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दक्षेश्वर शिव मन्दिर नीदरलैंड्स

 शास्त्रस्य धर्मस्य तनोति कीर्तिं

शिवस्य रामस्य जपेच्च नाम

संसारकार्येऽपि हरीशचिन्ता

तादृश्यहो वेदवतीति सान्द्रा||


विदिक्षु दिक्षु प्रसरेत्सुधर्मो

नाशं व्रजेत् पापजतापघर्मो

शिवो भवेत्सर्वजनस्य वर्म

विचिन्तयन्ती सुभगा हि सान्द्रा||


जाता च या नीदरलेण्डदेशे

सा सूरीनाम्ना विदिते प्रदेशे

गुणप्रकर्षैश् शुभदा जनेभ्यस्

सान्द्रा सती वेदवती विभाति||


महच्च पुण्यं प्रभवेन्नृणां यद्

देवेषु पुण्येषु मतिर्भवेच्चेत्

तद्भारते भूमितले समग्रे

प्रख्यापयेद् वेदवतीति सान्द्रा||


पुण्यप्रभावान्मुनिमोदितत्वात्

साधुश्रिया च प्रियशोभितत्वात्

दक्षेश्वराख्ये शिवधाम्नि चाद्य

आध्यक्ष्यमोदं मुदिता वहन्ती||


दक्षेश्वरस्यापि वदामि गाथां

संस्थापितं मन्दिरमत्र यस्य

श्रीकेतुमालेश्वरमन्दिरं च

सुरेन्द्रवर्येण शिवप्रियेण||


म्लेच्छत्वमायन्ति जना पृथिव्यां

भक्ष्यं ह्यभक्ष्यं न विचारयन्ति

तद्वद्धरायां प्रभुपूजनानि

प्रसारितानीह सुरेन्द्रवर्यै:||


"अहं पृथिव्यां सुरभक्तिकीर्तिं

प्रसारयन् जीवनयापनानि

करिष्य" - इत्यादिविचारपूर्णं

सुरेन्द्रमीडे शिव! शङ्कराख्यम्||


म्लेच्छत्वजीवेऽपि अपुण्यगन्धे

जातेऽधुना वै विपरीतबन्धे

"जीवेम रामाख्यसुपुष्पगन्धे"

सङ्कल्पितं येन नुमस् सुरेन्द्रम्||


दृष्ट्वा सुरश्रीविरतानपुण्यान्

यज्ञादिहीनान् शिवसूत्रहीनान्

"कथं तरन्त्वत्र जना: द्रुतं च"

विचार्य देवालयनिर्मितिस्स्यात्||


इति प्रियार्थं कृतनिश्चयार्थं 

देवद्विजप्रीतिकरं मुदार्थं

अस्थापि दक्षेश्वरमन्दिरश्री

श्रीकेतुमालेश्वरसद्गृहञ्च||


यस्यैकतश्शुद्धजला वहन्ती

सरोवरश्चैव तथाऽपरस्मात्

हंसाश्च कूर्मा: कमलानि तस्मिंस्-

तरन्ति सन्तीह खिलन्ति तत्र||


तत् तादृशं श्रीशिवराट्स्थलं सद्

दक्षेश्वराख्यं विलसद् विभाति

भक्तार्चनासुस्वरगीतरीतिस्

सम्मोहयेत्तत्र सतां मनांसि||


अनन्तबोधोऽपि वसेच्छुभाढ्ये

लोके स्वदेशं च विहाय तत्र

धर्मप्रसारे सुरभक्तिसारे

संसारसारे सुजना निमग्ना:||


तेनैव भूय: प्रतिबोधितस्सन्

हिमांशुगौड: कृतवान् सुकाव्यं

संवर्णयन्तस्सुरदेवगाथा:

विदस्स्वकालं परियापयन्ति||

••••••••

हिमांशुर्गौड:

०९:४७ रात्रौ

०६/०९/२०२२

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