नरवर भूमि यह एक ऐसा काव्य है जिसमें 151 श्लोक हैं । इसमें नरवर नामक स्थान, जोकि विद्वान लोगों की नगरी है , विद्या के लिए प्रसिद्ध है , और लोग इसे "छोटी-काशी" के नाम से भी जानते हैं , उस नरवर स्थान का महत्व इस ग्रंथ में बताया गया है । इसमें अनेक अलंकारों का प्रयोग करके , कहीं लक्षणा , व्यंजना , अभिधा शक्तियों का प्रयोग करके , कवि ने इस ग्रंथ को लिखा है । इसके सारे श्लोक शार्दूलविक्रीडित छंद में हैं। इस नरवर नामक नगरी में "करपात्री-स्वामी" जैसे महापुरुषों ने भी अध्ययन किया । श्रीजीवनदत्त जी महाराज ने नरवर स्थान पर "श्रीसांगवेद-संस्कृत-महाविद्यालय" की स्थापना आज से लगभग 100 वर्ष पहले की थी । इसी विद्यालय के प्रांगण में एक अति प्राचीन "वृद्धिकेशी शिव मंदिर" भी है , जिसकी पूजा-अर्चना नरवर के सभी विद्वान् लोग प्राचीन काल से लेकर आज तक करते आए हैं और कर रहे हैं । यहां पर रहने वाले विद्वान् सभी शास्त्रों का बहुत बढ़िया तरीके से व्याख्यान करते हैं। यहां के छात्र बड़े ही हर्षशील हैं एवं मुख्य रूप से व्याकरण के अध्ययन में तत्पर रहते हैं। धर्मशास्त्र का ज्...