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और फिर जब मैं एक बार गंगा जी के किनारे बैठा हुआ माला फेर रहा था, गंगा जी का जल हल्का हल्का तरंगायमान हो रहा था।
तभी मेरी दृष्टि अपने से लगभग 20 मीटर दूर गंगा जी किनारे पर पड़ी ।
गंगा जी लहरों में बहती हुई , एक पुरानी सी पुस्तक किनारे आ लगी है ।
मैंने उसे धूप में ही डाल दिया और सूखने के लिए छोड़ दिया ।
फिर जप पूरा करने के बाद , जब मैंने उसे खोल कर देखा तो वह एक इंद्रजाल की पुस्तक थी । उसमें ऐसे अभूतपूर्व मंत्र थे , जो मैंने पहले किसी पुस्तक में नहीं देखे थे।
जंजीर का मंत्र , मसान जगाने का मंत्र , जो अन्य साधारण इंद्रजाल की पुस्तक में नहीं मिलता।
वैसे वह पुस्तक आकार में ज्यादा बड़ी नहीं थी , लेकिन यंत्र ,मंत्र , तंत्र तीनों प्रकार की विधाओं से भरी हुई थी ।
बीसा यंत्र निर्माण की विधि और उसके प्रयोग का प्रकार भी उसने बताया गया था।
"जाके सिद्धि होवे बीसा
ताके आस करे जगदीसा"
महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस भी जंजीर के मंत्र का जाप करते थे ऐसा उस पुस्तक में लिखा था।
बहुत से शाबर मंत्र और वैदिक मंत्र बीच-बीच में दिए हुए थे। देवी के चतुर्थ अध्याय का पाठ बहुत ही महत्वपूर्ण और शीघ्र ही लाभदायक पुस्तक में लिखा था । खैर उस पुस्तक को अपने पास ले आया और अपने बक्से में रख ली ।
उसका अध्ययन करने लगा और उसके लिखे हुए मन्त्रों को आजमाने लगा ।
एक बार जब मैं जंगल से खैर की लकड़ी को लेकर शनिवार की शाम को अपने आश्रम की तरफ लौट रहा था, तो रास्ते में एक सौ साल पुराना कुआं पड़ता था , जोकि बिल्कुल किनारे पर था।
कुएं में से विचित्र सी आवाज़ें आ रही थीं।
हल्के-हल्के अंधेरे ने पूरे आसमान को घेर लिया था ।
चमगादड़ें उड़ रही थी ।
लेकिन ऐसे माहौल में भी मैंने कुए में झांक ही लिया ।
एकबारगी को तो कुछ नहीं हुआ।
लेकिन जब मैं उस कुएं से थोड़ा सा दूर हटा, मेरे मस्तिष्क को बड़ा झटका लगा , कुछ चीखती हुई सी दर्दनाक आवाजें मेरे मस्तिष्क में गूंजने लगीं।
मैं फिर भी आगे बढ़ता चला जा रहा था।
लेकिन एक-एक कदम बढ़ाना बहुत भारी लग रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे मैं नींद में कहीं चला जा रहा हूं ।
जैसे-तैसे करके मैं अपने कमरे में पहुंचा।
झोला एक कोने में रख कर , थोड़ी देर तख्त पर लेट गया ।
थोड़ा सा गंगाजल पिया ।
नहा कर के अपने बिल्कुल एकांत शांत शिव-मंदिर में जप करने के लिए पहुंच गया ।
वहां पहले से ही किसी ने घी का दीपक जला रखा था । शाम की आरती हो चुकी थी ।
मैंने विधि-विधान से अपनी पूजा शुरू की।
लेकिन जप करते समय भी कुएं वाली घटना बार-बार दिमाग की दीवार पर टकरा रही थी ।
खैर , भगवान् शिव को प्रणाम कर , लगभग 8:30 बजे मंदिर से बाहर आया ।
भोजन करने के उपरांत मैं अपने ही एक मित्र चौटाला के साथ बाजार की तरफ घूमने चल दिया।
मैंने उससे बताया उस शाम की घटना के बारे में ।
तब चौटाला ने कुवे से जुड़ी एक पुरानी कहानी के बारे में बताया ।
वह एक ऐसा कुआ था , जिस पर बहुत साल पहले एक नटी और नट करतब दिखाया करते थे ।
एक बार कुवे के ऊपर वह नटी करतब दिखा रही थी, कलाबाजी खा रही थी ।
उस समय की गोद में उसका बच्चा भी था। अपने उस 1 साल के बच्चे को गोद में लेकर ही वह कुएं के ऊपर कलाबाजी खाती थी।
अचानक ध्यान भंग होने के कारण बच्चे समेत वह कुएं में जा गिरी और उसकी मौत हो गई । तब से वह कुआं साधारण लोगों के लिए अभिशप्त हो गया ।
20 साल तक तो कोई उसके पास से गुजरता भी नहीं था , लेकिन जैसे-जैसे घटना पुरानी होती चली गई , वैसे-वैसे लोगों के दिलों से डर भी खत्म होता चला गया।
लेकिन डरों की दास्तान कभी भी खत्म होती नहीं ।
किसी न किसी रूप में वह जिंदा जरूर होती है ।
कुछ लोग मर कर भी मरते नहीं ।
कुछ परछाइयां , इस दुनिया में भटकती ही रहती हैं , जब तक कि उनके मकसद पूरे नहीं हो जाते।
चौटाला ने जिस अंदाज में ये कहानी मुझे सुनाई थी , मैं समझ गया कि वह कुआं किसी प्रेत शक्ति से आतंकित है ।
चोटाला फिर बोला - " वैसे आप खैर की लकड़ी किस लिए लेने गए थे "
मैंने उसे बताया - "खैर की लकड़ी का इस्तेमाल प्रेतोंं को काबू में करने के लिए किया जाता है ।"
अगर खैर की लकड़ी के कोयले से एक विशेष मंत्र को कागज पर लिखकर उसका यंत्र निर्माण किया जाए तो डाकिनी और शाकिनी खिंचे चले आते हैं ।
खैर, मैंने इस चर्चा को ज्यादा बढ़ाना उचित नहीं समझा और चौटाला ने भी फिर अपने कमरे की तरफ प्रस्थान करना उचित समझा।
इस तरह वह रात बीती तीन-चार दिन तक में इस खैर की लकड़ी के साधन को करता रहा।
30 दिन का यह प्रयोग , जिसमें अनुशासन, मन की एकाग्रता , निष्ठा और लगन की बहुत बड़ी जरूरत थी, वह मैं कर रहा था।
4 दिन ही बीते थे कि अजीबोगरीब हालात चारों तरफ से पैदा होने शुरू हो गए ।
कभी वृक्षों के ऊपर से प्रेत मेरे सर के ऊपर कूदते थे और कभी जंगल की तरफ से भागकर कोई डाकिनी मुझे पकड़ना चाहती थी ।
लेकिन मंत्रों की शक्ति का प्रभाव या सौभाग्य कहिए कि कुछ भी दुष्प्रभाव मेरे ऊपर पड़ा नहीं । और फिर एक बार......
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.......................................... ज़ारी है।
© हिमांशु गौड़, गाजियाबाद।
०१:३६, रात्रि,२५/०५/२०२०
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