Skip to main content

Posts

Showing posts from May, 2021

Sanskrit Hindi classes

 आपको सूचित किया जाता है की कक्षा 8 से 12 एवं B.A. और M.A. के विद्यार्थियों के लिए भी हिंदी और संस्कृत के ट्यूशन की व्यवस्था की जाती है।  आप हमसे संपर्क कर सकते हैं।  कक्षा 8 से 12 की जितनी भी हिंदी और संस्कृत की किताबें हैं ,उनके सभी प्रश्न उत्तर सहित परीक्षा की तैयारी सहित बढ़िया कोचिंग दी जाती है । तथा बीए और एमए संस्कृत से करने वाले विद्यार्थियों के लिए भी यह एक सुनहरा अवसर है। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति संस्कृत की किसी भी परीक्षा की तैयारी करना चाहे, वह भी हमसे लाभ ले सकता है शनि रविवार को इससे भी अधिक समय दिया जा सकता है। पढ़ाने का समय- सुबह 6:00 से 8:00  एवं शाम 8 से 9 स्थान - नाकोड़ा नगर, उदयपुर। अध्यापक - डॉ हिमांशु गौड़ फोन नं- 8319739212 Online coaching also available  फोन पर संपर्क करके अपना बैच निश्चित कर सकते हैं। sanskrit Hindi classes, Sanskrit coaching, All classes Sanskrit Hindi tutor, sanskrit tutor, sanskrit coach, sanskrit Hindi 8 to 12 tution, sanskrit Hindi BA MA tution, sanskrit Hindi RPSC coaching, sanskrit TGT PGT coaching, sanskrit, sans...

यादें! यादें! यादें! कविता

 यादें! यादें! यादें! ***** क़तरा-क़तरा जलता है जो, लम्हा-लम्हा ढलता है जो, रेत सरीखा फिसल रहा जो, ये जीवन है - यादें! यादें! फूलों से जो आज खिलें हैं, हम-तुम जो ये आज मिले हैं, वक्त नहीं ठहरेगा कल तक, रह जाएंगी - यादें! यादें! एक हवा का झोंका आया, और सारी उम्रों को ले गया, पुरनम की मदमाती रातों, और रोशन सुबहों को ले गया, आज अकेले में बैठा वह, अपने मन में सोच रहा है, भीगी-पलकों पर बचतीं बस, यादें! यादें! यादें! कुहरा ये छा रहा घना है, चर-मर सूखे पत्ते करते, ओस चू रही है पेड़ों से, टपक रही हैं - यादें! यादें! जीवन एक हवा का झोंका, हर एक लम्हा रिसता सा है, और दे जाता है बस हमको  यादें! यादें! यादें! यूं तो मेले बहुत हैं देखें, बरसातों में खूब हैं भीगे,  खिलते बसंत पीली सरसों के, लेकिन तन्हा फिर भी दिल है, यादें! यादें! यादें! जहां कभी महफ़िलें सजतीं, आज वहां वीरानी छाई, जहां कभी ठहाके गूंजे वहां आज उदासी छाई, वक्त वक्त की बात है सारी रह जाती हैं - यादें! यादें! बरसों बीते, मौसम बदले, लेकिन मन तो वही खड़ा है, कालचक्र का क्या है गिनना, कौन है छोटा, कौन बड़ा है, वक्त की आंधी च...

महामहोपाध्याय श्री रेवाप्रसाद द्विवेदी के लिए श्रद्धांजलि || हिमांशु गौड़

 ||महामहोपाध्याय-श्रीरेवाप्रसादद्विवेदिभ्यश्-श्रद्धाञ्जलि:|| ********* सच्छास्त्रचिन्तरत: कवितैककर्मा विद्वत्सभाहरिकथोल्लसितैकधर्मो विद्यैव यस्य भवति स्म सदैव वर्म रेवाप्रसादविबुधस्स लभेत शर्म||१|| काव्यानि भावनिभृतानि धियाम्प्रसादै: कृत्त्वा च भावुकजनैरभिनन्दितानि सारस्वताम्बुधिनिमज्जितमानसश्री- रेवाप्रसादविबुधस्स दिवङ्गतो हा||२|| हानिर्महत्यथ जगत्युदभाव्यनेन यद्धर्मकर्मशुभमर्मवतां प्रयाणं नैतन्नभोऽद्य दिनराट् सुखदो विभाति रेवाप्रसादविबुधे हि कृतप्रयाणे||३|| शुक्लाम्बरे!ऽव पदवाक्परिशोभितांस्त्वं हंसासने!ऽव तव रूपरतान्स्वपुत्रान् वीणाधरि!त्वमथ चाद्य विहाय वीणां खड्गं गृहाण परिकृन्तय दुष्टधूर्तान्||४|| नाम श्रुतं तव गुरो, नहि भाषणानि संश्रुत्य कर्णयुगलम्परिपावितञ्च दृष्ट्वैव किन्तु वपुषं पदसंरतानां तात्पर्यविज्ञपुरुषा: तमहो विदन्ति||५|| रेवाप्रसादसुधियां क्व भवेच्च दु:खम् रेवाप्रसादशुभजन्मवतां क्व शोक: रेवातटे प्रविलसन्ति सतां विलासा: रेवाप्रसादविबुधो म्रियते न लोके||६|| हेमाक्षरैर्विरचयन्ति नवां सुगाथां तेऽप्यक्षरा: न मरणं प्रभवेद्धि तेषां देहप्रणष्टिरिति नैव बुधस्य नाश: ते त्वक्षर...

शृङ्गार रस || संस्कृत कविता || हिमांशु गौड़||

 प्रथमराग-पराग-पराजित: प्रियतमा-नवकेलिकला-जितो मुकुलतामपनीय रसम्पिबन् कुसुमताम्प्रतियापयति प्रियाम् स्मरनिमन्त्रणदाम्प्रियकामिनीं दिवस-भास-मयेऽपि सुचुम्बितां रहसि गाढसुलिङ्गितभामिनीं मदनवह्निसुवर्णवपुश्श्रियम् विकसतीन्दुनिभा श्रमहा नृणां कुमुदिनी खिलिता रजनी श्रिता हृदयताप इवाप्यनया हृतस् स्मररणाय रणन्त्यथ सागता मुहि मुहुर्निपतेद्युवचित्तदा मदनमन्थनसंरभवेपनं वृणुत, इत्यनयापि विलोकितं स्वमधुवाग्वपुषा परिवर्धितम् मधुमयो हि ऋतुस्सरसां तट: मदनिकाकुचयुग्ममहो घट: करनयैरपसारिततत्पटस् तनुत इत्रसुगन्धिमथोत्कटम् हररिपो! तव बाणनिविद्धहृत् क्व भजताद्भवभीतिहरं हरं न स विपश्यति नश्यति तद्वयो मृतिफणिर्हह दंश्यति तद्वपु:! नवतरङ्गसमुल्लसिताङ्गवान् नववधूप्रथमागमरात्रिके भयविकम्पितगात्रसुचित्-तया न सहसा परिरम्भत एव स: रतिसमारभणे किमु सुक्रिया प्रणयवेदन आदि किमु क्रिया न न हि वेत्ति युवा युवती च वै प्रकृतिभिस्सकलं सुकरं भवेत् स्मरमये जगति क्व विरागता शिवमये पुनरस्तु न रागता उभयमप्यथ जीवनपद्धतौ सुपुरुषार्थतया विनियुज्यताम् कमलकोमलदेहमयीं च य: रहसि वाप्य रमेत नदीतटे पिबति दुग्धमथो महिषीभवं क्व सुरलोकमिव...