|| कविताएं अमूल्य हैं, वे विस्तृतार्थपरक घटकों पर लिखीं जाएं तो बेहतर है||
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हिंदी/ संस्कृत में कविताएं लिखता हूं - ऐसा जानकर कोई भी कह देता है - " मेरे विवाह पर मंगल श्लोक रचना करो, जिसमें मेरा, मेरे गांव का, माता-पिता, दुल्हन का भी नाम आ जाए।" कोई कहता है - "एक दोस्त का जन्मदिन है - उस पर एक लघुकविता लिखो!"
कोई किसी का अभिनंदन-पत्र लिखवाने चला आता है।
बहुत सी संस्थाएं अपने कुछेक आयोजनों पर गीत लिखवातीं हैं।
मैंने कोई आज तक इन सबसे भार का अनुभव नहीं किया।
लेकिन मेरी इस सहज-प्रवृत्ति का लाभ उठाकर अब मेरे कुछ जानने वालों का स्वभाव ऐसा हो गया है, कि उन्हें हर बात पर ही संस्कृत श्लोक चाहिए!
मतलब पेशाब करने भी जा रहे हैं तो उन्हें संस्कृत श्लोक चाहिए ! यार, हद होती है किसी भी चीज की!
किसी भी व्यक्ति का फ्री में इस्तेमाल करना कहां तक उचित है?
मैं यह नहीं कह रहा कि मुझे अपनी विद्या का कुछ लाभ चाहिए, वस्तुतः कविता तो अमूल्य है , लेकिन इसका अर्थ यह भी तो नहीं कि कवि के जीवन को ही बर्बाद कर दो !
हजारों लोग मेरे संपर्क में हैं, इस हिसाब से रोजाना २-३ फोन आ जाते हैं! आज फलाने का जन्मदिन! आज ढिमके का विवाह! इस चक्कर में न जाने कितने हजार श्लोक मैंने लिख डाले!
बहुत से लोगों ने अपनी प्रेमिका को प्रणय-निवेदन करने के लिए मुझसे कविताएं लिखवाईं, जिनका तत्काल सुफल भी उन्हें प्राप्त हुआ।
कुछ महिलाओं ने भी अपने प्रेमी के लिए गीत लिखवाए!
चाहे स्वागत कार्यक्रम हो या विदाई समारोह चाहे जन्मदिन हुए मरण दिन हर विषय पर बिना किसी लाभ के अपने जीवन के अमूल्य समय को नष्ट करके अवनी दुनिया चिंतन की दुनिया को मोड़ करके जिस कविता का श्रेय भी मुझे नहीं मिलने वाला ऐसी भी कविताएं लिखकर मेरे दिनेश लोगों की कहीं गणना भी होने नहीं वाली
आज मनुष्य अपना जीवन का एक-एक क्षण अपनी भौतिक संपत्ति को एकत्रित करने में देता है!
घर,गाड़ी,पैसा,मकान,प्रॉपर्टी ! क्योंकि इनके द्वारा ही समाज में सम्मान है! महान् शब्दों की गठरी बांध कर सैकड़ों कविताएं लिख कर भी कौन पूछने वाला है अगर भौतिक संपत्ति नहीं!
फिर भी मैंने आज तक कोई एतराज ना किया!
सबके लिए खुले दिल से तैयार रहा!
जैसे सूर्य की रोशनी अपनी रोशनी बिना भेदभाव के बांटता है, फूल अपनी खुशबू, चांद अपनी चांदनी, और नदियां अपना पानी- सबके लिए बिना किसी भेदभाव के बांटते हैं- इसी तरह से मैंने भी इस कविता को बिना किसी भेदभाव के सबको बांटा !
किंतु मामला तब बिगड़ जाता है, जब व्यक्ति को हर बात पर ही कविता चाहिए !
मेरे एक मित्र हैं , अनुष्ठान कार्य, पूजा-पाठ करते हैं !
दूसरे आचार्यों की अध्यक्षता में अनुष्ठान करने जाते हैं! अब जिस किसी भी आचार्य की अध्यक्षता में अनुष्ठान करने जाते हैं, उसी के लिए श्लोक बनवाने लगे जाते हैं!
उन्होंने मुझसे अब तक ५-६ आचार्यों के विषय में श्लोक बनवा चुके, ऐसी झूठी प्रशंसा करना मुझे कभी भी अच्छा नहीं लगता!
