||| मनहूस गुड़िया ||| भाग - 1
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||| मनहूस गुड़िया ||| भाग - एक |||
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आज शाम बजे से ही आसमान में काले-काले बादल मंडराने शुरू हो गए ।
ठंडी हवाएं चलने लगीं।
और फिर बारिश शुरू हो गई।
मैं अपने उसी शांत एकांत कमरे में बैठा हुआ खिड़की से बाहर का दृश्य देख रहा था ।
फिर मैं उठा और बाहर आ कर दरवाजा खोल, बारिश को देखने लगा !
एक ठंडा सा एहसास मन-मस्तिष्क में प्रवेश किया , तो एक ताजगी सी महसूस हुई ।
कब तक खड़ा रहता, सो अंदर आया, और अपने बेड पर आ लेटा ।
आज सांझ से ही मन में उस गुड़िया का ख्याल आ रहा था, जो सबसे पहले दीनानाथ शिरोडकर को एक पोस्ट के जरिए मिली थी।
और उसके बाद शिरोडकर साहब के घर में, मनहूस खामोशियों का सिलसिला सदा के लिए कायम होता चला गया।
शिरोडकर साहब आज नितांत अकेले हैं ।
उनकी पत्नी जो 5 साल पहले गुजर चुकी हैं।
उनकी कोई संतान नहीं है ।
45 साल की उम्र में शिरोडकर , इस भरी दुनिया में तन्हाई की जिंदगी गुजार रहे हैं।
और फिर मैं, अपनी सोचो में गुम हो गया।
शिरोडकर साहब से मेरा परिचय तब हुआ , जब मैं सक्सेना साहब के घर में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने के लिए गया था ।
सक्सेना साहब का मेरे ऊपर इतना विश्वास था , कि वह मुझ, छोटी आयु के पंडित को बुलाते थे ।
सक्सेना साहब का इकलौता लड़का , राहुल सक्सेना !
जिसकी उम्र 25 साल थी , कार एक्सीडेंट के कारण जिंदगी और मौत से जूझ रहा था ।
सक्सेना साहब का रात के 10:00 बजे मेरे पास फोन आया ।
मैंने तुरंत बस पकड़ी और , दिल्ली , सक्सेना साहब के घर के लिए रवाना हो गया ।
एक प्राइवेट हॉस्पिटल में उनका लड़का भर्ती था । उन्होंने मुझसे कहा - पंडित जी ! कुछ हो सकता हो तो करिए!
मैंने तुरंत महामृत्युंजय मंत्र का जाप शुरू कर दिया ।
3 दिन बाद लड़का खतरे से बाहर हो गया था ।
भगवान की कृपा ही इसमें कारण थी।
मैंने उन्हें बताया कि मंत्र का जाप तो सभी करते हैं, लेकिन मंत्र के साथ आत्मीयता कोई-कोई ही बिठा पाता है ।
यह एक ऐसी विद्या है ,जो कभी-कभी जिंदगी भर जपते रहने वाले को भी वैसा फल नहीं देती , जैसा कम जपने वाले को भी कभी-कभी दे जाती है ।
मतलब कुल मिलाकर इस अध्यात्म विद्या, इस मंत्र शक्ति के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता ।
किसी किसी का पूर्व जन्मों का पुण्य इतना प्रबल होता है , कि उसकी छुई हुई मिट्टी भी तलवार का काम करती है ।
और वह इस संसार में प्रसिद्ध होता है।
साधक का शुद्ध ह्रदय, तपस्या की पवित्रता, और इष्ट देव की कृपा - यही मंत्रों से सब कामों को सिद्ध करती हैं।
खैर, कुल मिलाकर, बेटे के ठीक हो जाने के कारण तब से सक्सेना साहब बहुत खुश हैं ।
जिस दिन महामृत्युंजय-मंत्र का हवन था, उसी दिन राहुल को देखने के लिए दीनानाथ शिरोडकर जी भी आए हुए थे , जोकि सक्सेना साहब के ही खास दोस्त थे।
