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शाहरुख खान के लिए संस्कृत कविता

क्वचिन्मयाऽनुभूयते यदहमेव
शाहरुखखानोऽस्मि!
तस्य प्रणयाकर्षिनेत्रेऽवलोक्य
का न जायेत मुग्धा!

तस्य च प्रणयनिवेदनकला
कां नाकर्षयेत् तत्कालं,
तत्स्मितमश्रूणि च युगपदेवावलोक्य
को न वक्ति तं शृङ्गारसम्राडिति!

वीर-ज़ाराख्यं वा चलच्चित्रं दृष्ट्वा
तद्गानरागाभिनयादिकमालोक्य निशम्य च,
को नैष्यति सरागतामात्मानमपि तत्रैवारोपयन् !

"वधूं नयिष्यन्ति सहृदया" इत्यत्र वा
तत्कृतमभिनयं प्रणयकथां वा
स्वान्त:पर्यन्तमनुभूय
को न हर्षति सुहृज्जन:!

कृतबुद्धिपराक्रमकौतुकाभिनय:
स एव च डॉनत्वमगाद्दर्शितडॉनरूप:!

शाहरुख़प्रभृतीनां नृत्यत्येव स्वाभाविकी गुणप्रशंसा,
सहृदयाधरेषु गुणवताम्!

मोहब्बताख्ये चलच्चित्रेऽमिताभाऽभिनयस्त्वस्त्येव न:प्रिय:,
यश्च विस्मरेत्तत्र शाहरुखाभिनेतृकलाम्
मन्ये सोऽप्यमान्य:!

मज्ज्ञातृभिर्न चिन्त्यतां यत्कथमहं
सन्नीदेवलायमानोऽपि
शाहरुखप्रशंसनपरो वर्ते!

मन्येऽपक्षपातिनो वस्तुत:
कवित्त्वमीयुरिति गीयेरञ्जनै:!

अतो कामिनीरञ्जनेऽहमपि
भवेयं शाहरुख़श्चेति प्रयत्नपरो
न को युवाऽद्याऽवलोक्यते!

स एव बादशाहबाज़ीगर-
किंगख़ानाद्यनेकाख्यैरभिधीयते लोके!

अतश्शाहरुख़! त्वम्मामपि
सर्वसुन्दरीरञ्जनकलां शिक्षय,
येनाहमपि यौवनसुखं लभेय!

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