसा महीमण्डलमण्डनाय हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां येषां मरालैस्सह विप्रयोग:।। हंस, जहां कहीं भी धरती की शोभा बढ़ाने गए हों, नुकसान तो उन सरोवरों का ही है, जिनका ऐसे सुंदर राजहंसों से वियोग है।। अर्थात् अच्छे लोग कहीं भी चले जाएं, वहीं जाकर शोभा बढ़ाते हैं, लेकिन हानि तो उनकी होती है , जिन लोगों को छोड़कर वह जाते हैं ।  *छायाम् अन्यस्य कुर्वन्ति* *तिष्ठन्ति स्वयमातपे।* *फलान्यपि परार्थाय* *वृक्षाः सत्पुरुषा इव।।* अर्थात- पेड को देखिये दूसरों के लिये छाँव देकर खुद गरमी में तप रहे हैं। फल भी सारे संसार को दे देते हैं। इन वृक्षों के समान ही सज्जन पुरुष के चरित्र होते हैं।  *ज्यैष्ठत्वं जन्मना नैव* *गुणै: ज्यैष्ठत्वमुच्यते।* *गुणात् गुरुत्वमायाति* *दुग्धं दधि घृतं क्रमात्।।* अर्थात- व्यक्ति जन्म से बडा व महान नहीं होता है। बडप्पन व महानता व्यक्ति के गुणों से निर्धारित होती है,  यह वैसे ही बढती है जैसे दूध से दही व दही से घी श्रेष्ठत्व को धारण करता है। *अर्थार्थी यानि कष्टानि* *सहते कृपणो जनः।* *तान्येव यदि धर्मार्थी* *न  भूयः क्लेशभाजनम्।।*...

Sanskrit Kavita By Dr.Himanshu Gaur

संस्कृत क्षेत्र में AI की दस्तक

 ए.आई. की दस्तक •••••••• (विशेष - किसी भी विषय के हजारों पक्ष-विपक्ष होते हैं, अतः इस लेख के भी अनेक पक्ष हो सकतें हैं। यह लेख विचारक का द्रुतस्फूर्त विचार है, इस विषय पर अन्य प्रकारों से भी विचार संभव है। ) ****** पिछले दशकों में किसी विद्वान् के लिखे साहित्य पर पीएचडी करते थे तब प्रथम अध्याय में उस रचयिता के बारे में जानने के लिए, और विषय को जानने के लिए उसके पास जाया करते थे, यह शोध-यात्रा कभी-कभी शहर-दर-शहर हुआ करती थी! लेकिन आजकल सब कुछ गूगल पर उपलब्ध है, आप बेशक कह सकते हैं कि इससे समय और पैसे की बचत हुई। लेकिन इस बारे में मेरा नजरिया दूसरा भी है, उस विद्वान् से मिलने जाना, उसका पूरा साक्षात्कार लेना, वह पूरी यात्रा- एक अलग ही अनुभव है। और अब ए.आई. का जमाना आ गया! अब तो 70% पीएचडी में किसी की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। बेशक नयी तकनीक हमें सुविधा देती है, लेकिन कुछ बेशकीमती छीनती भी है। आप समझ रहे हैं ना कि कोई व्यक्ति आपके ही लिखे साहित्य पर पीएचडी कर रहा है और आपकी उसको लेश मात्र भी जरूरत नहीं! क्योंकि सब कुछ आपने अपना रचित गूगल पर डाल रखा है। या फिर व्याकरण शास्त्र पढ़ने के लिए...