सक्सेना साहब की उम्र लगभग 50 साल थी ।
वे बिल्कुल तरोताजा दिखाई पड़ते थे।
इस उम्र में भी रोजाना खूब भागदौड़ करते थे।
उनकी स्टील की फैक्ट्री भी काफी अच्छा चल रही थी।
वे कभी भी नहीं भूलते, कि कैसे वह एक साधारण दुकानदार से एक स्टील की फैक्ट्री के मालिक बने।
आज से 10 साल पहले जब उनकी साधारण स्टील के बर्तनों की दुकान थी , तब मेरा उनसे परिचय गंगा जी के घाट पर हुआ।
मैं बैठा हुआ माला फेर रहा था ।
सक्सेना साहब आए और मुझसे अपना हाथ देखने के लिए कहा।
मेरी उम्र उस समय सिर्फ 18 वर्ष थी ।
मैंने साधारण रूप से कहा कि आपका शनि का पर्वत उठा हुआ है, आप लोहे या स्टील के क्षेत्र में अच्छा बिजनेस कर सकते हैं ।
मैंने उन्हें कुछ शनि के मंत्रों का जाप बताया।
इस समय उनकी हालत ऐसी नहीं थी कि वह जाप के लिए ब्राह्मणों को बैठा पाते , सो मैंने मात्र ₹1 में ही उनके लिए शनि के मंत्रों का संपूर्ण जाप पूरा किया।
शनि देवता की अंगूठी और एक यंत्र बनवा कर अभिमंत्रित कर उनके गले में डाला।
सक्सेना साहब दिन-ब-दिन उन्नति करने लगे ।
फिर तो हर वर्ष ही वह किसी न किसी देवता का अनुष्ठान कराने लगे ।
और इस प्रकार सक्सेना साहब ने पीछे मुड़कर नहीं देखा ।
आज उनका अच्छा खासा स्टील का बिजनेस है ।
तो बात हो रही थी , शिरोडकर साहब की।
हवन वाले दिन शिरोडकर साहब मुझसे मिले ।
उसके बाद उन्होंने मुझे एक हवन करने के लिए अपने घर बुलाया ।
तब उनकी पत्नी जिंदा थी ।
मैंने उनसे पूछा- हवन क्यों कराना चाहते हैं?
मेरे कई बार पूछने पर भी उन्होंने कुछ नहीं बताया ।
कोई बात नहीं ।
जब यह अंधेरी रात , इस दुनिया में उतरी ,
तब मैं निद्रा देवी के प्रभाव में आया।
और अभी मेरी पहली झपकी लगी ही थी, कि मुझे ऐसा एहसास हुआ कि कहीं दूर से किसी औरत के रोने की आवाज आ रही है।
मेरी नींद उचट गई!
मैंने ध्यान लगाकर सुना!
वह मेरे कमरे से बाहर थी !
मैं समझ गया कि यह कोई बुरी आत्मा है!
मैंने अपना मृत्युंजय रक्षा कवच निकाला, और उसे पहन कर, गंगाजल के छींटे अपने शरीर पर मारे , और बाहर आया !
पूरे घर में टार्च लेकर मैं घूम आया , लेकिन कहीं भी कोई नहीं !
शिरोडकर साहब और उनकी पत्नी सोए हुए थे , मैंने उन्हें जगाना उचित नहीं समझा!
यह पूजा का पहली ही तो रात थी।
खैर , मैंने मृत्युंजय-कवच को उतारा और दोबारा अपनी थैले में रख दिया और सो गया।
वह कोई रात के 3:00 बजे थे, जब एक साथ कई बिल्लियों के रोने की आवाज के साथ ही तेज आंधी चलने लगी।
और उसी आंधी के साथ मेरी खिड़की भी खुल गई ।
अब मैं समझ गया कि मामला कुछ और ही है ।
मैंने ऐसे बड़े बड़े जिन्नात देखे थे जिनका सताया आदमी पानी नहीं मांगता !
ऐसी बहुत सी चुड़ैल देखीं थीं, जो आदमी की छाती पर चढ़ जाया करती हैं !
इसलिए मैं इससे अधिक डरता नहीं था।
मैं उठा और खिड़की से बाहर झांका ।
बाहर पेड़ों के पत्तों की सांय-सांय की आवाज़ थी सिर्फ !
बिल्लियों की आवाज बंद हो चुकी थी !
