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Showing posts from June, 2020

संस्कृत कविता - वर्षन्ति मेघा: - डॉ हिमांशु गौड़

वर्षन्ति मेघाश्च गृहाद्बहिर्मे भावाम्बुदाश्चित्ततले तथैव रात्रौ तृतीते प्रहरेऽधुनाहं जागर्मि विद्वन्निति जीवनम्मे।।१।। शीतानिलो मां स्पृशति क्वचिच्च गताद्य विद्युत् तमसां च राज्ये पुरे न जागर्ति जनोऽन्य एवं यथाहमत्रारचयामि चिन्त्यम्।।२।। मेघध्वनिश्चाम्बुनिपातशब्दो विशत्यहो कर्णयुगे सुखङ्कृत् मृद्गन्धिराप्नोत्यपि नासिकां मे मध्ये क्वचिच्छ्वेततडित्सशब्दा।।३।। कीटश्च कश्चित् सततं विरौति गेहे पुरस्थे मशका न सन्ति न वायुनाढ्यं गृहमेतदस्ति लङ्कादिशामुख्यकपाटवत्वात्।।४।। वृष्टिस्सुतीव्राप्यधुना पतेच्च पार्श्वस्थकक्षे जनकोऽपि शेते स वा कदाचिद्यदि जागृतस्स्यात् शेतुं वदेन्मामिति मेऽस्ति शङ्का।।५।। हे काव्यराजो झटिति ब्रुवन्तु हे शब्दराजो मन उद्दिशन्तु केयं गतिर्मां नयतीव यात्र वृष्ट्यम्बुरावश्रवणैकलोके।।६।। कोऽहं हिमांशुर्न न वेद्मि किञ्चित् किं वा शिवांशुर्वचसा गृणानि? अहोऽनुभूयैव सदात्मलोकं ह्यस्मादृशा: सूक्ष्मतया वहन्ति।।७।। उत्थाय मध्याह्नभवे च सूर्ये पित्रिष्टलोकस्य चरामि चर्यां अरे मदीयं हृदयस्थतत्त्वं कोऽस्मीति यानि क्व च संवदेर्माम्।।८।। भ्रा...

श्री राघवाचार्य जी महाराज का संस्कृत श्लोकात्मक अभिनंदन : डॉ हिमांशु गौड़

।।श्रीमद्राघवाचार्याभिनन्दनम्।। ****** धर्मनिष्ठं वरिष्ठं सुशिष्टं मुनिं क्लिष्टचर्यं शुभेष्टं विशिष्टं पुनः चेष्टनाभ्यैषणाकृष्टकृष्णं द्विजं राघवाचार्यमित्याह्वयं भावये।।१।। धर्मकर्माब्धिरत्नप्रदं शोकहे राममार्गे जनांश्चोदयन्तञ्च तं गोखुरीं हो शिखां धारयन्तम्मुदा राघवानन्दमग्नं हृदा चिन्तये।।२।। लौकिकभ्रान्तिविध्वान्तविध्वंसकं वैदिकार्थप्रभावैकवाक्संयुतं दैवलीलागुणग्रन्थसत्पाठकं राघवचार्यवर्यन्नुमश्शास्त्रिणम्।।३।। रामपुर्यां वसन्तं वसन्तश्रियं रामगुण्यानुवादैकगाथाप्रियं शास्त्रतथ्यप्रकाशं सदा सद्धियं राघवाचार्यपादारविन्दं भजे।।४।। भावये राघवाख्यं सताम्मोदिनम् अर्चये साधुवृन्दाकुलं बोधिनम् कामये सङ्गतिं तस्य वाङ्मोदिन: पालये राघवीभक्तिबीजं निजे।।५।। गौड इत्याह्वयोहं हिमांशुश्च यश्- श्रीलबाबागुरोराश्रमेऽधीतवान् अद्य संश्रुत्य वाणीं भवत्सन्मुखात् भावपद्यप्रसादो मयीहोदयत् ।।६।। ****** डॉ.हिमांशुगौड: १०:४१ रात्रौ,०५/०६/२०२०, शुक्रवासरे, गाजियाबादस्थगृहे।

