☠☠☠☠तन्त्र-जगत् ☠☠☠☠
----------मैं उन जंगलों में आगे बढ़ा जा रहा था!!
मुझे ताबीज बनानें के लिए जिस पौधे की तलाश थी, वह उन्हीं जंगलों में मिल सकता था !
खैर , काफी मशक्कत के बाद भी वह पौधा मुझे नहीं मिला। अगले दिन उसे ढूंढने का विचार बनाकर मैं अपने घर की तरफ लौटने लगा।
लेकिन तभी मुझे लगा कि मेरे पीछे कोई चल रहा है !!
मैंने एक बार पीछे मुड़कर देखा लेकिन कोई नहीं था मुझे लगा शायद मेरा भ्रम है !!
फिर मैं सामान्य गति से चलने लगा लेकिन मैं महसूस कर रहा था कि कोई अदृश्य शक्ति है , कि जो मेरे आस-पास है!!
जो दिन रात तंत्र शक्तियों के पहरे में रहते हैं, वो आसानी से इन ताकतों को पहचान जाते हैं !!
वह बार-बार अपनी छाया दिखा कर मुझे डराना चाहता था!!
वह ...जो उस शाम के हल्के उजाले में मुझे साफ साफ महसूस हो रहा था... वह शख्स,मेरे पीछे घूमते ही धुवें में तब्दील हो गया !!!
मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह किस तांत्रिक की भेजी हुई शक्ति है ??या यह कोई प्रेतात्मा है जो मेरे पीछे लगी हुई है! क्योंकि पिछले कई दिनों से कुछ परछाइयां मेरा पीछा कर रही थी कभी सपने में तो कभी अपने होने का हल्का सा एहसास दिला कर!
खैर!!
मैं उन खाली पड़े और पुराने रास्तों और कई खंडहरों के बीच में से गुजरता हुआ अपने घर आ गया।
शाम हो चुकी थी !
एक तरफ मस्जिद की अजान की आवाज और दूसरी तरफ मंदिर में से घंटे बजने की आवाज आ रही थी !!
अब अंधेरा फैल चुका था !पंछी अपने बसेरों की तरफ लौट रहे थे !
मैंने सबसे पहले एक चाय पी !फिर कुछ सोचने लगा , तब तक हमारे घर में भी शाम की पूजा का दीपक, कर्मानन्द ने प्रज्वलित कर दिया था।मुझे लगा मुझे भी अपने बचाव के लिए कुछ पूजा करनी चाहिए ।
मैंने स्नान किया और अपने पूजा स्थल पर जाकर सन्ध्यावन्दन के बाद कुछ विशेष मंत्रों का भी जाप किया। थोड़ी मन को शांति मिली जिस कस्बे में मैं रहता था , उसमें बिजली रात को 10 से पहले नहीं आती थी और कभी कभी पूरी रात भी नहीं आती थी।
यह एक जाड़े की ही शाम थी!
थोड़ी देर बाद चौटाला मेरे पास आया।
उसने दरवाजे पर आवाज दी- भाईसाब!
मैं बोला - अंदर आ जाओ !
वह अंदर आकर मेरे सामने एक कुर्सी पर बैठ गया।
चौटाला- क्या हुआ भाईसाब , आज दिखाई नहीं दिए ?आज कहां गए थे?
मैं चुप ही था !
मेरी गंभीर मुख-मुद्रा देख कर चौटाला समझ चुका था कि आज फिर किसी प्रेतात्मा से भाईसाब का सामना हुआ है!
तब तक कर्मानन्द उसके लिए चाय ला चुका था ।
धीरे-धीरे चाय पीते हुए चौटाला बोला- भाईसाब, मैं जानता हूं कि आज फिर किसी प्रेतात्मा से आपका सामना हुआ है !
मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा- शायद ये काले मंदिर का पुजारी है जो मेरे पीछे पड़ा हुआ है और रोज नए प्रेतों को भेजता रहता है मुझ पर हमले के लिए ।
चौटाला- भाईसाब ! आप ठीक कह रहे हैं! वह कुछ ऐसा ही तांत्रिक है ! वो आपसे इसलिए जलता है क्योंकि आपकी पंडिताई इस गांव में बहुत चल रही है।
वह आपकी जजमानी काटना चाहता है , इसीलिए आप पर आए दिन तंत्र प्रयोग करता रहता है!!
