नरवरगाथा मेरे द्वारा रचित एक संस्कृत का काव्य है इसमें पांच कांड हैं - छात्रकौतुककाण्ड, प्रकृतिकाण्ड, भूतकाण्ड, वैदुष्यकाण्ड और वर्चस्व काण्ड।
इसके छात्रकौतुककाण्ड में नरवर में रहने वाले छात्रों के कौतुकों का वर्णन किया गया है । उनकी दिनचर्या उनके अलग-अलग स्वभाव उनके शास्त्र संबंधी आचरण और निपुणता ।
छात्रों की कुछ विशेषताएं एवं अपने-अपने अलग-अलग विषयों , कलाओं में पारंगतता को इस कांड में संस्कृत श्लोकों में पिरोया गया है ।
इसी प्रकार प्रकृतिकाण्ड में नरवर नामक नगरी की प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन है ।
गंगा जी की लहरें , वहां के देवताओं के मंदिर, भगवान् शिव की उपासना एवं पशु-पक्षियों संबंधी गतिविधियां, छात्रों और पशु पक्षियों का संबंध , छात्र और गंगाजी का संबंध, छात्र और भगवान् शिव का संबंध , प्रकृति सौंदर्य और वैशिष्ट्य - इस प्रकृतिकाण्ड में दिखाएं हैं ।
अब आते हैं भूतकाण्ड पर।
भूतकाण्ड, एक ऐसा काण्ड, जो आपको भयानक भूत-प्रेतों की दुनिया में ले जाएगा ।
कुछ ऐसे भयंकर प्रेत, जो नरवर की हवाओं में स्थित हैं।
कुछ ऐसी आत्माएं जो मर कर भी अपने स्थान को नहीं छोड़तीं।
श्मशान घाट पर, गंगा जी के किनारे स्थित जंगल में , रात को घूमने वाले प्रेत और अंधकारमय-भवन के आसपास रहने वाले क्षेत्र में भूतों की गतिविधियां,
भूतों द्वारा रहने वाले लोगों के मस्तिष्क पर प्रभाव,
भूतों की स्वयं की गतिविधियां एवं उनका अनुभव कराना!
रात के अंधेरे में भूतों के साम्राज्य का वर्णन !
मनुष्य कैसे भूत बनता है - इसका वर्णन!
इस प्रकार भूतों के वर्णन से भरा हुआ, यह भूतकाण्ड है।
यद्यपि यह तो बात है ही है कि नरवर में भूतों का अपना एक अलग वर्चस्व है , लेकिन इसमें मैंने अपनी कल्पनाशीलता जोड़ते हुए इस कांड की रचना की है ।
इसी तरह यह भूतकाण्ड, सत्य और असत्य, दोनों प्रकार की घटनाओं से बना हुआ है।
वैदुष्यकाण्ड के बारे में अगर हम चर्चा करें , तो असली काण्ड तो यही है, नरवर गाथा का।
पहले समय में, भारत का कौन सा ऐसा हिस्सा था जो नरवर नगरी की विद्वत्ता को नहीं जानता था ? (आजकल भी वैसे नए छात्रों या कुछ संस्कृतज्ञों को छोड़कर , प्रायः प्रौढ विद्वान् जानते ही हैं ,नरवर नगरी के बारे में)।
काशी के विद्वान् भी आचार्य जी महाराज (श्री विजय प्रकाश शर्मा जी) के समक्ष शास्त्र सुनाने हेतु प्रस्तुत होते थे ।
श्री जीवन दत्त जी महाराज के द्वारा किया जाने वाला विद्वानों का आदर और विद्वानों का संरक्षण-संवर्धन एवं छात्रों का लालन-पालन एवं ब्राह्मणों को शास्त्र संबंधी निपुणता प्रदान करना , इस नगरी की विद्वत्ता में चार चांद लगा देता है ।
यही वह नगरी है, जहां पूरे भारतवर्ष को -
"धर्म की जय हो , अधर्म का नाश हो , प्राणियों में सद्भावना हो , विश्व का कल्याण हो"
यह नारा देने वाले स्वामी धर्म सम्राट करपात्री जी महाराज ने भी अध्ययन किया है !
यही वह स्थली है जहां पर विष्णु आश्रम जी महाराज, जोकि भारतवर्ष के गिने-चुने उच्च स्तरीय संत-विद्वानों में एक हैं , यही रहे ।
इस प्रकार आज भी , श्री बाबा गुरु जी , श्री ज्ञानेंद्र पाठक गुरु जी, आचार्य श्री दिवाकर गुरुजी -
- जैसे विद्वान् आज भी इस नगरी की शोभा बढ़ा रहे हैं और ज्ञान का प्रसार कर रहे हैं ।
पुराने विद्वानों में तो प्रभा थी ही अपनी विशिष्ट , लेकिन आज भी उसका रुतबा कम नहीं है । इसलिए नरवर की विद्वत्ता और वैशिष्ट्य का वर्णन करने वाला यह काव्य वैदुष्यष्यकाण्ड है ।
अब आते हैं आखिरी और पांचवें वर्चस्व कांड पर ।
वर्चस्व कांड में वहां के छात्रों और म्लेच्छोंं के बीच होने वाला कभी-कभी संघर्ष ।
कभी-कभी छात्रों के स्वाभिमानपरक युद्ध का वर्णन, कभी शास्त्रों की अग्नि से दुष्ट-पक्षवान् व्यक्ति को जलाने का वर्णन, एवं यहां के रहने वाले विद्वानों का किस दृष्टि से वर्चस्व है - इसी बात का इस काण्ड में वर्णन है !
अभी मैंने इसे बनाना ,इस कांड को लिखना , थोड़ा सा ही शुरू किया है। थोड़ा सा ही लिखा है ।
लेकिन छात्रकौतुककाण्ड में और प्रकृति कांड एवं भूत कांड में बहुत से श्लोक हो चुके हैं ।
यद्यपि इस नरवरगाथा की शुरुआत मैंने सन् 2014 में ही कर दी थी , लेकिन बीच-बीच में अन्य कार्यों में लग जाने के कारण एवं अन्य काव्यों को लिखने के कारण इसका चिंतन छूट गया ।
अब दोबारा इसके चिंतन को करने का उपक्रम होगा और जल्द ही यह पुस्तक आप लोगों के सामने होगी।
इस प्रकार यह नरवरगाथा समाप्ति को प्राप्त करेगी।
मेरा यह मानना है , कि आप सब लोग इस नरवरगाथा को अवश्य पढ़ें । मैं इसे हिंदी अनुवाद सहित छपवाऊंगा, ताकि जो संस्कृत न जानने वाले लोग हैं , वे भी इसे पढ़ सकें। संस्कृतज्ञों के लिए तो विशेष रूप से है ही ।
व्याख्यान को अधिक ना खींचते हुए -
हर हर महादेव।
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डॉ हिमांशु गौड़
१०:२७ रात्रि,१८/०६/२०२०