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भारतीय संस्कृति के विषय में श्लोक : डॉ हिमांशु गौड़


।।अस्मत्संस्कृति:।।
***
धृताऽस्मत्पूर्वजैस्सभ्यै: पालिता पोषिता बुधै:।
देवत्वं जनयेल्लोके भारती संस्कृतिस्सदा।।१।।

सुसंस्कारान्वितो भूत्वा शोभते मोदते यया।
संस्कृतिर्भारतीया सा धारणीया सदा समै:।।२।।

सद्वृत्तं दिव्यभूतीनां दुर्वृत्तं च दुरात्मनाम्।
ज्ञायते तायते सौख्यं यया सा संस्कृतिर्हि मे।।३।।

गुरूणां चापि सम्मानं लघूभ्यस्स्नेहसिञ्चनम्।
शिष्टाचारस्समैस्साकं बोधयेत्संस्कृतिस्सदा।।४।।

प्राणं चापि त्यजेत्प्राज्ञो धर्मं नैव च कर्हिचित् ।
धर्मसर्वस्वरूपा सा संस्कृतिर्भारती मम।।५।।

दीक्षा दानं तपस्तीर्थं ज्ञानं क्रत्वादय: क्रिया:।
प्रणप्राणपणाग्रत्वं सर्वं संस्कृत्यधिष्ठितम्।।६।।

वेदशास्त्रपुराणानि स्मृत्यारण्यकसङ्ग्रह:।
उपनिषद्भिस्समालक्ष्या भारतीया सुसंस्कृति:।।७।।

यद्यच्चर्यं सदाचर्यं ब्रह्मचर्यं शुभं तप:।
तत्तत्सर्वं महत्तत्त्वं संस्कृतिश्रीसुशोभितम्।।८।।

सन्मानुषत्वशिक्षा वा लोकालोकफलं तथा।
यच्छत्याचरणादेव भारती संस्कृतिस्सदा।।९।।

संस्कृत्यर्थास्समे चार्था: किं वदानीह चाधिकम्।
म्लेच्छधर्मविहेयत्वं संस्कृतावेव संश्रितम्।।१०।।

गोब्राह्मणसुरक्षा च राक्षसानां निकृन्तनम्।
धर्मस्थापनमेवापि संस्कृतिर्मे सुशिक्षयेत्।‌।११।।

असूंश्चापि वसूंश्चापि त्यजेदात्मप्रणं नहि।
नेशं वा विस्मरेदित्याश्रयेत्सा संस्कृतिर्मम।।१२।।

सौम्यसात्विकशीलत्वं सत्याहिंसापरिग्रहा:।
लभन्ताञ्चोदयेदेषा संस्कृतिस्सास्ति मे शुभा।।१३।।

नावसादं व्रजेत्प्राज्ञो नात्महत्यां चरेत्क्वचित्।
उत्साही चोद्यमी भूयाद्वदेन्मे संस्कृतिस्सदा।।१४।।

दयाधर्मोपकारांश्च त्यागरागोचितज्ञता:।
शिक्षयेत्संस्कृतिश्रीका: वेदशास्त्रादयो मम।।१५।।
***
डॉ हिमांशुगौड:
०१:४१ अपराह्णे,१७/०६/२०२० 
गाजियाबादस्थगृहे।

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