और फिर कई शरद आईं और गईं, वसन्त,ग्रीष्म,वर्षा,शीत,हेमन्त बार बार आ आ कर जाने लगीं , लेकिन उनके तप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उनके तप में कुछ और तीव्रता आ गई , उनका संयम कुछ और गाढ़ा होने लगा , उनके मंत्रों की शक्ति कुछ और बढ़ने लगी, उनका वैराग्य कुछ और प्रबल होने लगा , उनका शरीराध्यास बिल्कुल नष्टप्राय हो गया , सांसारिक वस्तुएं उनके मन को मोह ना सकीं ।
और तब बहुत वर्षों के बाद,
इस सृष्टि के एकमात्र स्वामी भगवान् वृषभध्वज, अपने महान् तपोमय स्वरूप के साथ प्रकट हुए । उस समय काल का वेग रुक गया, दिशाएं समाप्त हो गई ।
मानों, पंचभूतों से परे जो महादेव हैं, उन्होंने अपनी इच्छा से पांचभौतिक जगत में अपने स्वरूप को दर्शाया।
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