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Showing posts from February, 2020

व्याकरण शास्त्र की उपादेयता : आचार्य हिमांशु गौड़

संस्कृत भाषा एक देववाणी है इसका स्वरूप यथार्थ रूप से जानने के लिए इसका साहित्य वेद शास्त्र आदि को विशेष रूप रूप से जानने के लिए सबसे पहले हमें संस्कृत भाषा के व्याकरण को जानना ज़रूरी है। इसी संदर्भ में यह वीडियो है। व्याकरण शास्त्र का महत्व : आचार्य हिमांशु गौड़

संस्कृत कविता- नरवरे हरहरस्सर्वदा श्रूयते। डॉ. हिमांशु गौड़

संस्कृत कविता - नरवरे हरहरस्सर्वदा श्रूयते - हिमांशु गौड़

BhaavShri : A Sanskrit poetry book by Himanshu Gaur

  Bhavashree is a book in which the poet has written letters to Guru people, poets scholars and some friends in Sanskrit verses. Here, the letter is not just m eant to write your own movements or to ask others, but also the specific thinking emanating from time to time in the heart of the poet, of the specific sentiments, of social consciousness, of nature, of contemporaries, The current irony is described by the poet very well here. While the verses of Sanskrit shlokas are on the one hand, it is very skillful to describe and illustrate many expressions very efficiently. Among the poems in the form of verses in the letters located in this Bhavashree Granth, you will find abundant literature and classical elements and in many places, the poet's thinking will also be visible to you on subjects like astrology, tantra, grammar, Purana, devotion etc. In the office, you will see how the thinking power of the poet wanders in a tree, he has manifested himself in th...

mesmerism magic

Sabar Vashikaran Mantra (Kamakhya Bhairav ​​Umananda). The whole world knows about the magic of Bengal. Not only does it know, but it also tries and achieves many goals through its use, but there are very few people who know the magic of real Bengal and show how to prove it. One such sadhana experiment is being given on our Facebook today, which is called an infallible practice of captivating. Bengal has been a leader in the spiritual field since the beginning. Bengal is the land of Ramakrishna Paramahamsa and his disciple Vivekananda. In the field of spirituality, Bengal is divided into two ideologies. Big yogis such as Krishnanand Agambashish have become venerated in the world by doing this austerity, big aphorists. People living in small villages of Bengal region have a good knowledge of herbs, they must have Mauna Muni, in which Mauna is black and Muni is red. If the woman is to be subdued, then the sage is given to eat and if the man is to be subdued, it is given to ...

।। श्रीरघुनाथाश्रम-कार्यक्रम:।।

✍✍✍✍✍ जयति ह रघुनाथस्याश्रम: छात्रवर्गै: हरिचरितसुधाभिस्सिञ्चितस्सर्ववन्द्य: बहुविधशुभशास्त्रैरर्चनादेवकार्यै: यमनियमजपैश्श्रीकर्षिमुद्वर्षिभात:।।१।। जिल्लाध्यक्षमहोदयस्य नितरां कुर्मो वयं स्वागतं आगत्य द्विजमण्डले शुभमये श्रीसंस्कृतस्यालये येनास्मत्सुखवर्धनं कृतमहो धन्या वयं चाऽधुना अन्यांश्चाप्यतिथीन् नुमस्सुरगिरामुद्घोषकार्यालये।।२।। चन्दौसीनगरस्य संस्कृतगृहं विद्यार्थिभिस्सङ्कुलम् छात्रावासविकासहासनिरतं चाऽध्यापकैर्भूषितं साहित्यादिकनैकशास्त्रलसितं कार्येषु सन्तत्परम् श्रीविश्वासकुमारनामकगुरो: प्राचार्यताशोभितम्।।३।। यत्राऽऽस्ते रघुनाथमन्दिरमहो चित्तादिसन्तोषकम् प्रातर्वा भ्रमणाय नागरजनैश्चात्रैव संश्रीयते पाठप्रेक्षपरीक्षवीक्षणविधौ सर्वोऽत्र दक्षायते श्रीविश्वासकुमारनामकबुध: प्राचार्यभागस्य वै ।।४।। शास्त्र्याचार्यपदे प्रयान्ति पुरुषा: यस्मादधीत्य द्रुतं वेदज्ञानविभूषितो भवति वै यत्र द्विजानां गण: श्रीविश्वासकुमारनामकबुधस्यादेशनैश्चाल्यते चन्दौसीरघुनाथसंस्कृतमहाविद्यालयो भ्राजते।।५।। आनन्दब्रह्मचारी प्रथितगुणवपुश्शोभते नैकवर्षै: नानाचार्य...

