।। अनन्तश्रीविभूषितश्री-विद्यासागरमहाराजाष्टकम् ।।
🇮🇳🇮🇳 हिन्दी सहितम् 🇮🇳🇮🇳
सत्याsहिंसनसत्पथप्रचरितेष्वग्रं समग्रं मुनिं
शिक्षादक्षविचक्षणं सुपुरुषैर्वन्द्यं प्रणन्द्यं शिवं
दिव्यानन्दनिमज्जितं द्युतियुतं त्यागश्रियोद्भासितं
विद्यासागरजैनवृन्दविनतं वन्दे तपोरूपिणम्।।१।।
शिक्षादक्षविचक्षणं सुपुरुषैर्वन्द्यं प्रणन्द्यं शिवं
दिव्यानन्दनिमज्जितं द्युतियुतं त्यागश्रियोद्भासितं
विद्यासागरजैनवृन्दविनतं वन्दे तपोरूपिणम्।।१।।
जो सत्य, अहिंसा आदि सत्पथ पर चलने वाले लोगों में मुख्य हैं , एवं अनेकों गुणों
द्वारा भी प्रमुखता को प्राप्त करते हैं ऐसे मुनि,
शिक्षा आदि विधि प्रदान करने में दक्ष , अत्यंत विचक्षण, सज्जन लोगों द्वारा प्रणम्य एवं उनसे
प्रसन्न होने वाले, दिव्य आनंद में डूबे हुए , तेजस्वी एवं त्याग रूपी श्री के द्वारा उद्भासित, विद्वान् जैन लोगों द्वारा विशिष्ट रूप से नमस्कृत, तप:स्वरूप, श्री विद्यासागर जी महाराज को प्रणाम है।
द्वारा भी प्रमुखता को प्राप्त करते हैं ऐसे मुनि,
शिक्षा आदि विधि प्रदान करने में दक्ष , अत्यंत विचक्षण, सज्जन लोगों द्वारा प्रणम्य एवं उनसे
प्रसन्न होने वाले, दिव्य आनंद में डूबे हुए , तेजस्वी एवं त्याग रूपी श्री के द्वारा उद्भासित, विद्वान् जैन लोगों द्वारा विशिष्ट रूप से नमस्कृत, तप:स्वरूप, श्री विद्यासागर जी महाराज को प्रणाम है।
यत्रानेकविधा: बुधा: प्रतिदिनं शास्त्राणि सन्तन्वते
जैनोद्भासिपरम्परापृतजनैर्मोदं द्रुतं मन्यते
नानायोगविचिन्तकैर्निजधिया तथ्यं विनिश्चीयते
विद्यासागरसद्गुरुर्हि निखिलेष्वर्च्यस्समैरुच्यते ।।२।।
जैनोद्भासिपरम्परापृतजनैर्मोदं द्रुतं मन्यते
नानायोगविचिन्तकैर्निजधिया तथ्यं विनिश्चीयते
विद्यासागरसद्गुरुर्हि निखिलेष्वर्च्यस्समैरुच्यते ।।२।।
जहां कई शास्त्रों के विद्वान प्रतिदिन शास्त्रों की आशाओं का विस्तार करते हैं और जहां जैन धर्म संबंधी प्रकाश युक्त परंपरा को धारण करने वाले लोग खूब आनंद मनाते हैं , और अनेक प्रकार के योगों का चिंतन करने वाले लोग जहां अपनी बुद्धि से निश्चित तथ्य का निर्णय प्राप्त करते हैं ,
उन सब प्रकार के लोगों में , श्रेष्ठता के मामले में श्री विद्यासागर सद्गुरूजी ही प्रमुख माने जाते हैं।
उन सब प्रकार के लोगों में , श्रेष्ठता के मामले में श्री विद्यासागर सद्गुरूजी ही प्रमुख माने जाते हैं।
दिगम्बरं शिवाम्बरं विदां वरं श्रियां वरं
धियां विनिश्चितार्थनिश्चयैकचेतृचिद्वरं
सुधाप्रवर्षिहर्षिशास्त्रमुक्प्रणम्ययोगिनं
नुमश्शुभप्रदायिशुद्धचित्तलभ्यशोभितम्।।३।।
धियां विनिश्चितार्थनिश्चयैकचेतृचिद्वरं
सुधाप्रवर्षिहर्षिशास्त्रमुक्प्रणम्ययोगिनं
नुमश्शुभप्रदायिशुद्धचित्तलभ्यशोभितम्।।३।।
दिशा रूपी वस्त्र धारण करने वाले, कल्याण रूपी आकाश धारण करने वाले, विद्वानों में श्रेष्ठ, वर्णन शोभा के वरणीय, बुद्धि यों द्वारा निश्चित पदार्थ का निश्चित करने वाले लोगों में चित् रूप से प्रधान, अमृत वर्षा करने वाला और हर्ष पैदा करने वाला जो शास्त्र है उसको सुनाने वाले प्रणाम योग्य योगी, ऐसे शुभ प्रदान करने वाले , शुद्ध मन वाले लोगों द्वारा शोभित होने वाले , श्री विद्यासागर जी महाराज को प्रणाम है।
सहस्राधिकैर्धर्मधीभिर्नतो यो
महाज्ञाननिष्ठैर्वृतस्सम्मतो यो
जनाश्श्रद्धया द्रष्टुकामा: गुरुं यं