मैं अपने सभी लोगों को बता देना चाहता हूं, कि कवि होना अलग चीज है, मैं कोई भांड नहीं हूं , जो स्वार्थ/पैसे के लिए हर किसी की प्रशंसा कर दूंगा!
और हालात तब ज्यादा खराब हो जाते हैं जब जिन पर खुद कुछ भी अक्षर ज्ञान नहीं! कविता तो छोड़िए, सामान्य शास्त्र का भी ज्ञान नहीं वह हमारी कविता का यूज़ करके अपना निजी स्वार्थ सिद्ध करते हैं !
अब मेरे एक जानने वाले हैं, उनके कोई पंडित हैं, जो विदेशों में बड़े स्तर का पांडित्य कर्म करते हैं!
उनको कुछ अपने मनोनुकूल विवाह/ नामकरण इत्यादि के संबंध में संस्कृत छंदों में बंधे हुए श्लोक चाहिएं!
इसलिए उन्होंने अपने उस साथी से संपर्क किया जो कि भगवान की कृपा से परमानेंट प्रोफेसर भी हैं, लेकिन ज्ञान इतना भी नहीं कि 2 संस्कृत की पंक्तियां भी लिख सकें!
उन्होंने मुझे फोन किया, मैंने मन में सोचा कि इनका तो कभी फोन आता नहीं आज कैसे?
२-४ शब्दों में मेरे कुशल-क्षेम की बात करने के बाद (मैं सोच रहा था कि कब अपनी पांइट की बात पर आते हैं) तभी उन्होंने बताया कि ऐसे-ऐसे बात है !
अब उनको सीमित समय में ही १५-२० श्लोक चाहिएं, वो भी अर्थ सहित !
मेरे लिए यह कुछ भी एक बड़ी चीज नहीं,
लेकिन मुख्य बात यह है कि दूसरा व्यक्ति किसी कार्य में व्यस्त है या नहीं! उसका खुद का भी कुछ काम है या नहीं! - ऐसा सोचे बिना, सिर्फ अपने ही मतलब की बात करना कहां तक उचित है?
जबकि इन कामों में बहुत सोचना भी पड़ता है , और बहुत समय नष्ट होता है! प्रतिभा तो अलग रही! ज्ञान अलग रहा !
लेकिन इसका हमें कोई आर्थिक लाभ नहीं!
जबकि अर्थ प्रधान युग है!
मनुष्य को एक कप चाय भी ₹10 खर्च करने के बाद मिलती है !
जहां महाराज भोज के जमाने में १-१ श्लोक पर लाखों रुपए कवियों को मिलते थे , आज लाखों श्लोक लिखने के बाद भी एक रुपया हासिल नहीं है!
खैर, अगर कोई अच्छे विषय पर कविता लिखने के लिए कहे, तो अच्छी बात है !
अरे भाई , हम मनुष्य हैं! मिट्टी के बने हुए!
एक क्षण का भरोसा नहीं! आज हैं, कल नहीं!
मिट्टी के मनुष्य के विषय में इधर मैं श्लोक लिखकर हटा , और उधर वह तुरंत ही मर गया- तो उसका क्या फायदा ?
इसीलिए मैं अधिकतर देवताओं,शास्त्रों के ही संबंध में कविताएं लिखना पसंद करता हूं !
प्रकृति संबंधी, मनुष्य की चेतना, भावनात्मकता, सामाजिक परिस्थितियां- इत्यादि संबंधों में कविताएं एक बहुत लंबे समय तक चलने वाली हैं!
एक बात और - तपस्वी और महात्माओं के लिए भी! मैं उनके जीवन को संस्कृत में बांधना अवश्य पसंद करता हूं!
उसका कारण है , कि उनसे प्रेरित होकर अन्य लोग भी अपने जीवन को इन महान् कार्यों के लिए समर्पित कर सकें ! तपस्या के लिए समर्पित कर सकें।
अगर मैंने कोई आज तक व्यक्तिपरक काव्य लिखा है, तो वह निश्चित ही कोई अत्यंत विशिष्ट विद्वान्, तपस्वी, महात्मा, देशभक्त, देशभक्त, या वीर रहा होगा!
धन के लोभ में मैंने आज तक कोई काव्य किसी के लिए नहीं लिखा!
और कभी ऐसा करना भी नहीं चाहता!
इसलिए जो झूठी प्रशंसा करवाने वाले लोग हैं, वे कृपया दूर ही रहें।
सब के विषय में मेरे एक से विचार नहीं! जो चीज मुझे पसंद नहीं वह मैं कभी कर नहीं सकता!
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हिमांशु गौड़
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