एक ऐसे व्यक्ति जो किसी भी फोन नंबर को अपने मोबाइल में सेव नहीं करते थे बल्कि उनके मस्तिष्क में सेव हो जाता था !
इस तरह सैकड़ों फोन नंबर उनके कंठस्थ ही रहते थे।
इस तरह सैकड़ों फोन नंबर उनके कंठस्थ ही रहते थे।
जिनके सैकड़ों नगरवासियों के पूरे खानदान की जन्मकुंडलियां कंठस्थ थीं,
चाहे उनसे 20 साल बाद कोई पूछे कि हमारे पुत्र की कुंडली में शनि कौन सी राशि पर है
तो 20 साल पहले की कुंडली देखी हुई,
वह बता देंगे कि उस राशि पर है ।
चाहे उनसे 20 साल बाद कोई पूछे कि हमारे पुत्र की कुंडली में शनि कौन सी राशि पर है
तो 20 साल पहले की कुंडली देखी हुई,
वह बता देंगे कि उस राशि पर है ।
जब वह कक्षा 5 में थे, तभी उनके 100 तक पहाड़े एवं पूरी गीता कंठस्थ थी ।
जब मैंने 2006 में उन्हें देखा उस समय उनकी आयु लगभग 80 वर्ष थी, और साहित्य शास्त्र हो, व्याकरण हो, वेदांत हो, या हिंदी भाषा का व्याकरण इतिहास साहित्य हो सभी कुछ बड़े ही दिव्य और विचित्र ढंग से यह गुरुजी व्याख्यान करते थे।
एवं गीता के अनेक विधाओं में विशेषज्ञता रखने वाले,
अंग्रेजी और संस्कृत मेंं इतनी तीव्र प्रवाहरूपता इनकी थी, कि मनुष्य को आश्चर्य हो जाए।
अंग्रेजी और संस्कृत मेंं इतनी तीव्र प्रवाहरूपता इनकी थी, कि मनुष्य को आश्चर्य हो जाए।
जिनकी दिव्य प्रतिभा और सर्वव्यापी वैदुष्य देखकर लोगों ने जिन्हें "देवदूत" की उपाधि दे डाली!
सदैव ये शास्त्रों का आचार करते रहे !
हमेशा भोजन में तुलसी डालकर उसका सेवन करना एवं कांगड़ी चाय पीना ही इनका स्वभाव था!
हमेशा भोजन में तुलसी डालकर उसका सेवन करना एवं कांगड़ी चाय पीना ही इनका स्वभाव था!
सुबह 4:00 बजे से ही गजेंद्र मोक्ष , विष्णु सहस्रनाम आदि का पाठ करना इनकी आदत थी।
इस प्रकार के महान् ज्योतिषी का आज स्वर्गवास हुआ।
इन्हीं की स्मृति में यह मेरे द्वारा लिखे हुए कुछ श्रद्धांजलि स्वरूप श्लोक हैं।
।। श्रीदेवदूत-गुरवे श्रद्धाञ्जलि:।।
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हे देवदूत! बुधराट्! द्विजसौख्यकारिन्!
हे हृष्टशिष्टपुरुष श्रुतिशास्त्रधारिन्!
हेरम्बपूजनरतो हरिहर्षहार्द!
हे हे हरिद्धयरथार्चक! हेशलीन:।।१।
हे हृष्टशिष्टपुरुष श्रुतिशास्त्रधारिन्!
हेरम्बपूजनरतो हरिहर्षहार्द!
हे हे हरिद्धयरथार्चक! हेशलीन:।।१।
हा हाऽद्य वै नरवरात् प्रथितास्ति चर्चा
यो देवदूतगुरुरद्य दिवङ्गतोऽसौ
किं देवदेशवसतिस्स सुरोपदेष्टा
श्रीमद्धरे: पुरमयाद्वदत द्विजा हे?२?
यो देवदूतगुरुरद्य दिवङ्गतोऽसौ
किं देवदेशवसतिस्स सुरोपदेष्टा
श्रीमद्धरे: पुरमयाद्वदत द्विजा हे?२?
मध्याह्नकालकृतभोजनविश्रमोऽहं
तिष्ठन्विभिन्नपरिचिन्तनसंरतोऽद्य
श्रुत्वा प्रभातवचसा बत दूरवाण्या
निस्तब्धतां प्रतिगतस्सुरदूतमृत्युम् ।।३।।
तिष्ठन्विभिन्नपरिचिन्तनसंरतोऽद्य
श्रुत्वा प्रभातवचसा बत दूरवाण्या
निस्तब्धतां प्रतिगतस्सुरदूतमृत्युम् ।।३।।
यद्वा प्रशान्तनिलये भवतस्सकाशे
खेलेन्द्रनीरजविनोदजनैस्सहाहं
कृत्वापि शास्त्रपरिचर्चनमोदनानि
विद्यार्थिकालदिवसानि हृदा व्यनैषम् ।।४।।
खेलेन्द्रनीरजविनोदजनैस्सहाहं
कृत्वापि शास्त्रपरिचर्चनमोदनानि
विद्यार्थिकालदिवसानि हृदा व्यनैषम् ।।४।।
हे हे प्रभातसमयेऽथ गजेन्द्रमोक्षं
उच्चैस्स्म गायति ह विष्णुसहस्रनाम
नानार्थभाष्यशरणं सुरगाथनं च
श्रीमन् सदैव भवतो वचसैव लब्धम् ।।५।।
उच्चैस्स्म गायति ह विष्णुसहस्रनाम
नानार्थभाष्यशरणं सुरगाथनं च
श्रीमन् सदैव भवतो वचसैव लब्धम् ।।५।।
हे हे पचौरिविदित! श्रुतिनेत्रशालिन्!
