यादें! यादें! यादें!
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क़तरा-क़तरा जलता है जो,
लम्हा-लम्हा ढलता है जो,
रेत सरीखा फिसल रहा जो,
ये जीवन है - यादें! यादें!
फूलों से जो आज खिलें हैं,
हम-तुम जो ये आज मिले हैं,
वक्त नहीं ठहरेगा कल तक,
रह जाएंगी - यादें! यादें!
एक हवा का झोंका आया,
और सारी उम्रों को ले गया,
पुरनम की मदमाती रातों,
और रोशन सुबहों को ले गया,
आज अकेले में बैठा वह,
अपने मन में सोच रहा है,
भीगी-पलकों पर बचतीं बस,
यादें! यादें! यादें!
कुहरा ये छा रहा घना है,
चर-मर सूखे पत्ते करते,
ओस चू रही है पेड़ों से,
टपक रही हैं - यादें! यादें!
जीवन एक हवा का झोंका,
हर एक लम्हा रिसता सा है,
और दे जाता है बस हमको
यादें! यादें! यादें!
यूं तो मेले बहुत हैं देखें,
बरसातों में खूब हैं भीगे,
खिलते बसंत पीली सरसों के,
लेकिन तन्हा फिर भी दिल है,
यादें! यादें! यादें!
जहां कभी महफ़िलें सजतीं,
आज वहां वीरानी छाई,
जहां कभी ठहाके गूंजे
वहां आज उदासी छाई,
वक्त वक्त की बात है सारी
रह जाती हैं - यादें! यादें!
बरसों बीते, मौसम बदले,
लेकिन मन तो वही खड़ा है,
कालचक्र का क्या है गिनना,
कौन है छोटा, कौन बड़ा है,
वक्त की आंधी चलती है,
सनन-सनन-सन, यादें! यादें!
हर्ष, विषाद, रोष, पीड़ा, हम
मन में लेकर जीते हैं,
बीस बरस भी बीत जाएं तो,
लगता है दो-पल बीते हैं,
फिर देखा इक्कीस चल रहा
यादें! यादें! यादें!
एक पल में ही समां गुज़रता,
फिर एक लम्हा नया बदलता,
जातीं नहीं पुरानी सी कुछ
मीठी सी ये - यादें यादें
अब के जो पुरवाई चली है,
कुछ किस्से फिर याद आए हैं,
चेहरे पर मुस्कान छाई और,
अश्कों की कुछ बूंदें टपकीं,
यादें! यादें! यादें!
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हिमांशु गौड़
१०:१६ रात्रि,
२३/०५/२०२१
उदयपुर।
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