खाना खाने के बाद दोपहर को २:०० बजे लगभग मेरी नींद लग गई और मैं सो गया।
जब मेरी नींद खुली , शाम के ५:०० बज रहे थे , और बिजली गुल थी।
मैंने आज दोपहर ही फिर से एक बहुत अच्छा सपना देखा।
और फिर सोकर जागने के बाद मैंने थोड़ा सा पानी पिया!
चाय की तलब जगी ,
तो फिर अलमारी से कुछ पैसे लिए और थैला लेकर दूध लेने के लिए निकल पड़ा ।
मैंने देखा पूरा माहौल एक सांवले रंग का हो चुका था ।
तो फिर अलमारी से कुछ पैसे लिए और थैला लेकर दूध लेने के लिए निकल पड़ा ।
मैंने देखा पूरा माहौल एक सांवले रंग का हो चुका था ।
बारिश की वजह से जगह-जगह पानी भरा हुआ था ।
मेरा चश्मा एक दिन पहले ही जिसकी 1 डंडी टूट चुकी थी , मैंने वह पहना नहीं था ।
और आज मैं बिना चश्मे के ही दूध लेने जा रहा था, तब मुझे महसूस हुआ कि बिना चश्मे के भी मेरा काम चल सकता है।
खैर मोहल्ले में उपस्थित सभी लोगों को एक परछाई की तरह देखता हुआ मैं दूध वाले की दुकान पर पहुंचा ।
वह हमेशा की तरह अपनी सीट से गायब था और दुकान से सटे अपने घर में घुसा हुआ था।
मैंने आवाज लगाई, तो वह आया।
उस समय वो फोन पर बात कर रहा था ,
फिर भी उसने फ्रिज में से दूध निकाला और मुझे दिया ।
एक थैली पर पिछले दिन की तारीख यानी (१६/०१/२०२०) लिखी हुई थी , इसलिए मैंने उसे इशारा किया, तो उसने वह बदल कर दिया ।
फिर भी उसने फ्रिज में से दूध निकाला और मुझे दिया ।
एक थैली पर पिछले दिन की तारीख यानी (१६/०१/२०२०) लिखी हुई थी , इसलिए मैंने उसे इशारा किया, तो उसने वह बदल कर दिया ।
फिर मैं घूमा और वापस अपने घर आ गया ।
दूध रसोई में रखा , और कर्मानंद को चाय बनानेे के लिए कहकर उसी कमरे में आ गया जहां शाम का दीपक जल चुका था,
और शुक्रवार की पूजा भी हो चुकी थी ।
दूध रसोई में रखा , और कर्मानंद को चाय बनानेे के लिए कहकर उसी कमरे में आ गया जहां शाम का दीपक जल चुका था,
और शुक्रवार की पूजा भी हो चुकी थी ।
उससे कुछ ही दूर मेरा बेड पड़ा हुआ था उस पर मैं लेटा हुआ हूं और यह कहानी लिख रहा हूं ।
आज ही , यानी कि 17 जनवरी 2020 !!
आज ही , यानी कि 17 जनवरी 2020 !!
मैं फिर से रजाई के अंदर घुसा , और अपने झिलमिलातेे सपनों की यादों में खो गया।
लाइट अभी तक गुल है , और मेरे कक्ष में उसी पूजा के दीपक की ही रोशनी है।
वैसे मुझे मोमबत्ती या दीपक के प्रकाश से बहुत लगाव है कभी-कभी के लिए!
और जब लैपटॉप उठाकर काम करने का मन हो, उस वक्त मुझे बिजली पसंद है ।
जब सपने देखने का मन हो तो candle light या dim light पसंद है ।
इस तरह आदमी का मन अलग-अलग समय, अलग-अलग प्रकार का होता है।
जब कभी मेरे साथ अक्सर यह लम्हें साल में दो-चार बार आते हैं , कि मैं दोपहर को सोता हूं और शाम को उठता हूं , तो लाइट गुल,
यह मुझे बहुत पसंद है ।
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एकदम गहरे सपने देख कर उठने वाला!
एक बार ऐसा, उस वक्त हुआ ,
एक बार ऐसा, उस वक्त हुआ ,
जब मैं भोपाल में रहकर स्वरशास्त्र में research कर रहा था और हॉस्टल के कक्ष संख्या 135 में रहता था ।
वह सन् २०१५ के सितंबर का महीना था ,
कि जब मैं शाम को 4:30 बजे सोया था और 7:00 बजे जब मैं उठा तो लाइट गई हुई थी।
कि जब मैं शाम को 4:30 बजे सोया था और 7:00 बजे जब मैं उठा तो लाइट गई हुई थी।
मैंने चारों तरफ देखा तो वही अंधेरा !