चंद्रमा : कविता हिन्दी/संस्कृत : डॉ हिमांशु गौड़

चन्द्रमा **** जो है देता सुकूं चांदनी खूबसूरत प्रभांशु के जैसा सुलगता नहीं है, है शीतल सदा शीतरश्मि-प्रदाता , हिम-विखण्डों के जैसा पिघलता नहीं है है हिमांशु वही जो बदलता नहीं है।। वही है गुरु गौरवाढ्य प्रधी है शिवांशु सुधांशु वही तो सुधी है विमुग्धाएं , नक्षत्रिणी उसपे सारी स्मरान्धाओं का एक वो कामधी है।। दिनों के उजाले तो कर्मण्यता को सिखाते , दिखाते हमें रास्तें हैं मगर कल्पनाओं की रंगीन-जन्नत- निशा-कौमुदी* ही मेरे वास्ते है।। *शब़-ए-चांदनी कहीं दूर जब-जब ये चंदा निकलता हसीं ख्वाब सी दिलकशी को सजाए तमन्नाओं के तब-तब गुलिस्तां महकते है कैसी महक , रूप कैसा है तेरा अरे चंद्रमा! मोह फैला है तेरा ये संसार तो यूं ही चलता रहा है मगर तू युगों से चमकता रहा है। ह हिल्लोलसक्तासु नव्यां रतिं त्वं तनोषीश ! रम्ये तडागस्य तीरे रतेषूच्चकाट्टालिकाषु प्रभूणां रतिश्रान्तिहन्! रागीनीश! प्रणौमि।। क्वचिच्चोच्चकुच्यो भवन्तं विलोक्य स्मरन्त्यस्स्मरासक्तचित्तास्स्वकान्तान् कपाटाग्रवक्षोदृढाश्लेषदक्षान् स्ववक्षोग्रजातान्मुहुर्मर्दयन्ति।।

महाकवि कालिदास के बारे में दो शब्द : डॉ हिमांशु गौड़

कालिदास संस्कृत और संस्कृति के महान् पोषक और प्रचारक, कवियों में अग्रगण्य हैं। उनकी रचनाओं में कौनसा शास्त्र परिलक्षित नहीं है?  कितनी सरसता और सरलता से वे उन तत्वों को, बातों को समझा देते हैं, जो वेदान्त  के कठिन व्याख्यानों से भी कदाचित् सामान्य मनुष्य की समझ में नहीं आती। इस संदर्भ में मुझे उनके कुछ श्लोक याद आ रहे हैं, जैसे , मनुष्य की वास्तव में सहजता क्या है , और असहज (विकृत) स्थिति क्या है ? इसके विषय में देखिए - "मरणं प्रकृतिर्हि शरीरिणां, विकृतिर्जीवनमुच्यते बुधै:।" मुनिस्वभावविषयकोपमा - "शैत्यं हि यत्सा प्रकृतिर्जलस्य" मतलब यहां प्रसंग है कि यद्यपि मुनिवर ने क्रोध की अग्नि के वशीभूत होकर के शाप दे दिया,  लेकिन वह कुछ देर बाद ही जल के समान शीतल हो गए!  क्यों ? क्योंकि जिस प्रकार , अग्नि के संयोग से जल में गर्मी तो हो जाती है, किंतु थोड़ी देर बाद वह अपने स्वाभाविक रूप में आ जाता है ,और ठंडा हो जाता है , इसी प्रकार ऋषि-मुनियों का स्वभाविक स्वरूप तो शीतलता ही है , मतलब कितनी अच्छी उपमा दी है ! जल से ऋषिवर की उपमा। और यहां वैयाकरण लोग शब्...

मलूक पीठाधीश्वर श्री राजेन्द्र दास जी महाराज का अभिनन्दन : संस्कृत श्लोकात्मक (हिन्दी सहित) : डॉ हिमांशु गौड़

