Monday, 18 May 2020

देहि चरणामृतं मे Himanshu Gaur Sanskrit Geet



हे वासुदेव हे गोवर्धन
 हे शक्तिशील हे सुखवर्धन ।
जगतीत्रयं त्वया धृतं रे
देहि चरणामृतं मे।।१।।

तुलसीसहितं त्वत्स्नानकरं
जलमेतद्वै मम मुक्तिकरं
दुग्धादिपञ्चामृतथ रे
देहि चरणामृतं मे।।२।।

हे पापदहन हे सर्वसहन
हे सत्यकथन हे दिव्यवसन
हे मुग्धकोटिमन्मथ रे
देहि चरणामृतं मे।।३।।


सरितस्सर्वा जलधिस्सकलस्-
तव रूपमिदं कमलं विमलं
एहि मनसोऽन्तरं मे
देहि चरणामृतं मे।।४।।

वंशीवादन सर्वाच्छादन
वाञ्छाफलदोसि विपद्धरण
हर दुर्गतिमत्र शुभागम मे
देहि चरणामृतं मे।।५।।

हे यादव माधव नाकपते
गोलोकपते ध्रुवसत्यपते
भव भवात्तारको मे
देहि चरणामृतं मे।।६।।


राधारमण गोपीरमण!
वृन्दावनदिव्यविलासमणे!
कुरु दृष्टिमिहाच्युत! केशव हे!
देहि चरणामृतं मे।।७।।


तव पादतले मतिरस्तु सदा
तव रूपसुधां च पिबेयमहम्
जनिरोगजरा: जहि नटवर मे
देहि चरणामृतं मे।।८।।

झटितीव च सन्दंशतीह फणि:
सुर मृत्युरसौ , मम जीव्यमणिं
हरति क्षणतस्त्वमिमं हर रे!
देहि चरणामृतं मे।।९।।
***
डॉ हिमांशु गौड़
०१:०७ मध्याह्ने, १८/०५/२०२० गाजियाबादे।

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