- लेकिन तुम तो जानते हो चोटाला ! मेरे पास भी ऐसी मंत्रों के अस्त्र है कि वह काले मंदिर का पुजारी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता......
.....कर्मानन्द!! जो कि कुछ दूर खड़ा हमारी बातें सुन रहा था पूजा के स्थान पर रखी हुई कौवे के पंख की राख लेकर आ गया था!
मैंने उससे पूछा - इसमें बिल्ली के नाखून की राख भी मिलायी है या नहीं?
करमानंद बोला- हां, और उसके साथ ही मुर्दे की खोपड़ी का चूर्ण भी मिला लिया है!!
ठीक है , फिर आज रात ही हम प्रक्रिया शुरू करते हैं ! आखिर पता तो चले, वह आत्मा कौन है? किसकी भेजी हुई है? और हम से क्या चाहती है!!
चोटाला किसी अनजाने तूफान की आशंका से मन ही मन घबरा गया था,
लेकिन मैंने उसको खूंटी से उतार कर एक लाल रंग का अभिमन्त्रित कपड़ा दिया कहा - इसे अपने गले में बांधे रख!! तू भी मेरे साथ ही चलेगा !
हवन के लिए लकड़ी और बाजार से कुछ सामान भी तुझे ही इकट्ठा करना है!!
चोटाला यद्यपि कुछ डरपोक स्वभाव का था लेकिन मेरे आश्वासन से उसे कुछ ढांढ़स बंधा!
☠☠☠☠☠☠☠☠☠☠☠☠☠-----------+++++-------------हवन शुरू हो चुका था!
चारों और घना जंगल !
सांय सांय करती हवा!
और घोर अंधकार के बीच हवन से निकलती हुई अग्नि की लपटों से एक विचित्र सी आकृति बन रही थी !
मैंने अपने और चौटाला के चारों ओर एक सुरक्षा चक्र की भांति घेरा खींचा और उसके अंदर बैठ गए !
चौटाला यद्यपि मन ही मन कुछ डरा हुआ था ,
लेकिन बाहर से वह ऐसा ही दिखाने का प्रयत्न कर रहा था जैसे वह बिल्कुल निर्भीक हो !
अभी एक माला ही हवन हुआ था कि आसमान में बिजली चमक उठी!
दूर कहीं बैठे हुए सियार हू हू करके रोने लगे !
ऐसी काली रात में भी कई पक्षी अजीब तरह की आवाज में चिल्लानें लगे !!
और तभी !!
ऐसा लगा जैसे कोई जानवर भयंकर हुंकार देता हुआ हमारी ओर दौड़ा हुआ आ रहा हो!
चौटाला !!
जो कि पहले से ही काफी डरा हुआ था वह अचानक भागने को तैयार हुआ, लेकिन मैंने सख्ती से उसका हाथ पकड़ लिया !!
यद्यपि मैं उसे पहले ही समझा चुका था कि इस सुरक्षा चक्र के अंदर कोई भीबुरी ताकत प्रवेश नहीं कर सकती !
लेकिन वह मूर्ख !!
मैं आहुति छोड़े जा रहा था!
कुछ सिर्फ महसूस होने वाले साए , इधर उधर सरगोशियां करने लगे !
सांय-सांय करती हुई एक-एक हवा जैसे उनकी शै पर नाच रही थी!
जैसे आसमान को उस ताकत ने अपनी मुट्ठी में कर लिया था!!
लेकिन देखिए मंत्रों की शक्ति , कि सुरक्षा घेरे के अंदर आने की किसी की हिम्मत नहीं थी!
यद्यपि उस वक्त वातावरण बहुत डरावना हो चुका था, लेकिन मुझे पूर्ण-विश्वास था , कि हमारा कुछ भी बुरा नहीं हो सकता !!
