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वित्तेन हीना: पशुभिस्समाना:? संस्कृतकाव्यम् हिमांशुगौड़

 वित्तेन हीना: पशुभिस्समाना:?


[ कियानपि विद्वान्स्यात् स धनवशगीभूय धनिनां दिवानिशं सेवारतो जायते,  क्वचित्तु परिस्थितिजालशतबद्धतया जीवनस्य मूलभूतसुखेभ्योऽपि वञ्चितस्स कथं जीवति, तदत्र वर्णितम्। एते तात्कालिकरूपेणोदितविचारास्सन्ति, अन्यकालेऽस्मात्पृथगपि विचारकल्प उदेतुं शक्नोति। ]
***********
कण्ठे समस्तं भवताच्च शास्त्रं
श्रुतिर्वसेद्वाचि सदा प्रगल्भा
कामं न किञ्चिल्लभते युवत्त्वे
धनेन हीना: पशुभिस्समाना:

आज्ञां धनाढ्यस्य शिरोरुहा स्यात्
तत्कार्यमग्नो‌ऽस्तु सदैव विद्वान्
वृत्तिं ददातीति प्रभुर्मदीयो
विद्यायुतास्तद्वशगा भवन्ति

परस्परं चापि विवादयन्ति
बुधान् स्वदासानिव वर्तयन्तस्
तेऽपीह चाटूक्तिवचांसि होक्त्वा
वित्तेशपादौ मुहुरालिहन्ति

ह्यतो धनस्यैव विभा समन्तात्

मन्त्री भवेत् कोटिधनैस्सुयुक्त:
तद्दासतां याति समस्तराज्यं
तदिङ्गितेनैव वहेच्च वायु:
किं कौलपत्यं किमु बौद्धिकत्वम्!

आदेशतो यस्य समस्तशिक्षा
चलेद् व्यवस्था नयताऽपि वश्या
मूर्खस्स हस्ताक्षरशून्यवान् सन्
ऐश्वर्यमग्नो भुवि दृश्यतेऽहो!

प्रवक्तृतां वाञ्छति यश्च मादृक्
समं वय: कष्टमुखे निपात्य
ऊढ्वा च शास्त्राण्यपि दुष्कराणि
क्व वित्तलेश: क्व च भोगलेश:

आङ्ग्लैर्लसन्तं रमयन्ति नार्य:
श्रीसंस्कृतज्ञं पितृवच्चरन्ति
सम्मानता, नैव च कामदृष्टि:
पठेत्क एवं खलु देवभाषाम्?

ईर्ष्यामहाद्वेषरता बुधाश्च
परस्परं दोषसमीक्षकाश्च
परस्य गुण्यं न वदन्ति तस्माद्
रतिर्हि कस्याऽस्त्विह देववाचि?

न वित्तलेशो न च कामलेशो
न सम्पदां पश्यतु हाऽऽननानि
दिवानिशं वह्निरिवोत्तपेद्यस् 
स शास्त्रकाव्यादिपथव्रतस्स्यात्
*****
हिमांशुर्गौड:
११:२६ मध्याह्न 
०७/०५/२०२३

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