Skip to main content

आश्रम खोलना चाहता हूँ : हिमांशु गौड


स्वामी जी! एक जिज्ञासा है जो मैं आपसे बोलना चाहता हूँ,
जन-जन में धर्म का रस घोलना चाहता हूँ,
हर एक मामले को वेदों की दृष्टि से तोलना चाहता हूँ ,
अगर आप आज्ञा दें, तो मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।1।।

वहाँ के बच्चे मोटी सी चुटिया रखेंगे,
सदा अपने पास ताँबे की लुटिया रखेंगे,
रहनें के लिए बनाकर कुटिया रखेंगे,
ऐसा अहोक्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप कमण्डल दिलावें,
तो मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।2।।

वहाँ सबके मोटे-मोटे पेट होंगे,
वे निमन्त्रण में कभी नहीं लेट होंगे,
उन्हें काम नहीं होगा कोई दूजा,
खूब घण्टी बजा-बजाके करेंगें पूजा
श्राद्धभोजी परम्परा का अभिक्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप 5 पूड़ी और खा सकें
तो मैं आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।3।।

शादी-ब्याह नामकरण में लोग उन्हें ही बुलाएंगे,
बड़ी श्रद्धा से उनके चरण धुलाएंगे,
कथाओं द्वारा, असली धर्म का स्वरूप जानेंगे,
तभी तो लोग उन्हें मानेंगे,
सरल-विप्र-सम्मान का पुनःक्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप जाप कर चुके
तो मैं आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।4।।

कुछ शास्त्र-मार्ग के गामी हों, कुछ होंवें अवधूत
जिनके मन्त्रों को सुनकर के भागेंगे सब भूत
पौराणिक-धाराओं में जो हो जाएँ संस्यूत
ऐसा एक शिवक्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप पूजा कर चुके ,तो मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ।।5।।

वहाँ के ब्राह्मणों को पण्डिताई का बढिया ज्ञान होगा
हर भण्डारें में उनका सम्मान होगा
तेहरावनी भी लोग उन्हें ही खिलवाएंगे,
हर दावत में उनको ही बुलवाएँगे
ऐसा एक भोजक्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप लड्डू खा चुके,
तो मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ।।6।।

किसी भी विषय में नहीं होंगे कच्चे
दिल के साफ और मन के सच्चे
वेद और व्याकरण में पारङ्गत होंगे जहाँ के बच्चे
ऐसा एक परिश्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप अनुमोदन करें तो,मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।7।।

जहाँ रोज रुद्र के मन्त्र पढे जाएँगें,
तपस्याओं के नयें प्रतिमान गढे जाएँगें,
नये विषयों में भी छात्र आगे बढे जाएँगें,
धर्म के लिए युद्ध लड़े जाएँगें,
ऐसा एक अनुक्रम खोलना चाहता हूँ,
अगर आप त्रिपुण्ड्र लगा चुके
तो मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।8।।

आजकल दुष्टों ने बड़ा आतङ्क मचा रक्खा है,
पौराणिक लोगों पर हा, डंक गड़ा रक्खा है,
पूरे ही राष्ट्र,धर्म पर कलङ्क अड़ा रक्खा है
इन पाप-कर्मों का अन्त खोलना चाहता हूँ,
अगर आपने त्रिशूल उठा लिया,
तो मैं एक आश्रम खोलना चाहता हूँ ।।9।।

Comments

Popular posts from this blog

संस्कृत सूक्ति,अर्थ सहित, हिमांशु गौड़

यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु: हंसा महीमण्डलमण्डनाय हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां येषां मरालैस्सह विप्रयोग:।। हंस, जहां कहीं भी धरती की शोभा बढ़ाने गए हों, नुकसान तो उन सरोवरों का ही है, जिनका ऐसे सुंदर राजहंसों से वियोग है।। अर्थात् अच्छे लोग कहीं भी चले जाएं, वहीं जाकर शोभा बढ़ाते हैं, लेकिन हानि तो उनकी होती है , जिन लोगों को छोड़कर वह जाते हैं ।  *छायाम् अन्यस्य कुर्वन्ति* *तिष्ठन्ति स्वयमातपे।* *फलान्यपि परार्थाय* *वृक्षाः सत्पुरुषा इव।।* अर्थात- पेड को देखिये दूसरों के लिये छाँव देकर खुद गरमी में तप रहे हैं। फल भी सारे संसार को दे देते हैं। इन वृक्षों के समान ही सज्जन पुरुष के चरित्र होते हैं।  *ज्यैष्ठत्वं जन्मना नैव* *गुणै: ज्यैष्ठत्वमुच्यते।* *गुणात् गुरुत्वमायाति* *दुग्धं दधि घृतं क्रमात्।।* अर्थात- व्यक्ति जन्म से बडा व महान नहीं होता है। बडप्पन व महानता व्यक्ति के गुणों से निर्धारित होती है,  यह वैसे ही बढती है जैसे दूध से दही व दही से घी श्रेष्ठत्व को धारण करता है। *अर्थार्थी यानि कष्टानि* *सहते कृपणो जनः।* *तान्येव यदि धर्मार्थी* *न  भूयः क्लेशभाजनम्।।*...

Sanskrit Kavita By Dr.Himanshu Gaur

संस्कृत क्षेत्र में AI की दस्तक

 ए.आई. की दस्तक •••••••• (विशेष - किसी भी विषय के हजारों पक्ष-विपक्ष होते हैं, अतः इस लेख के भी अनेक पक्ष हो सकतें हैं। यह लेख विचारक का द्रुतस्फूर्त विचार है, इस विषय पर अन्य प्रकारों से भी विचार संभव है। ) ****** पिछले दशकों में किसी विद्वान् के लिखे साहित्य पर पीएचडी करते थे तब प्रथम अध्याय में उस रचयिता के बारे में जानने के लिए, और विषय को जानने के लिए उसके पास जाया करते थे, यह शोध-यात्रा कभी-कभी शहर-दर-शहर हुआ करती थी! लेकिन आजकल सब कुछ गूगल पर उपलब्ध है, आप बेशक कह सकते हैं कि इससे समय और पैसे की बचत हुई। लेकिन इस बारे में मेरा नजरिया दूसरा भी है, उस विद्वान् से मिलने जाना, उसका पूरा साक्षात्कार लेना, वह पूरी यात्रा- एक अलग ही अनुभव है। और अब ए.आई. का जमाना आ गया! अब तो 70% पीएचडी में किसी की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। बेशक नयी तकनीक हमें सुविधा देती है, लेकिन कुछ बेशकीमती छीनती भी है। आप समझ रहे हैं ना कि कोई व्यक्ति आपके ही लिखे साहित्य पर पीएचडी कर रहा है और आपकी उसको लेश मात्र भी जरूरत नहीं! क्योंकि सब कुछ आपने अपना रचित गूगल पर डाल रखा है। या फिर व्याकरण शास्त्र पढ़ने के लिए...