मैंने कुछ अपने सिद्ध किए हुए मंत्रों का जाप किया ,और फिर सो गया ।
लगभग 5:30 बजे मैं उठा , और नित्य कर्म से फारिग होकर पूजा वाले कमरे में पहुंचा।
लगभग 7:00 बजे तैयार होकर शिरोडकर साहब पूजा वाले कमरे में आए ।
मैंनें घूरते हुए कहा - "देखो शिरोडकर जी! मैं गारंटी के साथ कह सकता हूं, कि आपके घर में कुछ ना कुछ गड़बड़ है !"
"और कुछ ऐसी गड़बड़ , जिसके बारे में आपने मुझसे बताया नहीं !
यह बात ठीक नहीं है ।"
मेरी इतना कहना था कि शिरोडकर साहब की पत्नी फूट-फूट कर रोने लगी।
.........
.............. क्रमशः।
१०:४९ रात्रि, ३०/०४/२०२०
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मेरा इतना कहना था कि शिरोडकर साहब की पत्नी फूट-फूट कर रोने लगीं .....
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ऐसा लगता था जैसे उनके अंदर की हिम्मत ने जवाब दे दिया है , और अब उस रहस्य को अपने अंदर ज्यादा देर दबा नहीं सकती हैं !
मैंने कहा - धीरज रखिए ! मैं यथासंभव आपकी मदद करुंगा। जब तक आप मुझे बताएंगे नहीं , कि परेशानी क्या है , मैं कैसे उसका इलाज कर सकता हूं?
जैसे-तैसे उन्होंने अपने आंचल से अपने आंसू पौंछें और शिरोडकर साहब ने उन्हें सहारा दिया!
फिर शिरोडकर ने खुद ही कहना शुरू किया कहना - "पंडित जी! हम आपसे कुछ बात छुपाना चाहते थे !
असल में यह बात उसने हमें बताने से मना किया है !"
मैंने कहा - किसने ?
शिरोडकर साहब का हलक सूखने लगा ।
गले से आवाज निकल नहीं रही थी।
मैंने उनके कंधे पर हाथ रखा और कहा- " देखिए भगवान् से बड़ी कोई शक्ति संसार में नहीं है !
वे चाहें , तो बड़े से बड़े शैतान भी खत्म हो जाते हैं !
वे चाह लें, तो बड़ी-बड़ी तूफानी बलाएं भी पानी मांगने लगती हैं।"
शिरोडकर को कुछ ढांढ़स बंधा। उन्होंने अपनी दास्तान सुनानी शुरू की ।
शिरोडकर - "पंडित जी! मेरे कारोबार से मेरे कुछ गांव के पड़ोसी जो शुरू से ही हमसे जलते हैं, वे खुश नहीं थे ।
मेरी दिन-ब-दिन बढ़ती उन्नति से उनके सीने पर सांप लोटते थे । "
"मेरे खानदान की एक ताई जो वैसे तो बुढ़िया होने को आई , लेकिन अब तक जादू-टोना करना नहीं छोड़ती!
टोने-टोटके करना उसका शौक है, और हमारे परिवार से जलना उसका पुराना पेशा!"
"उसको यह बात बर्दाश्त नहीं होती थी कि क्यों मेरे लड़के अनपढ़ रह गए और क्यों इसका (मेरे पिताजी सतवीर शिरोडकर) का परिवार इतना अच्छा-पढ़ लिख गया और साथ ही साथ इनका कारोबार भी शहर में कैसे फैलता चला गया !"
" वह इतनी शातिर है कि बहुत मीठी मीठी बात करती है कभी भी यह जताती नहीं कि मैं तुमसे जलती हूं !
उसका पूरा परिवार ही ऐसा है उसकी दो बेटियां (काजल, पायल ) एवं एक बेटा (रवेन्द्र) , वैसे तो ऐसे दिखाते हैं जैसे हम इनके बहुत सगे हैं, लेकिन सबसे बड़े आस्तीन के सांप वे ही हैं ।"
"एक बार तो हमारे गांव में ही एक घूमता हुआ तांत्रिक बाबा आया था।
हमने मेरी माता जी (श्रीमती सरोज शिरोडकर) ने जब उस तांत्रिक से अपनी विपत्ति और पति की बीमारी का कारण पूछा
तो उसने बताया कि तुम्हारी ताई तुमसे जलती है और उसने तुम अपने घर के अंदर कोठरी में जाकर चेक करो तो वहां एक गुड़िया मिलेगी !"
