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पूजा के समय सिर्फ वैदिक,शास्त्रीय एवं पौराणिक मंत्रों का ही प्रयोग होना चाहिए ना कि स्वयं की बनाई हुई स्तुति का :आचार्य हिमांशु गौड़

।।नमो देव्यै।।
दुर्गा-सप्तशती का प्रत्येक श्लोक, अपने आप में एक सिद्ध मंत्र है।
देवी का कवच हो या फिर अर्गला स्तोत्र या फिर कीलक स्तोत्र या सभी अध्याय !
इसके प्रत्येक अक्षर में , प्रत्येक शब्द में,  प्रत्येक वाक्य में , प्रत्येक श्लोक में, असीमित शक्ति का भंडार है !
बल्कि यह कहा जाए कि यह दुर्गा-सप्तशती साक्षात् भगवती की शब्दमयी-विग्रह है , तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
इस संसार में लोगों ने दुर्गा-सप्तशती का इतना पाठ किया है , कि समस्त ब्रह्मांड में इसकी महान् ऊर्जा फैली हुई है -
"रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि"
आज के संस्कृत कवि कितने ही अच्छे संस्कृत श्लोक क्यों न बना लें , लेकिन उनके हजारों श्लोक मिलकर भी दुर्गा-सप्तशती के मंत्रों की तुलना नहीं कर सकते ! पौराणिक जो श्लोक हैं, वे भी मंत्र ही हैं।
वस्तुतः ऋषियों ने जो मंत्र लिखे हैं , वे हजारों वर्षों की तपस्या एवं इस ब्रह्माण्ड में गूंजते हुए परब्रह्म को अनुभव करके लिखे हैं।
आज के भोगवादी मानव चाहे संस्कृत पढ़ कर, कितने भी अच्छे श्लोक क्यों न बना लें , लेकिन उन भगवत् अनुभूति संपन्न ऋषियों के मंत्रों के साथ हम उनकी तुलना नहीं कर सकते!
और हम लोगों को भी चाहिए कि पूजा-पाठ करते या करवाते समय , सिर्फ वेद शास्त्र एवं पुराणों के मंत्रों का ही प्रयोग किया जाए , ना कि खुद के बनाए हुए श्लोकों का।
हां, यह बात अलग है कि स्वतंत्र भक्ति रस में डूब कर , भजन-कीर्तन के समय या किसी भक्ति-कार्यक्रम में, हम उनका प्रयोग कर सकते हैं , लेकिन जो वैदिक विधि-विधान, शास्त्रीय विधि-विधान के साथ जब हम पूजा कराते हैं, तो फिर उस समय सिर्फ शास्त्रीय, वैदिक एवं पौराणिक मंत्रों का ही प्रयोग उचित रहता है !
यहां तक कि,  हिंदी के भी, लोगों ने मंत्र बना रखे हैं, हिंदी की भी स्तुतियां बना रखी हैं , आप अगर भक्त हैं , भक्ति की स्थिति में यह स्तुति गा रहे हैं , कोई बात नहीं , अच्छा है !
लेकिन कर्मकांड तभी सफल है, सकाम उपासना तभी सफल है , जब आप उसको पूर्ण विधि-विधान एवं श्रद्धा-विश्वास से कराएं।

© हिमांशु गौड़
०७/०२/२०२०, ०१:२४

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