यह बात आज से लगभग 100 साल पुरानी है ।
नरवर विद्यालय के संस्थापक एवं तपस्वी संत श्रीजीवनदत्तजी महाराज, नरवर स्थित गंगा जी के तट पर बैठे हुए तपस्या कर रहे थे ।
एक बूढ़ी मां अपने इकलौते जवान लड़के के साथ, गंगा नहाने आई थी ।
लड़का ना जाने कैसे गंगा की धार में बह गया ।
अब तो बुढ़िया ने रोना-पीटना शुरू कर दिया - " बचाओ बचाओ" !
लेकिन कोई भी गंगा जी की तेज धार में कूदने को तैयार नहीं हुआ।
तब वह बुढ़िया रोती हुई वहां गई, जहां महाराज जी तपस्या कर रहे थे ।
रोते-रोते कहा - महाराज जी! किसी भी तरह मेरे इकलौते पुत्र को बचा लीजिए! तब महाराज जी ने हाथ में संकल्प लेकर, अपनी तपस्या का कुछ अंश उसके बेटे को दे दिया, और कहा - "जाओ तुम्हारा पुत्र जीवित खड़ा है आगे"!
वह बुढ़िया जब गंगा जी के किनारे चलते-चलते कुछ दूर पहुंची ,
तो वह लड़का किनारे पर ही खड़ा था।
ऐसा था तपस्या-प्रभाव उन संत का!
जिसके प्रभाव से है वह लड़का, जो डूब रहा था किनारे लग गया और उसको जीवनदान मिला।
आजकल ऐसे संतों का बहुत अभाव है।
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२:४९ अपराह्णे
२८-०६-२०१९
गाजियाबादे
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