उठकर बाहर आया, तो बाहर मेरी पूरी गैलरी में ही अंधेरा हो रहा था ,लेकिन जैसे ही मैं होटल से बाहर आया देखा कि बहुत से कक्षों की लाइट जल रही हैं ।
बाहर अभिनय मौर्य , धर्मेंद्र शर्मा, अखिलेश त्रिपाठी , आदि बैठे हुए कुछ बातें कर रहे थे ।
मैंने उस वक्त एक सफेद सूती कमीज जिस पर हरे रंग की हल्की धारियां थी , और एक नीले रंग का लोवर पहन रखा था ।
उस वक्त मैं चश्मा लगाता नहीं था।
उस वक्त मैं चश्मा लगाता नहीं था।
मैं बाहर आया , और बोला - "धर्मेंद्र ! ये लाइट क्यों गई हुई है ??
"पता नहीं चेक करना पड़ेगा"
" कोई बात नहीं मेरा अभी मन नहीं"
"चलो चाय पीने चलते हो क्या??"
वह तैयार हो गया !
फिर हम चले !
वह पूरा रास्ता मैंने सपने में ही तय कर लिया!
वहां चाय पीने के बाद मुझे जागृति आई !
उस दिन की याद मुझे आज इसलिए आई,
क्योंकि उस दिन भी मैंने एक विशेष सपना देखा था!
क्योंकि उस दिन भी मैंने एक विशेष सपना देखा था!
जिसमें मेरे पूज्य बाबा जी , जो सन् 2007 में चल बसे थे , मुझे उसी दिन सपने में दिखाई दिए थे ।
वैसे वे मुझे अक्सर सपने में दिखाई देते रहते थे, क्योंकि उनका मुझसे बड़ा लगाव था!
मेरा बचपन ही उनके ही साथ में बीता था, इसलिए ही शायद मेरे मन पर उनकी बहुत गहरी छवि बनी हुई है !!
उस दिन सपने में मैंने देखा - वही उनका स्वरूप!
जब मैं बचपन में चाय लेकर उनके लिए जाता था , और हम दोनों ही चाय पीते थे !
सपने में मैंने फिर वही देखा कि
मैं अब 24 साल वाला हिमांशु हो चुका हूं , और उनके लिए चाय लेकर जा रहा हूं !
मैं अब 24 साल वाला हिमांशु हो चुका हूं , और उनके लिए चाय लेकर जा रहा हूं !
और हम ने वहां चाय पी !
लेकिन विचित्र बात ये हुई कि बाबा जी ने ,
उनके पास जो दो कप थे,
उनके पास जो दो कप थे,
उनमें से एक कप का नाम "गांधी" और दूसरे का नाम "नेहरू" रखा हुआ था !
और मुझसे उन्होंने कहा कि तू "नेहरू" में चाय पी मैं "गांधी" में चाय पीता हूं !
और आप जानते ही हैं , 'सपने तो सपने हैं'!
वह चाय पीने का स्थान मेरे जन्म भूमि स्थित, बाजार में स्थित , घर का था ।
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लेकिन जैसे ही मैंने चाय की दूसरी चुस्की ली,
वह स्थान परिवर्तित होकर मेरे बाबा जी के साथ ही भोपाल केंपस की मेरे कमरे की मेरी बालकनी में बन गया,
जहां से मैं अक्सर सूर्यास्त के दृश्य को देखा करता था ।
वह स्थान परिवर्तित होकर मेरे बाबा जी के साथ ही भोपाल केंपस की मेरे कमरे की मेरी बालकनी में बन गया,
जहां से मैं अक्सर सूर्यास्त के दृश्य को देखा करता था ।
और तीसरी चुस्की, जैसे ही ली , फिर मेरे गांव के चौराहे पर स्थित आम के बाग का हो गया !
सपनों की यही तो मनमोहकता है !
यदि आप चिंतन करते हैं , तो एक क्षण में ही हजारों किलोमीटर की दूरियां मिट जाती हैं !
हम अपनी कल्पनाओं में कुछ भी , किसी तरह का भी भवन बना सकते हैं !
कहीं भी एक क्षण में जा सकते हैं !
कुछ भी मनचाहा पदार्थ खा भी सकते हैं ,और कुछ भी बन सकते हैं !!
जो चीज हकीकत की दुनिया में , लाखों यत्न करके भी हासिल नहीं होती , वह स्वप्न में मनुष्य तुरंत हासिल कर सकता है !
ऐसे देखा जाए तो यह संसार भी एक सपने की तरह ही है।
ऐसे देखा जाए तो यह संसार भी एक सपने की तरह ही है।
.......☕☕☕
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......... आज की शाम!
......बस इतना ही!!
......बस इतना ही!!
©हिमांशु गौड़
लेखन समय और दिनांक - ०६:४१ शाम, १७/०१/२०२०, गाजियाबाद।
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अद्भुत अभिव्यक्ति, यह कल्पना एक दिन मील का पत्थर साबित होगी।
ReplyDeleteजय हो
ReplyDeleteअद्वितीय स्वप्न शैली