|||  श्रीमन्मलूकपीठाधिपाभिनन्दनम् |||        *********           [[[ मलूकपीठाधीश्वर श्रीराजेन्द्रदासजीमहाराज का अभिनन्दन  ]]]   ************ सद्भावामृतसिक्तचित्तमतिमत्सौहार्दपूर्णङ्गुरुं कारुण्याब्धिनिमज्जितैकहृदयं सारल्यसञ्जीवनं नानाशास्त्रविदीप्तियुक्तवपुषा चादर्शसन्दर्शिनम् श्रीमत्कृष्णपदारविन्दरसिकं वन्दे मलूकाधिपम्।।१।। सद्भाव रूपी अमृत से सींचे हुए चित्त वाले , अत्यंत बुद्धिमान् , सौहार्द से पूर्ण जो गुरु हैं , करुणा रूपी समुद्र में डूबा हुआ है ह्रदय जिनका , ऐसे सरलता पूर्ण जीवन वाले, अनेक शास्त्रों के प्रकाश से चमक रहा है स्वरूप जिनका ऐसे , आदर्श को दिखाने वाले,  भगवान कृष्ण के  चरणकमलों के रसिक, मलूक पीठाधीश्वर जी को मैं प्रणाम करता हूं।।१।। वृन्दारण्यसुवासवासितमनश्श्रीराधिकाराधकं श्रीमद्दिव्यनिवासलोकहृदयप्रीतीष्टशिष्टम्मुनिं गोविन्दार्चनवन्दनाभिनिरतप्रेमाब्धिमग्नञ्यतिं विद्यालासविलासमोदमतिकेष्टार्थाच्युतम्भावये।।२।। वृंदावन की महक से सुगंधित है मन जिनका ऐसे श्री राधा की आराधना करने वाले ,...

हिमांशु गौड़ के संस्कृत काव्य यहां से पढ़ें

रसिक जनों हेतु ये संस्कृत काव्य-ग्रन्थ उपलब्ध हैं- १- भावश्री: (संस्कृत) https://acharyahimanshugaur.blogspot.com/2021/08/blog-post_78.html Archive - https://archive.org/details/Bhavshri २- वन्द्यश्री: (संस्कृत) https://acharyahimanshugaur.blogspot.com/2021/08/blog-post_95.html Archive https://archive.org/details/vandyashri ३- काव्यश्री: (संस्कृत) https://acharyahimanshugaur.blogspot.com/2021/08/blog-post_49.html Archive https://archive.org/details/kavyashri ४- श्रीगणेशशतकम् (संस्कृत, हिन्दी) https://acharyahimanshugaur.blogspot.com/2021/08/blog-post_28.html ५- सूर्यशतकम् (संस्कृत-हिन्दी) https://acharyahimanshugaur.blogspot.com/2023/04/blog-post_36.html ६- पितृशतकम् (संस्कृत, हिन्दी) https://acharyahimanshugaur.blogspot.com/2021/09/b.html ७- श्रीबाबागुरुशतकम् (संस्कृत, हिन्दी) https://acharyahimanshugaur.blogspot.com/2021/09/blog-post.html Archive https://archive.org/details/shri-babaguru-shatkam-1-1 ८- कल्पनाकारशतकम् (संस्कृत) https://acharyahimanshugaur.blogspot.com/2021/08/blog-pos...

संस्कृत काव्य नरवरगाथा का सामान्य परिचय : डॉ हिमांशु गौड़

नरवरगाथा मेरे द्वारा रचित एक संस्कृत का काव्य है इसमें पांच कांड हैं - छात्रकौतुककाण्ड,  प्रकृतिकाण्ड, भूतकाण्ड, वैदुष्यकाण्ड और वर्चस्व काण्ड। इसके छात्रकौतुककाण्ड में नरवर में रहने वाले छात्रों के कौतुकों का वर्णन किया गया है । उनकी दिनचर्या उनके अलग-अलग स्वभाव उनके शास्त्र संबंधी आचरण और निपुणता । छात्रों की कुछ विशेषताएं एवं अपने-अपने अलग-अलग विषयों , कलाओं में पारंगतता को इस कांड में संस्कृत श्लोकों में पिरोया गया है । इसी प्रकार प्रकृतिकाण्ड में नरवर नामक नगरी की प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन है ।  गंगा जी की लहरें , वहां के देवताओं के मंदिर, भगवान् शिव की उपासना एवं पशु-पक्षियों संबंधी गतिविधियां, छात्रों और पशु पक्षियों का संबंध , छात्र और गंगाजी का संबंध, छात्र और भगवान् शिव का संबंध , प्रकृति सौंदर्य और वैशिष्ट्य - इस प्रकृतिकाण्ड में दिखाएं हैं । अब आते हैं भूतकाण्ड पर।  भूतकाण्ड, एक ऐसा काण्ड, जो आपको भयानक भूत-प्रेतों की दुनिया में ले जाएगा । कुछ ऐसे भयंकर प्रेत, जो नरवर की हवाओं में स्थित हैं।  कुछ ऐसी आत्माएं जो मर क...