और फिर मानों जैसी हजारों सांप एक साथ फुंकारे हों ,
जैसे कई औरतें डरावनी आवाज में चीख-चीख कर रो रही हों ,
जैसे साक्षात् मनहूसियत ही वातावरण पर हावी हो गई हो !!
इस तरह की भयावह स्थिति के चलते,
अचानक वह डायन खौफ़जदा कर देने वाले अंदाज में आसमान तक फैले हुए धुंए के साथ,
हवन कुंड के सामने ही प्रकट हो गई........
चौटाला के मुंह से एक भयंकर चीख निकली और वह बेहोश हो गया...........................................
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इतनी नाजुक तांत्रिक क्रिया!
उसके बाद भी बड़ी मुश्किल से यह अदृश्य ताकत प्रकट होती हैं , लेकिन एक गलती की वजह से हमारे प्राण संकट में पड़ चुके थे!!
भूत प्रेतों के सामने डर जाना ही मौत के मुंह में जाने के बराबर होता है !!
बहुत बड़ी चूक हो चुकी थी, जो मैं चोटाला जैसे डरपोक आदमी को अपने साथ ले आया था !
लेकिन यह वक्त अपनी भूल पर पछताने का नहीं , बल्कि सामने खड़ी डायन से टकराने का है ।
मैंने शिव के अमोघ कवच का जाप करते हुए अपने थैले में से जल्दी से एक लाख शिव मंत्रों से अभिमंत्रित त्रिशूल निकाल लिया और उसको उस डायन की तरफ दे मारा !!
अगले ही क्षण जैसे सब कुछ थम गया हो!!
वह डायन गायब हो चुकी थी !
सारी तंत्रक्रिया व्यर्थ हो गई थी , सिर्फ इस चौटाला के कारण !
बीच मंत्रों के जाप में , जबकि मैंने उसे पहले ही बता दिया था, कि कोई भी शक्ति प्रकट हो तो डरना नहीं !!
ऐसी हालत में भी उसने अपना बैलेंस खो दिया, और सब खेल !
खैर!
सहसा आया हुआ खतरा टल चुका था।
ऐसी अंधेरी रात में उस बेहोश चौटाला और मेरे सिवा वहां दूर-दूर तक कोई नहीं था ।
मैंने अपना फोन निकाला और कर्मानंद को फोन लगाया ।
कर्मानंद तुरंत बाइक लेकर के वहां पहुंच गया ।
बेहोश चौटाला को बीच में बैठाया और हम वहां से निकले ।
चौटाला को मैंने कमरे में बेड पर लेटा दिया।
" इसको डिस्टर्ब करना अभी उचित नहीं होगा" - मैंने कर्मानंद की तरफ देखा ।
कर्मानंद को मैंने शॉर्टकट में सब बता ही दिया था ।
कर्मानंद अपने कमरे में गया, और मैं भी अपने छोटे वाले कमरे में जाकर सो गया।
रात बीत चुकी थी !
सुबह हो चुकी थी !
चिड़ियों के चहचहाने की आवाजें आ रही थीं।
सूरज का उजाला मेरे घर के आंगन में आ चुका था।
मैं उठा और घड़े में से पानी निकाल कर दो घूंट पानी पिया ।
मैंने देखा कर्मानंद आंगन में झाड़ू लगा रहा है।
मैंने कमरे में से बाहर आते हुए कर्मानंद से पूछा - "चौटाला को होश आया या नहीं"
"अभी तो वे अपने कमरे में ही हैं। मैंने भी देखा नहीं है!"
तब मैं चौटाला के कमरे में गया।
उसे झिंझोड़ा - "चौटाला! चौटाला!"
लेकिन उस पर कुछ फर्क नहीं पड़ा ।
मैंने कर्मानंद से एक गिलास पानी मंगवाया, और उसमें से कुछ छींटे चौटाला के ऊपर मारे।
इस बार वह थोड़ा कुनमुनाया ।
ऐसा लगा जैसे वह बहुत गहरी नींद में सो कर उठा है ।
उसकी आंखें लाल हो रही थी।
चेहरा पीला पड़ गया था।
डरी-डरी आंखों से उसने चारो तरफ देखा!
