Tuesday, 6 August 2019

ननकू : हिमांशु गौड: आख्यान




ननकू ! हां यही नाम था उस विद्यार्थी  का जिसकी उम्र इस समय 17 साल थी और वह इस समय बाबा गुरु से प्रौढ़मनोरमा का पाठ पढ़ रहा था ।
बाबा गुरु जी जिस तरह से उसे पढ़ाते थे वह उसी तरह से कंठस्थ कर के उन्हें सुना देता था ।
इस तरह से वह उस संपूर्ण विद्या नगरी का होनहार शाब्दिक था बाबागुरुजी का उससे बड़ा प्रेम था ।

यद्यपि वह बहुत ही चंचल था वह नए-नए कौतुक करता था लेकिन फिर भी अपनी अत्यंत तीव्र बुद्धि के कारण वह व्याकरण के आचार्य काशी में प्रख्यात और अधुना नरवर के व्याकरण  पढ़ाने वाले श्री ज्ञानेंद्र आचार्य का भी अत्यंत प्रिय होने के साथ-साथ पढ़ने वाला शिष्य था ।
ज्ञानेंद्र आचार्य उसके विषय में सदा यह कहते थे कि ननकू तो बना बनाया ही विद्वान है ।
इसको तो बस अपने संस्कारों का उदय मात्र करना है ।

इस तरह से मनुष्य अपने पूर्व पुण्यों के आधार पर इस जन्म में तीक्ष्ण बुद्धि को प्राप्त करता है और उससे ही वह शास्त्रों का वैभव प्राप्त कर सकता है लेकिन यह सब पुण्य पर ही आधारित है ।
कोई कोई तीव्र बुद्धि का होते हुए भी विद्वान् नहीं बन पाता लेकिन कोई साधारण बुद्धि का होकर भी विद्वत्ता के चमत्कारों को इस संसार में दिखाता है ,
और अपनी सरस्वती के अनुसार नाम कमाता है धन कमाता है , यश कमाता है, बड़ों का आशीर्वाद पाता है और ईश्वर के गुण गाता है।

नरवर की पुण्य धरा पर एक से एक प्रतिभाशाली छात्र आकर व्याकरण शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करते और गंगाजल पीकर अपनी बुद्धि को निर्मल करते थे लेकिन साथ ही साथ एक ऐसा भी कारण था जो छात्र की उन्नति में बाधक था उसका नाम था- अनुष्ठान ।
अनुष्ठानों में लगा रहने के कारण बहुत सारे प्रतिभाशाली छात्र भी अपने जीवन से बेजार और बेकार हो गए ।

वे खुद अपनी विद्या को नष्ट कर बैठे और अपने जीवन में कष्ट भर बैठे।
अपने गरीब घर की मजबूरियों के चलते ब्राह्मणों के बच्चे ना चाहते हुए भी जजमानों के घर जा कर , पंडिताई करने को विवश होते हैं और बेचारे इसी चक्कर में अपने शास्त्रों का ज्ञान भूल जाते हैं , और वह फिर सही समय पर अपना कैरियर नहीं बना पाते।

जिससे उनका जीवन बड़ा ही कष्टमय हो जाता है दूसरी तरफ आर्य समाजी लोग जिनमें अधिकतर गैर ब्राह्मण जाति के ही होते हैं उन लोगों को मात्र कभी-कभी यज्ञ ही करना होता है वह भी आर्य समाज के प्रचार के लिए आते हैं ।
वे पढ़ने की उम्र में भयंकर पढ़ाई करते हैं, जिससे वह स्नातक स्तर तक अच्छी पढ़ाई करके जल्दी से सरकारी नौकरी को प्राप्त कर लेते हैं ।

ब्राह्मणवादी परंपरा में चलने वाले ब्राह्मणों! अभी भी संभल जाओ ।
वरना पूरी जिंदगी सामग्री छोड़ने से अच्छा है शास्त्री तक बढ़िया करके पढ़ाई करना एवं प्रोफेसर आदि की पद तक पहुंचना एवं व्याकरणशास्त्र की गहराई को छूना एवं नागेश जी के मर्म को जानना और संस्कृत के क्षेत्र में अपना योगदान देना ।

जय जय श्री राधे ।
जय श्री श्याम ।।

....... ©आचार्य हिमांशु गौड़

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