संस्कृत व्याकरण महाभाष्य पस्पशाह्निक : हिमांशु गौड़

नरवर से जब घर आता था : कविता: डॉ हिमांशु गौड़

नरवर से जब घर आता था ****** कुछ प्रसाद चिनौरी लेकर, गंगा जी की मिट्टी लेकर दस रूपए की कट्टी लेकर, जल उसमें भी भर लाता था नरवर से जब घर आता था।।१।। भाष्य, कौमुदी, अष्टाध्यायी, रघुवंश, रुद्राष्टाध्यायी, शिवराजविजय , प्रतापविजय, इन सब को बक्से में रखकर बस छुट्टी को मन में रखकर इक उमंग को भर लाता था जब नरवर से घर आता था।।२।। कुर्ता और पाजामा पहने एक हाथ में लिए अटैची मोटी चुटिया सिर पर धारे बिल्कुल ना मैं शर्माता था नरवर से जब घर जाता था ।।३।। निमंत्रणों में मिली दक्षिणा तांबे की लुटिया और कंबल मन-तुष्टि के होते संबल बालकपन की उपलब्धि को थैले में ही धर लाता था नरवर से जब घर आता था ।।४।। भंडारों की कथा सुनाकर वेद-मंत्र को सुना-सुनाकर घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर सब जन को हर्षाता था नरवर से जब घर आता था।।५।। मन में नवरस हर्ष घोलकर जाड़े की तो धता बोलकर हर-हर गंगे बोल-बोलकर गङ्गा में रोज नहाता था जब नरवरवासि कहाता था।।६।। अंगोछे से सिर को ढांपे तपते रस्ते मैंने नापे बढ़ते पैर कभी ना कांपे सांझ ढले पहुंचा निज द्वारे चाय कड़क तब बनवाता था नरवर से जब घ...

भारतीय संस्कृति के विषय में श्लोक : डॉ हिमांशु गौड़

।।अस्मत्संस्कृति:।। *** धृताऽस्मत्पूर्वजैस्सभ्यै: पालिता पोषिता बुधै:। देवत्वं जनयेल्लोके भारती संस्कृतिस्सदा।।१।। सुसंस्कारान्वितो भूत्वा शोभते मोदते यया। संस्कृतिर्भारतीया सा धारणीया सदा समै:।।२।। सद्वृत्तं दिव्यभूतीनां दुर्वृत्तं च दुरात्मनाम्। ज्ञायते तायते सौख्यं यया सा संस्कृतिर्हि मे।।३।। गुरूणां चापि सम्मानं लघूभ्यस्स्नेहसिञ्चनम्। शिष्टाचारस्समैस्साकं बोधयेत्संस्कृतिस्सदा।।४।। प्राणं चापि त्यजेत्प्राज्ञो धर्मं नैव च कर्हिचित् । धर्मसर्वस्वरूपा सा संस्कृतिर्भारती मम।।५।। दीक्षा दानं तपस्तीर्थं ज्ञानं क्रत्वादय: क्रिया:। प्रणप्राणपणाग्रत्वं सर्वं संस्कृत्यधिष्ठितम्।।६।। वेदशास्त्रपुराणानि स्मृत्यारण्यकसङ्ग्रह:। उपनिषद्भिस्समालक्ष्या भारतीया सुसंस्कृति:।।७।। यद्यच्चर्यं सदाचर्यं ब्रह्मचर्यं शुभं तप:। तत्तत्सर्वं महत्तत्त्वं संस्कृतिश्रीसुशोभितम्।।८।। सन्मानुषत्वशिक्षा वा लोकालोकफलं तथा। यच्छत्याचरणादेव भारती संस्कृतिस्सदा।।९।। संस्कृत्यर्थास्समे चार्था: किं वदानीह चाधिकम्। म्लेच्छधर्मविहेयत्वं संस्कृतावेव संश्रितम्।।१०।। गोब्राह्मणसुरक्षा च राक्...

