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नरवर की कहानियां

[9/11, 8:34 PM] Himanshu Gaur: आज जब दोपहर के भोजन में दाल चावल के बाद चावल बूरा मिलाकर खाया तो विद्यार्थी जीवन के वे दिन याद आ गए,
जब अष्टमी और प्रतिपदा के दिन हमारी कुटिया पर दाल चावल बनते थे,
और गुरु जी स्वयं अपने हाथ से सब बच्चों को बूरा भी परोसते थे ।
उस समय , वह दिन हमारे लिए उत्सव के समान होता था "कि चावल के साथ बुरा खाने को मिलेगा लेकिन " !
अब बूरा की छोड़िए, सैकड़ों पकवान भी रख दो, तब भी खाने की अधिक इच्छा नहीं करती ।
भूख ही कम लगती है ।
एक समय वह था जब कुटिया का कम से कम भोजन करने वाला, विद्यार्थी भी 15 रोटियां एक समय में खाता था ,
और 1 घंटे कम से कम गंगा जी में तैरता था , और जो ज्यादा खाने वाले हैं उनका तो कहना ही क्या!
55 रोटियां तो पंडित पेटूराम ही खाते थे ,
और 1 दिन में तीन-चार बार पूरी गंगा जी को पार कर डालते थे !
ऐसे ऐसे महान् योद्धा ,
अपने ब्रह्मचर्य और वेद-शास्त्रों की ताकत से और से उत्पन्न हुए ,
जिन्होंने भगवान् शंकर का अभिषेक करते-करते अपनी उम्र गला डाली !
जिन्होंने दुर्गा-सप्तशती का पाठ करती करती देवी-लोक के लिए विमानारूढ हो गए !
और इस धरती पर अपने स्वरूप से ही लोगों के आदर्श स्वरूप रहे और भगवान की भक्ति का प्रचार किया।
खैर, बात उन दिनों की है जब अष्टमी और प्रतिपदा की साप्ताहिक छुट्टी हमारे यहां होती थी , तब गुरुजी प्रायः कुटिया पर परिश्रम का आयोजन करते थे जिसमें कभी-कभी लकड़ी लाना , कभी-कभी सफाई करना , कभी कभी गुलाबों के बाग लगाना ,
कभी-कभी वहां पर स्थित कूड़ा करकट साफ करना ,
यहां तक कि वहां पर रहने वाले छात्रों ने कई बार तो कमरे भी खुद ही चिन डालें ।
इस समय वहां आज उपस्थित जो छात्र हैं , उनको शायद इस आश्रम के भूतपूर्व विद्यार्थियों एवं गुरु जी का यह परिश्रम और संघर्ष ना पता हो !
लेकिन वे वास्तव में विद्या प्राप्ति हेतु विशिष्ट दिन थे!
हमने इस 21 वी शताब्दी में भी इस तरह से विद्या प्राप्त की , जैसे सैकड़ों साल पहले ऋषि मुनि वृक्ष के नीचे बैठकर करते थे ।
बिल्कुल ये ही चित्र थे !
गुरु जी हमें पढ़ाते थे ,
चारों तरफ मोर, तोता, कोयल, सांप , नेवला इत्यादि अनेक प्रकारों के जीव-जंतुओं से घिरा हुआ, वह क्षेत्र बड़ा ही प्राकृतिक शोभापन्न
रहता था ।
हरे-भरे वृक्ष, लता-वितान और कदली-दल-मंडप से मंगल-दायक , वह श्री बाबा गुरुजी का आश्रम ऐसा मालूम पड़ता था जैसे कादंबरी में बाणभट्ट जी ने जाबालि ऋषि का आश्रम बताया है ।
वहां कोई कोई ब्राह्मण चंदन घिस रहे हैं, कोई-कोई ब्राह्मण कुशों की मेखला बना रहे हैं,
कोई गुरुजी के लिए पुष्प तोड़ कर ला रहे हैं
[9/11, 8:36 PM] Himanshu Gaur: कोई भगवान शिव के पूजन की तैयारी कर रहे हैं ,
कोई वेदों का पाठ कर रहा है,
कोई अपने माथे पर त्रिपुंड लगा रहा है ,
कोई भगवद्गीता का पाठ कर रहा है ,
इस तरह से वह आश्रम ,
इस कलयुग में भी मानों सतयुग आ गया हो,
मानों धर्म , साक्षात् आश्रम के रूप में प्रकट हो गया हो,
मानों, भगवान् शंकर की कृपा का साक्षात्कार उस नगरी के ब्राह्मणों को प्राप्त हो गया हो ,
मानो गंगा के जल की महिमा से, जीवित रहते हुए भी मोक्ष की अवस्था में वे सब लोग चले गए हों,
मानों, वेदांत-वाक्यों को पढ़ते-पढ़ते वे स्वयं ही,
मूर्तिमान् वेद पुरुष हो गए हों ....
.... जारी है।

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