शायद वह अभी भी रात वाले डर से निकल नहीं पाया था ।
मैंने उसे सांत्वना दी - " चौटाला! घबराने की कोई बात नहीं!" "तुम सुरक्षित अपने घर पर हो!"
"कमाल करते हो यार तुम भी !"
जब तुमसे पहले ही बता दिया था सारा मामला तुमने खराब करवा दिया। खैर अब चिंता करने की कोई बात नहीं । "
मैं उससे बात कर ही रहा था, तब तक कर्मानंद अदरक की चाय बना कर ले आया था।
मैंने कप चौटाला के हाथ में कप दिया और कहा - " निश्चिंत होकर चाय पियो!"
" चौटाला! सब्र करो!" डरो मत!
"मेरे होते हुए तुम पूर्णतः सुरक्षित हो।
कोई भी आत्मा, कोई भी डायन तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती ।"
चोटाला की सांस में सांस आई- "भाईसाब मुझे क्षमा करें , उस भयंकर आकृति को देखकर मेरी बिल्कुल सांस ही रुक गई थी! मुझे पता भी नहीं चला कि कब मेरी चीख निकली और कम में बेहोश हुआ !"
"मुझे लगता है मुझे अभी आपके पास और रहना होगा! इस तंत्र की जगत् में मुझे और निपुण होना होगा!
" चौटाला सब्र कर! ये तंत्र शक्तियां!, ये मंत्र सिद्धियां!, बड़े धैर्य की चीजें होती हैं ! लोग जिंदगी गुजार देते हैं, इन्हें प्राप्त करने में !"
"कौन सी अदृश्य ताकत कब नुकसान पहुंचा दें , या का फायदा पहुंचा दें , यह कोई नहीं जानता। जो होता है अच्छे के लिए ही होता है ।
"खैर यह तो अच्छा हुआ, कि रात मैं त्रिशूल भी अपने साथ ही लेता गया था , और उसकी अमोघ शक्ति के आगे डायन भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकी, साथ ही कर्मानंद की भी हमें दाद देनी होगी । यह भी बाइक लेकर तुरंत ही पहुंच गया था ।
कर्मानंद को यह सुनकर बड़ा अच्छा लगा!
वह बोला - "गुरुदेव आपके लिए तो मैं आधी रात भी हाजिर हूं !"
"हां तो भई ! आधी रात को तो तुम हाजिर हो ही गए थे!"
फिर मैंने गंभीर होकर कहा -
"लेकिन कर्मानंद!अब तुम्हें भी बड़ा चौकन्ना होना पड़ेगा! इस घर के चारों ओर अभिमंत्रित कील गाड़ दो! किसी भी बाहरी व्यक्ति को हमारे घर के अंदर होने वाली पूजा के विषय में जरा भी भनक नहीं लगनी चाहिए।"
"हम आज से ही ग्रह शांति का पाठ करेंगे, और उस काले मंदिर के पुजारी को जवाब देंगे । चिंता मत करो। सब भला होगा।"
चौटाला अब काफी संयत हो चुका था।
तभी दरवाजे की सांकल बजी!!
"पंडित जी! चिट्ठी!
वह डाकिया था।
"आओ भई रामप्रसाद! अंदर आ जाओ!"
डाकिया- "पंडित जी! मैं फिर कभी आऊंगा आप चिट्ठी ले लीजिए! मुझे कहीं और भी जाना है।"
इस मोबाइल के जमाने में भी किसको पड़ी है चिट्ठी लिखने की!
ऐसा मन में सोचते हुए मैंने चाय का कप मेज पर रखा, और बाहर आया - "कहां से है चिट्ठी?"
"दिल्ली से कोई बृजमोहन गुप्ता हैं" - डाकिया चिट्ठी के पीछे लिखे हुए एड्रेस को देखता हुआ बोला।
मैंने उसके हाथ से चिट्ठी ली, और उसे पढ़ने लगा। उसे खोल कर पढ़ने लगा जैसे-जैसे उसे पढ़ता जा रहा था मेरे चेहरे पर विचित्र प्रकार के भाव आ रहे थे!
होठों से बरबस ही निकल पड़ा - "ओह! इसका मतलब..."
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......................
.…........................ जारी है!!
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