"घर के अंदर एक अंधेरी कोठरी थी जिसका स्टोर रूम के रूप में इस्तेमाल किया जाता था ।
तब हमें वहां एक टूटे हुए बक्से के अंदर एक गुड़िया मिली ।
आज भी हम आश्चर्यचकित हैं की ऐसा कैसे हो सकता है कि यह गुड़िया हमारे घर के अंदरूनी कमरे में भी पहुंच गई ??"
"मेरे पिताजी (बलराम शिरोडकर) की पिछले 1 महीने से तबीयत खराब चल रही थी ऐसा लगता था जैसे जल्दी ही शरीर छोड़ देंगे ।
लेकिन तांत्रिक बाबा की विधि पर अमल करके हमने अपने आप को जल्दी ही आफत से छुड़ा लिया और अपने पिताजी को मौत के मुंह में जाने से भी बचा लिया।"
"लेकिन हमारी ताई (राजवती) की तांत्रिक क्रियाओं वह जादू-टोना के साथ-साथ धूर्ततापूर्ण झूठा मधुर व्यवहार करना एवं अंदर ही अंदर व्यक्ति को खत्म कर देना यह हुनर हमारी ताई राजवती के साथ-साथ उसके बच्चों को भी विरासत में मिला है ।"
"उसके पति को तीन साल पहले पेरालिसिस हो चुका है और वह अपनी पत्नी की इन्हीं जादूटोनाबाजी की वजह से हमेशा बीमार खाट पर पड़ा रहता है ।"
"खैर! मैं इन सबसे ऊपर उठकर अपने परिवार को लेकर दिल्ली में सेटल हो गया और भगवान का नाम लेकर अपने कारोबार में जुट गया।"
"बीस साल की कड़ी मेहनत के बाद मैं आज इस मुकाम पर हूं कि मुझे भगवान की कृपा से किसी की आवश्यकता नहीं ।"
"लेकिन यह कहानी जो आपने रात महसूस की, आज से सिर्फ 6 महीने पहले की है ।"
"मुझे एक रविवार की सुबह एक पोस्ट मिली ।
मैंने उसे खोल कर देखा तो एक हाथ से बनी हुई कपड़े की गुड़िया, जो पूरी तरह देखने से ही लग रही थी किसी ने टोटका करके बनाई है।"
"मैं तुरंत उसे लेकर एक घने जंगल में फेंक आया और घर आकर स्नान किया भगवान का स्मरण किया।"
" मैं रात को बेड पर जाकर सो गया।
मैं सपने में देखता हूं कि कोई सफेद कपड़े पहने हुए औरत मेरे ऊपर बैठी है और मेरा गला दबा रही है !!
मैं चीख कर उठ बैठा ।"
"सहसा जैसे ही निगाह सामने टेबल पर गई तो लोकसभा देने वाला दृश्य मेरे सामने था,
जिस पोस्ट से मिली हुई गुड़िया को मैं गहरे घनघोर जंगल में फेंक आया था वही गुड़िया सामने टकटकी लगाए बैठी मुझे घूर रही है !!"
"ना चाहते हुए भी मेरे अलग से एक बहुत तेज चीख निकल पड़ी !
मेरा बेटा सुमित भागता हुआ आया , लेकिन रास्ते में ही इतनी तेज टक्कर खाकर गिरा कि उसके सिर में गूमड़ निकल आया।"
" मेरी पत्नी ने पूछा- क्या हुआ तुम क्यों चीखे?"
"मेरे मुंह से आवाज गायब थी , इसलिए सिर्फ टेबल की तरफ इशारा कर पाया -
लेकिन अगले क्षण का दृश्य और ज्यादा चौका देने वाला था!!"
"मेज़ बिल्कुल खाली थी!"
"वहां कुछ भी नहीं था चाहे 1 साल पहले मेरी आंखों के सामने वही गुड़िया बैठी हुई मुझे घूर रही थी वह वहां से नदारद थी!!"
" एक क्षण को मुझे लगा कि शायद मेरी आंखो का भ्रम है !लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है??"
