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Showing posts from January, 2022
  मृत्युञ्जयमन्त्रस्य जप: ••••••••• (हिन्दी भावार्थ सहित) •••••••• १) रात्रौ यदा सर्वे शेरते, तदैकाकी होत्थाय जपेद् - ओं त्र्यम्बकं यजामह इति! [अनुपवीतो न जपेद्, वैदिकत्वाद्रात्रावपि न, उपर्युक्तवचनं भावरहस्यदर्शनार्थमेव केवलम्।] २) यदा मृत्युरिव कश्चित्कष्ट आपद्वोद्भवेत्, तदोत्थाय जपेद् - ओं त्र्यम्बकं यजामह इति! ३) यदा सर्वैस्त्यक्तो दीनो हीन इवानुभवेत्तदा सावधानो जपेद्- ओं त्र्यम्बकं यजामह इति! ४) यदा हृदयं दु:खितं संसारिभिर्,न कश्चिन्मार्गश्च, जपेद्- ओं त्र्यम्बकं यजामह इति! ५) दमनमिच्छेद्रिपूणां चेदेकान्ते गत्वा, जपेद्- ओं त्र्यम्बकं यजामह इति! ६) आत्महत्याविचारास्त्वामावृण्वन्ति चेद्, आत्मानं संयम्य जपेद्- ओं त्र्यम्बकं यजामह इति! ७) ऋणित्वादात्मजिघांसुरिव चिकर्षतीव व्यवहर्तुं, निरुध्येतस्स्वं, जपेद्- ओं त्र्यम्बकं यजामह इति! ८) एतास्तान्त्रिकक्रिया रिपुकृता: निष्फलीकर्तुं, जपेद्- ओं त्र्यम्बकं यजामह इति! ९) अनुक्त्वैव कञ्चिदपि, मौनीभूय सर्वविरक्त इव, मङ्गलेप्सुर्जीवनस्य, जपेद्- ओं त्र्यम्बकं यजामह इति! १०) साफल्यमाप्तुं, हर्तुं दौर्भाग्यदिनानि, गुप्तीभूय जपेद्- ओं त्र्यम्बकं...

जगज्ज्वरग्रस्त:, संस्कृत पद्य हिन्दी सहित

  || जगज्ज्वरग्रस्तदशां निरूपयति -  [[ सांसारिक विषय रूपी ज्वर से ग्रस्त मनुष्य की दशा का निरूपण करते हैं ]] •••••••• क्रीणानि सर्वभुवनानि सुखी भवानि चन्द्रानना: घटकुचीर्गृह आनयानि इत्थं विचिन्तयति लोकगते मनुष्ये  हा हन्त हन्त मरणं, वय उज्जहार """मैं सारी दुनिया को खरीद डालूंगा! मैं खूब सुख से रहा करूंगा! चांद के जैसे चेहरे वाली सुंदर स्त्रियों को अपने घर में लाऊंगा!""" इस दुनिया में आया हुआ आदमी ये सोचता ही रहता है (इन बातों में उलझा रहता है) और उसे पता भी नहीं चलता कि कब मौत आ कर उसकी उम्र को उखाड़ फेंकती है!! स्वीयात्तपोबलत एव नृपो भवानि एतानि दिव्यनगराणि धनान्नयानि हो कामदेवसुकुमारवपूंषि धृत्वा योषिद्भिरत्र रजनीषु रमै - विचिन्त्य ""अरे, मैं अपने परिश्रम और तपस्या के बल से राजा बनूंगा! इन सारे सुंदर शहरों को अपने पैसे से खरीद डालूंगा! मैं तो कामदेव जितना सुंदर शरीर बना करके, चांदनी की चमकती रातों में रमण करूंगा"" --- ऐसा सोचता हुआ मनुष्य-- अग्रिमे कथयति किं - पापं करोति न शृणोति सतां सुवाक्यं नित्यं धिया च मनसा कुपथं वृणोति स्वीयान्प...