कुछ ऐसे भी लोग यहां पर
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बाहर से जितने सुलझे हैं,
अंदर से उतने उलझे हैं
कुछ ऐसे भी लोग यहां पर!
बाहर से तो सरल परन्तु
दिल में भरा गरल है किंतु
कहते रहते हैं दिन भर जो
तुभ्यं सर्वशुभानि सन्तु
इनका बस जो चले करा दें
अन्त्येष्टि की क्रिया यहीं पर,
कहते रहते हैं मुंह पर तो
तुम हो दोस्त, हमारे बंधु!
बाहर से जो गाय से भोले
भीतर महा विषैले जंतु
छली घात करने वाले हैं
नरपिशाच ये क्रूर घुमंतू
तुड़वाते हैं प्रेम का रिश्ता
बंधवाते नफ़रत का तन्तु
अच्छी बातों में बाधा बन
करते हैं किन्तु व परन्तु
सर्वेभ्योऽपि विषं प्रदद्यात्
मह्यं सुधां प्रदेहि किन्तु!
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हिमांशु गौड़
१०:२३ रात्रि
०७/०१/२०२२
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