बुधं तं हि जैनार्चितं चार्चयाम:।।४।।
महाज्ञाननिष्ठैर्वृतस्सम्मतो यो
जनाश्श्रद्धया द्रष्टुकामा: गुरुं यं
बुधं तं हि जैनार्चितं चार्चयाम:।।४।।
जो हजारों धार्मिक लोगों से जिनको हजारों धार्मिक लोग नमस्कार करते हैं जो महा ज्ञानी लोगों से घिरे रहते हैं और सम्मानित किए जाते हैं जिनको बहुत लोग श्रद्धा पूर्वक देखने के लिए आते हैं जैन लोगों द्वारा जो पूजे हैं हम भी उनको सम्मानित करते हैं।
मनुष्याणां कल्याणपथसरणस्त्यागगुणग:
चिकित्सायुर्वेदादिविविधधियोद्धारकरण:
बुधानां सद्वाचां मुदितहृदयेन प्रियतमो
नुमो विद्याब्धिं तं विमलमनसा जैनयतिकम् ।।५।।
चिकित्सायुर्वेदादिविविधधियोद्धारकरण:
बुधानां सद्वाचां मुदितहृदयेन प्रियतमो
नुमो विद्याब्धिं तं विमलमनसा जैनयतिकम् ।।५।।
मनुष्यों के कल्याण पथ पर चलने वाले और त्याग गुणों से युक्त चिकित्सा आयुर्वेद आदि अनेक प्रकार की बुद्धि से लोगों का उद्धार करने की इच्छा वाले विद्वानों का और संस्कृत निष्ठ लोगों का के जो प्रसन्न हृदय द्वारा प्रिय हैं, मैं विमल बुद्धि वाला होकर उन जैन सन्यासी विद्यासागर जी का अभिनंदन करता हूं।
न वित्तं न कीर्तिं न वांछेच्च भोगं
न माधुर्यमत्तीह नो लावणं वा
करस्थान्नतृप्तिंगतो जैनराज:
सदा कीर्तिमीयात्स विद्याधिराज: ।।६।।
न माधुर्यमत्तीह नो लावणं वा
करस्थान्नतृप्तिंगतो जैनराज:
सदा कीर्तिमीयात्स विद्याधिराज: ।।६।।
वे सन्यासी नाधन चाहते हैं ना यश चाहते हैं ना भूख चाहते हैं ना तो वह मीठा खाते हैं ना नमक खाते हैं (अहर्निश में एक बार) अंजलि मात्र अन्न से तृप्ति प्राप्त करने वाले वह विद्याधिराज, जैनराज सदा कीर्ति को प्राप्त करें।
सदा सर्वकल्याणदं जैनशास्त्रं
मुदा नित्यनिर्वाणदं वीरशास्त्रं
अहिंसादिसंदर्शकं धर्मलक्ष्यं
निधृत्येह विद्यामुनिश्शोभतेsहो।।७।।
मुदा नित्यनिर्वाणदं वीरशास्त्रं
अहिंसादिसंदर्शकं धर्मलक्ष्यं
निधृत्येह विद्यामुनिश्शोभतेsहो।।७।।
यह जैन शास्त्र वास्तव में कल्याणकारी है यह महावीर शास्त्र आनंद पूर्वक निर्वाण प्राप्त कर आन वाला है
अहिंसा आदि का मार्ग दिखाने वाला है और धर्म का लक्ष्य है और ऐसे शास्त्र को धारण करके यह विद्या शोभित मुनि यहां उपस्थित हैं।
अहिंसा आदि का मार्ग दिखाने वाला है और धर्म का लक्ष्य है और ऐसे शास्त्र को धारण करके यह विद्या शोभित मुनि यहां उपस्थित हैं।
श्वेताम्बरं वापि दिगम्बरं वा
द्वयं समाश्रीयत एव लोके
तयोश्च दिग्वस्त्रधरो मुनिर्यो
विद्याब्धिरूपश्च तपस्विरूप:।।८।।
द्वयं समाश्रीयत एव लोके
तयोश्च दिग्वस्त्रधरो मुनिर्यो
विद्याब्धिरूपश्च तपस्विरूप:।।८।।
श्वेतांबर और दिगंबर यह 2 तरह के आश्रय जैनों द्वारा अपनाए जाते हैं । उनमें यह दिगंबर मुनि विद्यासागर जी हैं , एवं तपस्वी रूप हैं।
दृष्ट्वा विभासितवपुष्कमहं हिमांशु:
जैनेन्द्रकस्य मुनिभि: परिशोभितस्य
विद्यादिसागर इवात्र गुरोर्विभात:
कुर्वेsष्टकं ह्यमितजैननिबोधितस्सन्।।
जैनेन्द्रकस्य मुनिभि: परिशोभितस्य
विद्यादिसागर इवात्र गुरोर्विभात:
कुर्वेsष्टकं ह्यमितजैननिबोधितस्सन्।।
जैनेंद्र मुनि का शोभायमान और विभासित स्वरूप देखकर, जो विद्या के सागर होने से प्रभासमान हैं उन महाराजश्री का , मैं हिमांशु गौड, श्री अमित जैन द्वारा प्रेरणा प्राप्त यह अष्टक लिख रहा हूं।
© हिमांशु गौड़
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