स्वामी जी! एक जिज्ञासा है जो मैं आपसे बोलना चाहता हूँ,
जन-जन में धर्म का रस घोलना चाहता हूँ,
हर एक मामले को वेदों की दृष्टि से तोलना चाहता हूँ ,
अगर आप आज्ञा दें, तो मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।1।।
वहाँ के बच्चे मोटी सी चुटिया रखेंगे,
सदा अपने पास ताँबे की लुटिया रखेंगे,
रहनें के लिए बनाकर कुटिया रखेंगे,
ऐसा अहोक्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप कमण्डल दिलावें,
तो मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।2।।
वहाँ सबके मोटे-मोटे पेट होंगे,
वे निमन्त्रण में कभी नहीं लेट होंगे,
उन्हें काम नहीं होगा कोई दूजा,
खूब घण्टी बजा-बजाके करेंगें पूजा
श्राद्धभोजी परम्परा का अभिक्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप 5 पूड़ी और खा सकें
तो मैं आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।3।।
शादी-ब्याह नामकरण में लोग उन्हें ही बुलाएंगे,
बड़ी श्रद्धा से उनके चरण धुलाएंगे,
कथाओं द्वारा, असली धर्म का स्वरूप जानेंगे,
तभी तो लोग उन्हें मानेंगे,
सरल-विप्र-सम्मान का पुनःक्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप जाप कर चुके
तो मैं आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।4।।
कुछ शास्त्र-मार्ग के गामी हों, कुछ होंवें अवधूत
जिनके मन्त्रों को सुनकर के भागेंगे सब भूत
पौराणिक-धाराओं में जो हो जाएँ संस्यूत
ऐसा एक शिवक्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप पूजा कर चुके ,तो मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ।।5।।
वहाँ के ब्राह्मणों को पण्डिताई का बढिया ज्ञान होगा
हर भण्डारें में उनका सम्मान होगा
तेहरावनी भी लोग उन्हें ही खिलवाएंगे,
हर दावत में उनको ही बुलवाएँगे
ऐसा एक भोजक्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप लड्डू खा चुके,
तो मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ।।6।।
किसी भी विषय में नहीं होंगे कच्चे
दिल के साफ और मन के सच्चे
वेद और व्याकरण में पारङ्गत होंगे जहाँ के बच्चे
ऐसा एक परिश्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप अनुमोदन करें तो,मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।7।।
जहाँ रोज रुद्र के मन्त्र पढे जाएँगें,
तपस्याओं के नयें प्रतिमान गढे जाएँगें,
नये विषयों में भी छात्र आगे बढे जाएँगें,
धर्म के लिए युद्ध लड़े जाएँगें,
ऐसा एक अनुक्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप त्रिपुण्ड्र लगा चुके
तो मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।8।।
आजकल दुष्टों ने बड़ा आतङ्क मचा रक्खा है,
पौराणिक लोगों पर हा, डंक गड़ा रक्खा है,
पूरे ही राष्ट्र,धर्म पर कलङ्क अड़ा रक्खा है
इन पाप-कर्मों का अन्त खोलना चाहता हूँ,
अगर आपने त्रिशूल उठा लिया,
तो मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।9।।
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