तन्हाइयों का मौसम, है मेरे दिल को घेरे,
चुभने लगे उजाले रास आ गए अंधेरे ।
दुनिया में कहां जाएं , किससे ये दिल लगाएं,
रोशन सी सारी दुनिया,दिल में मेरे अंधेरे।
ग़म से मैं बच न पाया,न सच को छोड़ पाया,
झूठों के साथ मन को , न कभी मैं जोड़ पाया।
गुमनाम जिंदगी है, तन्हाइयां हैं क़ाबिज़
दरियाई रात मेरी , मौजें ही मेरी हाफ़िज़
ना जाने ये अंधेरे ले जाएं कहां मुझको,
शायद ही रास आए, मेरी रवानी तुझको।
जिस्मों की सारी बंदिश, रूहें न कैद होंगी
रातों की महके-गुलशन, इनको नसीब होंगी।
© 01:45 दोपहर, 03/05/2020, गाजियाबाद।
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