हिंदी शायरी : डॉ हिमांशु गौड़

आंसुओ को मत दिखाना ये जरूरी है बहुत जबरदस्ती मुस्कुराना ये जरूरी है बहुत खुदकुशी से तुम खुशी से मरो लेकिन आजकल ना हाले दिल अपना सुनाना ये जरूरी है बहुत।। ख़ुद की अन्तर्वेदना से , सब यहां संतप्त हैं जी रहे हैं सब मगर , मानो हुए अभिशप्त हैं पास होते हुए भी , कैसी ये दूरी हो गई बोलना दुश्वार है,चुप्पी जरूरी हो गई आज हम इक दूसरे से यूं अलग है दोस्तों असलियत अपनत्व से कुछ दूर यूं हैं दोस्तों जैसे हों परवाज़ वाले परिंदों को कैदघर डरे हम आपस में ही इक दूसरे से इस क़दर मौत से इस खौफ में जीते सभी हैं जा रहे ज़हर ग़म-बेचैेनियों का रोज़ पीते जा रहे ये अकेलापन हमें जानें कहां ले जाएगा दौर ये इंसानियत को एक दिन मरवाएगा हंसते चेहरों की हकीकत क्या है, हम हैं जानते झूठे रुतबों की फजीहत हम सदा पहचानते आदमी अब आदमी से डर रहा है मर रहा जाने खुद ही ना कभी , क्या कर रहा, क्यों कर रहा आओ इस माहौल को बदलें , कहीं ना देर हो रोशनी रुक जाए ना , देखो ना अब अन्धेर हो हम ही भर सकते अभी भी बढ़ती जो ये खाइयां घेर ना लें बढ़ रही जो गमज़दा तन्हाइयां। नकलियत ढोते हुए ये हम कहां हैं आ ...

दैनिक अखबार तेजस् में संस्कृत कवि डॉ हिमांशु गौड़ का लेख

गाजियाबाद से प्रकाशित होने वाले अखबार तेजस में 08 जून 2020 दिनांक को संस्कृत कवि डॉ.हिमांशु गौड़ का लेख प्रकाशित किया गया यह लेख "प्रदोषकाल में  शिव का पूजन का महत्व" इस विषय में था। इसी प्रकार 7 जून 2020 को भी डॉ हिमांशु गौड़ का दुर्गासप्तशती के संबंध में एक ज्ञानपूर्ण लेख गाजियाबाद से प्रकाशित होने वाले तेजस् नामक समाचार पत्र के 'आध्यात्मिक' नामक पृष्ठ पर छपा था।

।। दुष्टवञ्चकैर्हता हस्तिनी ।। संस्कृत श्लोक।। हिमांशु गौड़

***** का भावना मम भवेन्न विनिश्चिनोमि दु:खप्रकाशवचसा न गतीस्तनोमि किं मानवत्त्वमिति नापि धियाऽद्य मन्वे ताङ्गर्भिणीञ्च गजिनीन्निहतां विलोक्य।।१।। विश्वस्तचित्तगजिनी क्षुधयार्त्तचित्ता गर्भस्थशैशवविचिन्तितमानसा या साऽरण्यखाद्यमविलभ्य पुरं समेता सारल्ययुग्गजवरी मरणं प्रयाता ।।३।। विस्फोटकान्तरभवं फलमेतदर्थं दुष्टा ददत्यथ, गजी न विलोक्यमाना शुण्डे निधाय स्वमुखे स्वदनं यतेत अस्फोटदाननमतो महती च पीडा।।४।। नूनङ्क्षुधा न परिपश्यति किं ह्यनर्थं ये पाशवा न विविदन्ति च कूटनीतिं किन्त्वद्य मानव इतीह पदाख्यजाति: पापाब्धिमग्नहृदयेव विभाति मह्यम्।।५।। या चेह हस्तिपदकास्ति विलुप्तजातिस्- तल्लोपकारण इवाग्रसरो मनुष्य: वृक्षान्नदीरथ पशूंश्च विनश्य हैते कामुन्नतिं प्रतिवजन्ति न कोऽपि वेत्ति।।६।। विज्ञान-नाम-नरका: स्युरिवोन्नता: किम्? मांसादना असुहरा प्रतियात पुष्टिम्? पश्वैकनिर्दयमना इह मानवाख्यश्? चेन्, नास्म्यहं नरगणे , पशुरेव वर्य:।।७।। स्वस्याङ्गुलिर्यदि भवेत्त्रुटितोऽपि भिन्ना चीत्कारपूर्वकमसौ परिरोदितीव यश्चाजकुक्कुटगलञ्च निकृन्तयन्सञ् जिह्वासुर: क्षणमसौ न दया...