"अभी एक सैकेंड पहले ही तो मैंने उसे देखा था उसको!"
"मैं और मेरी पत्नी ने अपने बेटे सुमित को उठाया ऐसा लग रहा था कि किसी संभावित तूफान की आशंका से मेरी पत्नी का दिल धड़कने लगा !"
"सुमित ने खुद ही मेज की ड्रा में से दवाई निकाली और अपने माथे पर लगाई।"
"पापा क्या हुआ क्या था " - सुमित मेरे पास आ बैठा ।
मैं - कुछ नहीं बेटे ! लेकिन शायद कोई आफत आने वाली है ।
"शुभ-शुभ बोलो जी ! " मेरी पत्नी ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया !
पत्नी - "वैष्णो देवी की कृपा से कुछ नहीं होगा।"
"मैं आपको भी साथ ले चलूंगी उनके दर्शन कराने के लिए!"
"""" मैं भी अपने परिवार को ज्यादा परेशान नहीं करना चाहता था, इसलिए उस गुड़िया की बाबत मैंने किसी को बताया नहीं था जो मुझे पोस्ट के माध्यम से मिली थी।"""
इतना कहकर........
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शिरोडकर साहब यादों से बाहर निकले !
और खुद को संयत करते हुए बोले - पंडित जी!आपने जो रात देखा , वह वास्तव में उस तांत्रिक गुड़िया की करामात है, जो निश्चित रूप से मेरी ताई राजवती ने ही भेजी है !
आज भी उसके मन में मेरा सर्वनाश करने की चाहत है।
न जाने क्यों ,दूसरों को दुख पहुंचा कर किसी को चैन मिलता है ।" - शिरोडकर साहब इतनी गहरी सांस छोड़ कर रह गए
"ऐसे लोग खुद भी कभी सुखी नहीं रह पाते शिरोडकर जी " - मैंने उनसे कहा ।
"और आपने यह गलती की, जो मुझसे पहले ही इस बारे में नहीं बताया , अगर आप पहले ही बता देते ,
तो शायद में अपने घर से ही इसका उपाय करके चलता!
लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है ।
मैं एक बार अपने घर जाकर कुछ अपना जरूरी सामान लाना चाहता हूं , उसके बाद ही मैं आपकी समस्या करने समाधान कर पाऊंगा ।
मेरे कुछ जरूरी किताब, मोरपंखी दाने वाली माला, घर पर ही है जिसके द्वारा मुझे साधन करना है,
इसलिए कम से कम कल तक आपको धैर्य बनाकर रखना है।
आपने देखा किस तरह से आपके घर में पूजा शुरू भी नहीं हुई और विघ्न आने शुरू हो गए!" - मैंने उन्हें समझाने वाले अंदाज में कहा।
शिरोडकर साहब इसमें समझ चुकी थी कि यह पंडित जी सिर्फ नाम मात्र के ही नहीं है अभी तो इन हो कर्मकांड के साथ-साथ , चुड़ैल-शास्त्र का भी बड़ा ज्ञान है।
इसलिए कहा - "ठीक है पंडित जी! जैसा भी आप उचित समझें वैसा करें, लेकिन हमें इस मुसीबत से बचाएं ।
मैंने सोचा आप से हवन करा लूंगा , तो शायद इस बाधा से पीछा छूट जाए , लेकिन अब तो लगता है कि आपकी ही विधि से काम चलेगा।"
मैं बोला - ठीक है ।
शिरोडकर साहब की पत्नी रसोई में जा चुकी थीं और सबके लिए नाश्ता तैयार कर रही थीं ।
आज की पूजा का प्रोग्राम कैंसिल हो चुका था।
उनका नौकर दिनेश छुट्टी पर गया हुआ था , गांव में उसकी मां की तबीयत बड़ी खराब थी, इसलिए सारा काम उनका परिवार स्वयं ही देख रहा था।
बस सुबह झाड़ू पौंचा करने वाली आती थी।
सुमित (शिरोडकर साहब का बेटा) इस वक्त पूजा का सामान खरीदने बाजार गया हुआ था ।
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डॉ हिमांशु गौड़
०२:२२ दोपहर, २६/११/२०२०
गाजियाबाद।



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