अलाव नहीं चौराहों पर फिर कैसी सर्दी
दिल में कोई लगाव नहीं है , कैसी सर्दी
उपन्यास पढ़ते पढ़ते जब चाय ना मिले
नोचो अपने बाल कहो फिर कैसी सर्दी।
मीठी मीठी धूप ना मिले खेतों में जब
फ्लैटों में रहते लोगों की कैसी सर्दी
कंबल ओढ़े शास्त्रों का जो पाठ पढ़ाएं
शास्त्री जी को शोभित करती ऐसी सर्दी।।
पीपल के पेड़ों के नीचे कहीं नहीं अब
बतियाते लोगों के जमघट, कैसी सर्दी
स्वच्छ हंसी और हृदय खो गए
हम सबसे अब दूर हो गए
चेहरे पर मल ली लोगों ने
कृत्रिमता की देखो हर्दी
हर मौसम की गई महक
फिर कैसी सर्दी.....
Tuesday, 6 August 2019
कैसी सर्दी ? हिन्दी कविता - हिमांशु गौड
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