अपने कवि होने का घमंड मत करिए! अपने हृदय पर हाथ रखिए ,
और सोचिए कि हम कितने मौलिक हैं !
कितने पानी में हैं!
पदवीधारी होने से कुछ नहीं होता !
ऐसा ना हो कि कोई प्रच्छन्नपुरुष
किसी दिन आकर भरी सभा में आपका अभिमान नष्ट कर दे
------------++++++--------------
एक प्रोफेसर की पोस्ट देख रहा था , जो कवि भी थे !
उन्होंने किसी विषय में
२ श्लोकों की रचना करके
फेसबुक पर पोस्ट किए थे !
किसी लड़के ने उनको कॉपी करके अपनी फेसबुक पर पोस्ट कर दिया,
लेकिन प्रोफेसर का नाम भी नहीं लिखा ,अपना बता करके !
मैं मानता हूं , कि वह गलत था !
किसी की पोस्ट चोरी करना!
किसी की श्लोकरचना को अपना बताना!
वाकई गलत है!!
साथ ही ,
जब प्रोफेसर को पता चला ,
तो उन्होंने उस का स्क्रीनशॉट लेते हुए,
फिर एक पोस्ट किया और लिखा - देखो! कैसे कैसे काव्यचोर पड़े हैं !
यहां प्रोफ़ेसर साहब गलत नहीं है!
हां, हम लड़के की गलती या नासमझी भी समझते हैं!
ऐसा मेरे साथ भी एक-दो बार हो चुका है, कि मेरी रचना को किसी ने अपने नाम से फेसबुक पर पोस्ट किया हो!
लेकिन मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया!!
अब आते हैं , मुख्य बात पर !
मैं सबकी बात नहीं करता लेकिन
आज के अधिकतर जितने भी कवि हैं ,
बड़े-बड़े काव्य करके प्रशस्ति पाते हैं !
नाम पाते हैं !
पदों पर प्रतिष्ठित हो जाते हैं !
नानी-ग्रामी प्रोफेसर कहलाते हैं !
अगर हम उनके काव्यों को उठाकर देखें और उनका आलोचनात्मक अध्ययन करें ,
तो मेरे ख्याल से पूरी दुनिया में पांच ही परसेंट काव्य बचेगा जो मौलिक हो ,
अन्यथा सब लोग शास्त्रों में से चोरी करके अपना काव्य बता डालते हैं!
मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि
आप शास्त्रों से अलग भागेंगे कहां??
दूसरी बात -
आज अगर महर्षि वाल्मीकि और महर्षि वेद व्यास
यह दोनों ऋषि आ करके अपना कॉपीराइट मांगने लग जाए ,
तो पूरी दुनिया में एक पर्सेंट काव्य भी
शायद मौलिक ना बचे!!
तो सब का विचार है खैर,
अपना अपना!
मेरा तो बस यही कहना है ,
कि आप अगर कुछ काव्य रचना कर पाते हैं, तो ज्यादा इतराइए मत!
क्योंकि अगर किसी ने आलोचनात्मक अध्ययन करना शुरू कर डाला तो........
और सोचिए कि हम कितने मौलिक हैं !
कितने पानी में हैं!
पदवीधारी होने से कुछ नहीं होता !
ऐसा ना हो कि कोई प्रच्छन्नपुरुष
किसी दिन आकर भरी सभा में आपका अभिमान नष्ट कर दे
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एक प्रोफेसर की पोस्ट देख रहा था , जो कवि भी थे !
उन्होंने किसी विषय में
२ श्लोकों की रचना करके
फेसबुक पर पोस्ट किए थे !
किसी लड़के ने उनको कॉपी करके अपनी फेसबुक पर पोस्ट कर दिया,
लेकिन प्रोफेसर का नाम भी नहीं लिखा ,अपना बता करके !
मैं मानता हूं , कि वह गलत था !
किसी की पोस्ट चोरी करना!
किसी की श्लोकरचना को अपना बताना!
वाकई गलत है!!
साथ ही ,
जब प्रोफेसर को पता चला ,
तो उन्होंने उस का स्क्रीनशॉट लेते हुए,
फिर एक पोस्ट किया और लिखा - देखो! कैसे कैसे काव्यचोर पड़े हैं !
यहां प्रोफ़ेसर साहब गलत नहीं है!
हां, हम लड़के की गलती या नासमझी भी समझते हैं!
ऐसा मेरे साथ भी एक-दो बार हो चुका है, कि मेरी रचना को किसी ने अपने नाम से फेसबुक पर पोस्ट किया हो!
लेकिन मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया!!
अब आते हैं , मुख्य बात पर !
मैं सबकी बात नहीं करता लेकिन
आज के अधिकतर जितने भी कवि हैं ,
बड़े-बड़े काव्य करके प्रशस्ति पाते हैं !
नाम पाते हैं !
पदों पर प्रतिष्ठित हो जाते हैं !
नानी-ग्रामी प्रोफेसर कहलाते हैं !
अगर हम उनके काव्यों को उठाकर देखें और उनका आलोचनात्मक अध्ययन करें ,
तो मेरे ख्याल से पूरी दुनिया में पांच ही परसेंट काव्य बचेगा जो मौलिक हो ,
अन्यथा सब लोग शास्त्रों में से चोरी करके अपना काव्य बता डालते हैं!
मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि
आप शास्त्रों से अलग भागेंगे कहां??
दूसरी बात -
आज अगर महर्षि वाल्मीकि और महर्षि वेद व्यास
यह दोनों ऋषि आ करके अपना कॉपीराइट मांगने लग जाए ,
तो पूरी दुनिया में एक पर्सेंट काव्य भी
शायद मौलिक ना बचे!!
तो सब का विचार है खैर,
अपना अपना!
मेरा तो बस यही कहना है ,
कि आप अगर कुछ काव्य रचना कर पाते हैं, तो ज्यादा इतराइए मत!
क्योंकि अगर किसी ने आलोचनात्मक अध्ययन करना शुरू कर डाला तो........
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