हे हे सदा प्रतिभया भुवि भासशालिन्!
नूनं निशम्य भवतस्सुरलोकयात्रां
किं भावयानि हृदये न विचारशक्त:।।६।।
हे हे सदा प्रतिभया भुवि भासशालिन्!
नूनं निशम्य भवतस्सुरलोकयात्रां
किं भावयानि हृदये न विचारशक्त:।।६।।
यच्चाष्टकं विलिखितं भवते मयैव
तच्छ्रावितं च भवते मुदितात्मनैव
बाबागुरुर्ह्यपि भवद्गुणगौरवेण
प्रेमादरं प्रतिदिनं त्वनुवर्तमान:।।७।।
तच्छ्रावितं च भवते मुदितात्मनैव
बाबागुरुर्ह्यपि भवद्गुणगौरवेण
प्रेमादरं प्रतिदिनं त्वनुवर्तमान:।।७।।
गङ्गाजलानि तुलसीदलमिश्रितानि
भोज्यानि सात्त्विकजनैरभिनन्दितानि
विष्ण्वच्युतेशकमलापतिकीर्तनानि
हे देवदूत! तव दिव्यपथं सृजन्ति।।८।।
भोज्यानि सात्त्विकजनैरभिनन्दितानि
विष्ण्वच्युतेशकमलापतिकीर्तनानि
हे देवदूत! तव दिव्यपथं सृजन्ति।।८।।
विश्वस्तिरीशभजने श्रुतिशास्त्रवाक्ये
प्रीतिश्च साधुपुरुषे द्विजदेवकार्ये
गीताक्षराण्यपि गुरो! दिवि मूर्तिमन्ति
हे देवदूत! तव विष्णुपथं सृजन्ति।।९।।
प्रीतिश्च साधुपुरुषे द्विजदेवकार्ये
गीताक्षराण्यपि गुरो! दिवि मूर्तिमन्ति
हे देवदूत! तव विष्णुपथं सृजन्ति।।९।।
शोचन्ति नैव सुजनाश्च शरीरनाशे
किन्त्वद्य वै नरवरात् हृतमीश! रत्नं
शान्तिं तवात्मन इवेह समर्थयन्तश्-
श्रद्धाञ्जलिं गुरुपदे वयमर्पयाम:।।१०।।
किन्त्वद्य वै नरवरात् हृतमीश! रत्नं
शान्तिं तवात्मन इवेह समर्थयन्तश्-
श्रद्धाञ्जलिं गुरुपदे वयमर्पयाम:।।१०।।
हे वाग्जलैरहरह: परिपावमानो
हे हे विनोदकरणोथ विनोदपूज्य
हे श्रीपुराणगततत्त्वविवेकशील
श्रीमत्पचौरिबुध ते स्मृतिरस्ति चित्ते।।११।।
हे हे विनोदकरणोथ विनोदपूज्य
हे श्रीपुराणगततत्त्वविवेकशील
श्रीमत्पचौरिबुध ते स्मृतिरस्ति चित्ते।।११।।
श्रीमन्शिवाढ्यगुणगर्वितगायकैश्च
न्यायाभिरक्तमतिपूजितपादपद्म!
पातञ्जलाढ्यपुरुषैरभिसंवृतश्च
शब्दाञ्जलिश्रितहृदा परितर्पयामि।।१२।।
न्यायाभिरक्तमतिपूजितपादपद्म!
पातञ्जलाढ्यपुरुषैरभिसंवृतश्च
शब्दाञ्जलिश्रितहृदा परितर्पयामि।।१२।।
हे देहनष्टिविदितात्मगुणानुरागिन्
हे सत्कवीशचरितामृतमोदपायिन्
हे श्रीकपीशमहिमाढ्यसमृद्धवृद्ध!
श्रीदेवदूतविदिताद्य वयं स्मराम:।।१३।।
हे सत्कवीशचरितामृतमोदपायिन्
हे श्रीकपीशमहिमाढ्यसमृद्धवृद्ध!
श्रीदेवदूतविदिताद्य वयं स्मराम:।।१३।।
श्लिष्टा क्रिया, न भवत: पुनरात्मसंस्था
चेष्टा सदेष्टसुरगुण्यपदप्रदा ते
दृष्टा मतिश्च भवत: पटवर्धने वै
अस्मन्मनस्सु शतधा पटवर्धनाख्य!!१४!!
चेष्टा सदेष्टसुरगुण्यपदप्रदा ते
दृष्टा मतिश्च भवत: पटवर्धने वै
अस्मन्मनस्सु शतधा पटवर्धनाख्य!!१४!!
शौवस्तिको नरवरे मम चागमस्स्यात्
त्वत्स्मार्त्तभूतशुभतामिव चाद्य सृष्ट्वा
रात्रौ गतांश्च दिवसान्हृदये विचिन्त्य
श्रद्धाञ्जलिं प्रतनुते हिमवाञ्जनोऽसौ।।१५।।
त्वत्स्मार्त्तभूतशुभतामिव चाद्य सृष्ट्वा
रात्रौ गतांश्च दिवसान्हृदये विचिन्त्य
श्रद्धाञ्जलिं प्रतनुते हिमवाञ्जनोऽसौ।।१५।।
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© हिमांशुगौड:
०७:३८ दिनान्ते,०७/०२/२०२०
०७:३८ दिनान्ते,०७/०२/२०२०
अंतिम पांच श्लोक इसी दिनांक को, १०:४८ रात्रि में लिखे।
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