।। डॉ.हिमांशुगौडस्य
संस्कृतकाव्यरचनाः ।।
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१
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श्रीगणेशशतकम्
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(गणेशभक्तिभृतं काव्यम्)
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२
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सूर्यशतकम्
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(सूर्यवन्दनपरं काव्यम् )
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३
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पितृशतकम्
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(पितृश्रद्धानिरूपकं काव्यम्)
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४
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मित्रशतकम्
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( मित्रसम्बन्धे विविधभावसमन्वितं
काव्यम् )
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५
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श्रीबाबागुरुशतकम्
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(श्रीबाबागुरुगुणवन्दनपरं
शतश्लोकात्मकं काव्यम्)
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६
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भावश्रीः
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( पत्रकाव्यसङ्ग्रहः )
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७
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वन्द्यश्रीः
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(वन्दनाभिनन्दनादिकाव्यसङ्ग्रहः)
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८
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काव्यश्रीः
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(बहुविधकवितासङ्ग्रहः)
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९
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भारतं भव्यभूमिः
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( भारतभक्तिसंयुतं काव्यम् )
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१०
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दूर्वाशतकम्
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(दूर्वामाश्रित्य
विविधविचारसंवलितं शतश्लोकात्मकं काव्यम्)
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११
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नरवरभूमिः
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(नरवरभूमिमहिमख्यापकं खण्डकाव्यम्)
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१२
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नरवरगाथा
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(पञ्चकाण्डान्वितं काव्यम्)
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१३
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नारवरी
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(नरवरस्य विविधदृश्यविचारवर्णकं
काव्यम् )
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१४
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दिव्यन्धरशतकम्
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(काल्पनिकनायकस्य गुणौजस्समन्वितं
काव्यम्)
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१५
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कल्पनाकारशतकम्
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(कल्पनाकारचित्रकल्पनामोदवर्णकम्)
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१६
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कलिकामकेलिः
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(कलौ कामनृत्यवर्णकं काव्यम्)
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यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु: हंसा महीमण्डलमण्डनाय हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां येषां मरालैस्सह विप्रयोग:।। हंस, जहां कहीं भी धरती की शोभा बढ़ाने गए हों, नुकसान तो उन सरोवरों का ही है, जिनका ऐसे सुंदर राजहंसों से वियोग है।। अर्थात् अच्छे लोग कहीं भी चले जाएं, वहीं जाकर शोभा बढ़ाते हैं, लेकिन हानि तो उनकी होती है , जिन लोगों को छोड़कर वह जाते हैं । *छायाम् अन्यस्य कुर्वन्ति* *तिष्ठन्ति स्वयमातपे।* *फलान्यपि परार्थाय* *वृक्षाः सत्पुरुषा इव।।* अर्थात- पेड को देखिये दूसरों के लिये छाँव देकर खुद गरमी में तप रहे हैं। फल भी सारे संसार को दे देते हैं। इन वृक्षों के समान ही सज्जन पुरुष के चरित्र होते हैं। *ज्यैष्ठत्वं जन्मना नैव* *गुणै: ज्यैष्ठत्वमुच्यते।* *गुणात् गुरुत्वमायाति* *दुग्धं दधि घृतं क्रमात्।।* अर्थात- व्यक्ति जन्म से बडा व महान नहीं होता है। बडप्पन व महानता व्यक्ति के गुणों से निर्धारित होती है, यह वैसे ही बढती है जैसे दूध से दही व दही से घी श्रेष्ठत्व को धारण करता है। *अर्थार्थी यानि कष्टानि* *सहते कृपणो जनः।* *तान्येव यदि धर्मार्थी* *न भूयः क्लेशभाजनम्।।*...

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