Skip to main content

संसार है जलती आग सरीखा - हिन्दी काव्य

 संसार है जलती आग सरीखा इसमें कैसा सुख ढूंढे

इसके रस का परिणाम है तीखा इसमें क्या तृप्ति ढूंढे

धन,पद, युवती माया में भरमा जीव जो मरने वाले हैं
चौरासी लाख भंवरों में जो हैं फंसे न तरने वाले हैं

उनमें कैसी है कथा लिखनी, सब व्यर्थ मित्र संबंध यहां
पाप-पुण्य परिणत दुख-सुख के लिखते सभी निबंध यहां

कभी तुम्हीं हो पुण्यवान् स्वर्गों के बनते राजा हो
कभी कभी यौवन सुन्दर खिलते फूलों से ताज़ा हो

कभी पाप आक्रान्त वेश में कष्ट हो पाते नये नये
कभी पुण्य से भ्रष्ट हीन लोकों में भी तुम फिरे गये

कभी तुम्हीं हो चंद्रकांत रजनी में खूब चमकते हो
कभी तपस्या सूर्यकान्त सम्राट् दिवस के बनते हो

कभी कभी गणपति के भावों से होते हो ओत-प्रोत
कभी शैवधारा के गामी, वैष्णवजल के दिव्यस्रोत

कभी तुम्हीं नष्टधामा हो भटक रहे हो लोकों में
कभी स्वर्णभवनों में रमते उतर गये हो शोको से

कभी भीति के सागर की लहरों में बहते रहते हो
कल जानूंगा आत्मतत्व, खुद से ये कहते रहते हो

स्वप्नमात्र यह जगत् समूचा कल्पित है बस माया से
भरमाता है पर मनुष्य निज को, पा ऐहिक काया से

कर्मगति है गहन कठिन कहना किसका उद्धार हुआ
धन्य है केवल वही जिसे आत्मा से अपनी प्यार हुआ

द्वैत सभी अद्वैत मात्र हो जाते हैं ये निश्चित है
शैवादि धाराओं से ही ब्रह्म रूप अभिषिञ्चित है 

काल देश दिक् नाम रूप गुण धर्म प्रपंचित वपुष्! सुनो
इन सबसे विरहित कैवल्यप्रापि नैज को मात्र गुनों!
*******
हिमांशु गौड़
०८:१४ रात्रि
१२/०६/२०२३

Comments

Popular posts from this blog

संस्कृत सूक्ति,अर्थ सहित, हिमांशु गौड़

यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु: हंसा महीमण्डलमण्डनाय हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां येषां मरालैस्सह विप्रयोग:।। हंस, जहां कहीं भी धरती की शोभा बढ़ाने गए हों, नुकसान तो उन सरोवरों का ही है, जिनका ऐसे सुंदर राजहंसों से वियोग है।। अर्थात् अच्छे लोग कहीं भी चले जाएं, वहीं जाकर शोभा बढ़ाते हैं, लेकिन हानि तो उनकी होती है , जिन लोगों को छोड़कर वह जाते हैं ।  *छायाम् अन्यस्य कुर्वन्ति* *तिष्ठन्ति स्वयमातपे।* *फलान्यपि परार्थाय* *वृक्षाः सत्पुरुषा इव।।* अर्थात- पेड को देखिये दूसरों के लिये छाँव देकर खुद गरमी में तप रहे हैं। फल भी सारे संसार को दे देते हैं। इन वृक्षों के समान ही सज्जन पुरुष के चरित्र होते हैं।  *ज्यैष्ठत्वं जन्मना नैव* *गुणै: ज्यैष्ठत्वमुच्यते।* *गुणात् गुरुत्वमायाति* *दुग्धं दधि घृतं क्रमात्।।* अर्थात- व्यक्ति जन्म से बडा व महान नहीं होता है। बडप्पन व महानता व्यक्ति के गुणों से निर्धारित होती है,  यह वैसे ही बढती है जैसे दूध से दही व दही से घी श्रेष्ठत्व को धारण करता है। *अर्थार्थी यानि कष्टानि* *सहते कृपणो जनः।* *तान्येव यदि धर्मार्थी* *न  भूयः क्लेशभाजनम्।।*...

Sanskrit Kavita By Dr.Himanshu Gaur

संस्कृत क्षेत्र में AI की दस्तक

 ए.आई. की दस्तक •••••••• (विशेष - किसी भी विषय के हजारों पक्ष-विपक्ष होते हैं, अतः इस लेख के भी अनेक पक्ष हो सकतें हैं। यह लेख विचारक का द्रुतस्फूर्त विचार है, इस विषय पर अन्य प्रकारों से भी विचार संभव है। ) ****** पिछले दशकों में किसी विद्वान् के लिखे साहित्य पर पीएचडी करते थे तब प्रथम अध्याय में उस रचयिता के बारे में जानने के लिए, और विषय को जानने के लिए उसके पास जाया करते थे, यह शोध-यात्रा कभी-कभी शहर-दर-शहर हुआ करती थी! लेकिन आजकल सब कुछ गूगल पर उपलब्ध है, आप बेशक कह सकते हैं कि इससे समय और पैसे की बचत हुई। लेकिन इस बारे में मेरा नजरिया दूसरा भी है, उस विद्वान् से मिलने जाना, उसका पूरा साक्षात्कार लेना, वह पूरी यात्रा- एक अलग ही अनुभव है। और अब ए.आई. का जमाना आ गया! अब तो 70% पीएचडी में किसी की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। बेशक नयी तकनीक हमें सुविधा देती है, लेकिन कुछ बेशकीमती छीनती भी है। आप समझ रहे हैं ना कि कोई व्यक्ति आपके ही लिखे साहित्य पर पीएचडी कर रहा है और आपकी उसको लेश मात्र भी जरूरत नहीं! क्योंकि सब कुछ आपने अपना रचित गूगल पर डाल रखा है। या फिर व्याकरण शास्त्र पढ़ने के लिए...