पहले से ही लिखा हो जैसे ऐसा जीवन मेरा मिला हो जैसे बसा बसाया, ऐसा उपवन मेरा कभी-कभी लोगों को जीवन समझ नहीं आता है नये-नये घटनाक्रम में यह उलझा सा जाता है जैसे कोई देखता हमको, उस आसमान के पारे जैसे बाट जोह रहे हों, चमकीले से तारे जैसे इंद्रधनुष के रंगों में जीवन लिपटा हो जैसे खुद के मन के भीतर जगत् सकल सिमटा हो जैसे लिखी हुई गाथा को हमको कोई सुनाए जैसे बुने हुए कपड़े को बस तन पर पहनाए जैसे मिल जाते हों पिछले भाग्य प्रकट होकर के वैसे ही जीवन हमको मिलता है निकट होकर के जैसे कोई सरगम गाए आकर्षित सी करती जैसे कोई कविता गाए मन हर्षित सी करती वैसे ही कुछ नगर अदृश्य हो खड़े हैं अपने अंदर अंदर भावों की नदियां, कर्मों के सात समंदर जैसे घर तैयार खड़े हों, पहले से बने बनाए जैसे दुनिया सजी हुई हो,किस्सों सी कही-सुनाई जैसे बस संसार की अन्तिम लहर समेटे हमको जैसे उन लोकों के वासी पास बुलाएं हमको वैसे ही यह कथा सकल है बुनी हुई पहले से जैसे रामायण की गाथा लिखी हुई पहले से जैसे काकभुशुण्डि जी गाते हों युगों युगों से जैसे और श्री वैनतेय सुनते हों युगों-युगों से जैसे या फिर शिवजी का यह जप अखंड चलता है...