Saturday, 19 September 2020
नरवरभूमि संस्कृत काव्य का सामान्य परिचय: हिमांशु गौड़
नरवर भूमि यह एक ऐसा काव्य है जिसमें 151 श्लोक हैं । इसमें नरवर नामक स्थान, जोकि विद्वान लोगों की नगरी है , विद्या के लिए प्रसिद्ध है , और लोग इसे "छोटी-काशी" के नाम से भी जानते हैं , उस नरवर स्थान का महत्व इस ग्रंथ में बताया गया है । इसमें अनेक अलंकारों का प्रयोग करके , कहीं लक्षणा , व्यंजना , अभिधा शक्तियों का प्रयोग करके , कवि ने इस ग्रंथ को लिखा है । इसके सारे श्लोक शार्दूलविक्रीडित छंद में हैं। इस नरवर नामक नगरी में "करपात्री-स्वामी" जैसे महापुरुषों ने भी अध्ययन किया । श्रीजीवनदत्त जी महाराज ने नरवर स्थान पर "श्रीसांगवेद-संस्कृत-महाविद्यालय" की स्थापना आज से लगभग 100 वर्ष पहले की थी । इसी विद्यालय के प्रांगण में एक अति प्राचीन "वृद्धिकेशी शिव मंदिर" भी है , जिसकी पूजा-अर्चना नरवर के सभी विद्वान् लोग प्राचीन काल से लेकर आज तक करते आए हैं और कर रहे हैं । यहां पर रहने वाले विद्वान् सभी शास्त्रों का बहुत बढ़िया तरीके से व्याख्यान करते हैं। यहां के छात्र बड़े ही हर्षशील हैं एवं मुख्य रूप से व्याकरण के अध्ययन में तत्पर रहते हैं। धर्मशास्त्र का ज्ञान यहां के छात्रों को बिना पढ़े ही गुरुमुख से झरते हुए श्लोकों द्वारा एवं प्रतिदिन किए जाते हुए शास्त्राचरण के द्वारा ही हो जाता है । एक समय में नरवर की विद्वत्ता समूचे भारत में थी एवं आज भी नरवर के बहुत से छात्र बड़े ही योग्य एवं कर्मठ हैं ।
इस काव्य के लेखक डॉ हिमांशु गौड़ भी नरवर के एक विद्यार्थी रहे हैं । इस काव्य में लेखक ने अपनी प्रतिभा का बखूबी प्रदर्शन किया है । इस काव्य के लगभग 95% शब्द नरवरभूमि के ही विशेषण हैं।
यहां संपूर्ण काव्य में नरवरभूमि शब्द की लक्षणा, वहां रहने वाले लोगों में की गई है ।गंगाजी का प्रताप, धार्मिक गतिविधियों की पुण्यदायकता, विद्या की अभ्यासशीलता, धर्म का आचरण, गुरु शिष्य का संबंध, गणेश, शिव, सूर्य, दुर्गा आदि समस्त देवी देवताओं की पूजा यज्ञों का अनुष्ठान व्याकरण शास्त्र के गंभीर ग्रंथों का अध्ययन, दर्शनशास्त्र के समस्त तथ्यों का उद्घोष, साहित्यशास्त्र के रस , धर्मशास्त्रों के रहस्य, कर्मकांड की विधियां आदि सभी कुछ यहां के विद्वान् एवं विद्यार्थी पूरे आनंद एवं हर्ष के साथ अपने पूरे श्रद्धा के साथ भक्ति के साथ अपनी समूची निष्ठा के साथ एवं प्रतिष्ठा के साथ पढ़ते-पढ़ते एवं उस विद्या का, उस धर्म का , गंगाजी के महत्व का , न केवल भारतवर्ष में अपितु संपूर्ण संसार में प्रचार-प्रसार कर रहे हैं । इस प्रकार इस स्थल का अपनी इन विशिष्ट गतिविधियों के कारण बहुत ही महत्व है । इन सभी तथ्यों का लेखक ने इस ग्रंथ में बहुत ही सारगर्भित रूप में वर्णन किया है । इनके एक-एक शब्द की बड़ी-बड़ी व्याख्याएं हो सकती हैं।
क्योंकि कवि ने यहां अधिकतर शब्दों को नरवरभूमि का विशेषण बनाया है , इसलिए जो संक्षिप्त रूप का अपने ज्ञान एवं बुद्धि वैभव से विस्तार करने वाले लोग हैं , काव्य की बढ़िया समीक्षा करने वाले लोग हैं , वे लोग इसके गंभीर तात्पर्य को जान पाएंगे !
और यदि भविष्य में इस ग्रंथ की कोई टीका भी हुई तो उस के माध्यम से इन बातों का और विस्तार पता चलेगा । यह पुस्तक लेखक ने हिंदी अनुवाद सहित लिखी है । इसे सभी सहृदय पाठक पढ़ें एवं काव्य का आनंद लें । हर हर महादेव।
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