Sunday, 19 January 2020

द्व्यक्षरी श्लोक - सिर्फ दो अक्षरों से रचित श्लोक

सरससारसरं सरसस्सरे-
स्सरिरसौ रसिराससरोरिरास्-
सर रसासुसरे सुरसंसरिस्
सररसासरसौरसरारसे: ।।

विच्छेद:

प्रथमपङ्क्ति:-
(हे परमात्मन् त्वं)

सरस: - रसेन सहित:, यस्सार: (कस्यापि वस्तुनस्तत्त्वभूत:, यथा दुग्धस्य घृतमित्यादि)(अर्थात् त्वं सरस एव सारोसि),  तस्य सर:, तं
(त्वं) सरस: सरे:! (तादृक्त्वं = सरससारसरत्त्वं सरसीति वा - सरससारसर: (त्वं सरसस्सन्नपि सरेरित्यर्थ:))

हे परमात्मा ! आप खुद रसवान् हैं और फिर सरस तत्त्व भूत पदार्थ वाले (सर) सरोवर या जल को प्राप्त करते हैं या वहां गतिमय दिखते हैं।

द्वितीयपङ्क्ति: -

एवं च, त्वमसौ सरि: (निर्झरोसि) (सृ अच् इन्) , रसीनां य: रास: , तं ये सरन्तीति रसिराससरा:, तेषामपि ये उरिण: (ऋ गतौ इत्यस्मात्कर्तर्यचि उर:, पश्चादिनि ) तेषु (तन्मनस्सु) अपि रा: ( रासीति रा:) इति रसिराससरोरिरा इति चापि त्वमसीति भाव:!
(नह्यत्र सान्तो रूढश्च उरस्-शब्दश्शङ्क्य:, अपितु यौगिकोऽकारान्तश्च इन्नन्तो सहृदय इत्यर्थको ग्राह्य: )

हिंदी -

आप खुद बहुत (सरिन्) झरने जैसे गतिमान् स्वरूप वाले हैं और रसिक लोगों (रसिन्) का जो आनंद है , उसको जो प्राप्त करते हैं (रसिराससरा:) , ऐसे लोगों को भी गति प्रदान करने वाले मनुष्यों (रसिराससरोरिण:) के मन में (या उन लोगों में) आप (रातीति रा:) रमण करने वाले हैं।

तृतीयपङ्क्ति: -

हे रस! रसधातोरचि,(रस शब्दे आस्वादने वात्र ग्राह्य:, परमात्मवाची), त्वं असुसरे (असून् सरतीति असुसर: प्राणी, तस्मिन्) सर , वहेत्यर्थ:, (त्वं तु) सुरसंसरि: इव (सुरा अपि संसरिण इव यस्मात्) (यदपेक्षया) असि ।

हे रसस्वरूप परमात्मा!
आप इन प्राण धारियों में भी (जीवंतता रूपी) आनंद या ध्वनिस्वरूप बनकर बहते हो । अरे! आप को देखें तो ये देवता लोग भी संसारी की तरह ही प्रतीत होते हैं।

चतुर्थ -

हे सराणां (गतिशीलिनामथवा जलादिनां) रस!
त्वं असरेषु (अगतिशीलेषु , आलस्ययुतेषु) सौर इव (शनैश्चर इव) सर: (गतिमान्) आरसे: (आस्वादनं करोसीति, अथवा अलसेषु शनिरिव मन्दत्त्वेन सर इव आरसे: शब्दितो भवसीत्यर्थ:)

हे गतिशील जलादि की तरह सरस-स्वभाव वाले!
तुम अगतिक पदार्थों में , या आलसी लोगों में , (न सरन्तीति असरा:, तेषु) भी,  मंदगति स्वरूप सनीचर की तरह शब्दायमान होते हो ।

या फिर

सौर शब्द का अर्थ यदि सूर्य का तेज मानें तो -
हे परमात्मा आप आलसी लोगों या अगतिक पदार्थों में भी तेज स्वरूप बनकर बहने लग जाते हो (मतलब उनको भी तेजस्वी बना देते हो) ।

© हिमांशु गौड़
लेखन समय और दिनांक
१८/०१/२०२०, १२/३० रात्रि ।

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