Tuesday, 6 August 2019

इच्छाधारी नाग - हिमांशु गौड

नागा: मनुष्यरूपेण विचरन्ति महीतले।
इच्छाधारितया ग्रामे नगरेsप्यथ मन्दिरे।।
नरौरायां तु ते सर्पा: विप्रैर्मित्रत्त्वमागता:।
कैश्चिन्न परिचीयन्ते, केवलं मादृशैर्जनै:।।
अर्थात् -
और  वे इच्छाधारी नाग, गांवों में शहरों में और बहुत से मंदिरों में, मनुष्य का रूप धारण करके घूमते फिरते हैं ।
और उस विद्वन्नगरी  में तो मनुष्यरूपधारी वे  तप:शक्ति युक्त नाग, कुछ लोगों  से बात भी कर लेते हैं ।
लेकिन कोई उन्हें पहचान नहीं पाता है।

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