महाकवि माघ

माघ माऽघवतो घूकान् क्षमस्व कवितामुखान्। माघौघवीक्षका: माऽघं यात माघेऽघघातिनि।। हे माघ! एतान् अघवतो  घूकान् (उलूकानिव कवीन्) (प्रशंसार्थे - अन्धकारेऽपि दर्शनत्वात् , अन्धकारमयेऽपि लोके स्वकाव्यकृतप्रकाशप्रदातृत्वात् कवीनां घूकत्त्वम्,) (निन्दार्थे - घूकवद् रात्रिचरत्वात् रात्रिरत्र पापपर्याया , (कवयोऽपि प्रायोऽधुना यशोधनादिकामा निन्द्यकर्मरक्ता: भवन्ति, तदेव पापकर्म नरकान्धत्त्वदायित्त्वेन रात्रिरूपोदाहृतिरत्र, अतो घूकत्त्वं कवीनाम्) (गर्हार्थस्वीकृत्यैवार्थसिद्धिरत्र) कवितामुखान्  मा क्षमस्व (विध्यर्थिलोट्)। द्वितीयपक्षे - एतान् माघवतो (माघकाव्यसंरक्तान् , अथवा माघ-मास-कृत-स्नान-दानान्) घूकान् (प्रशंसापक्षे) क्षमस्व (एतेषां पापानि क्षमस्व) । किन्तु ये अघघातिनि माघमासे माघकाव्यस्य औघवीक्षका: (तत्र काव्यौघे कृष्णचरितपठनजातपुण्यशालिन:) ते अघं मा यात (विध्यर्थिलोट्) न यान्तीत्यर्थ:। © हिमांशु गौड़ १२/१२ रात्रौ,११/०२/२०२०

।। श्री पचौरी गुरुजी के लिए श्रद्धाञ्जलि।।

हे देवदूत! हे पटवर्धन! ज्योतिषाचार्य! हे सुखवर्धन! शास्त्रों के शुभ व्याख्याता हे! हे हरिचरित्र-प्रीतिवर्धन!१! रामायण-पण्डित! वेददक्ष! साहित्यतत्त्वभाषणविदक्ष! बाबागुरु-आश्रमवास-कक्ष! नतमस्तक हम तुम्हरे समक्ष !!२!! गङ्गाजल-तुलसी-प्रीतिमान्! हे गीता-गौरव! गुरु! महान्! हे हास्य-विनोदकर:! सुजान! हम गाते तव यश विमल गान।।३।। नरवरनिवास! नरवरसुहास! फैलाते तुम भाग्य-प्रकाश! जन-गण-मन-नायक!भावभाष! प्रतिभाप्रोज्ज्वल!शुभ सद्विकास !!४!! हे शास्त्र-सुप्रत्यय-विनय! हे विबुध-नय! हे अनामय! बटुवृन्दवन्दित! शान्तिमय! हरिधामगामिन्! विष्णुमय !!५!! हम आपके दिवगमन पर कर रहे श्रद्धाशब्दपर- वाणी से जय-जयकार ते, गोलोकसुख! हे तत्त्वपर !!६!! ***** हिमांशु गौड़ ११/५८ रात्रि,०९/०२/२०२० गाजियाबाद। https://www.dbwstore.com/product-category/all-products/

साकार और निराकार ब्रह्म - हिमांशु गौड़

वैसे तो शब्द का अनादित्त्व स्वयं सिद्ध है ! शब्द स्वयं ही ब्रह्म है , किंतु फिर वही उसी शब्द ब्रह्म के साकार तेजस्वी स्वरूप की प्रभा हमें देवताओं के स्वरूपों में दिखाई देती है!  ये देवता ही हैं , ये भगवान ब्रह्मा विष्णु महेश दुर्गा सूर्य आदि ही हैं ,  जो उसी परब्रह्म के अत्यंत तेजो स्वरूप साकार ब्रह्म हैं, जो इस संसार को चलाने के लिए मानों धर्म ने ही साकार स्वरूप धारण किया है,  क्योंकि निराकार तो ना चल फिर सकता है, ना बोल सकता है, ना बैठ सकता है ।  उस पर वाणी नहीं पहुंच सकती । इसलिए ब्रह्म की साकार कल्पना ही वस्तुतः इस संसार के मनुष्यों के लिए उनके लौकिक और अलौकिक मार्ग का निश्चय करती है।  जो लोग कहते हैं कि हम तो सिर्फ पर ब्रह्म की उपासना करते हैं , ये देवता आदि मिथ्या हैं ,वे लोग बहुत गहरे अंधेरे में डूबे हुए हैं । उन्हें यह नहीं पता की परब्रह्म, साकार स्वरूप ही यह देवता ब्रह्मा, विष्णु , महेश , इंद्र , अग्नि , वरुणादि हैं ,और पौराणिक पूजा पद्धतियों में इनकी ही उपासना का विवेचन है । इन साकार ब्रह्म की उपासना के द्वारा ही मनुष्य उस निराकार ...

श्री पचौरी गुरुजी के लिए श्रद्धांजलि - हिमांशु गौड़

एक ऐसे व्यक्ति जो किसी भी फोन नंबर को अपने मोबाइल में सेव नहीं करते थे बल्कि उनके मस्तिष्क में सेव हो जाता था ! इस तरह सैकड़ों फोन नंबर उनके कंठस्थ ही रहते थे। जिनके सैकड़ों नगरवासियों के पूरे खानदान की जन्मकुंडलियां कंठस्थ थीं, चाहे उनसे 20 साल बाद कोई पूछे कि हमारे पुत्र की कुंडली में शनि कौन सी राशि पर है तो 20 साल पहले की कुंडली देखी हुई, वह बता देंगे कि उस राशि पर है । जब वह कक्षा 5 में थे, तभी उनके 100 तक पहाड़े एवं पूरी गीता कंठस्थ थी । जब मैंने 2006 में उन्हें देखा उस समय उनकी आयु लगभग 80 वर्ष थी, और साहित्य शास्त्र हो, व्याकरण हो, वेदांत हो, या हिंदी भाषा का व्याकरण इतिहास साहित्य हो सभी कुछ बड़े ही दिव्य और विचित्र ढंग से यह गुरुजी व्याख्यान करते थे। एवं गीता के अनेक विधाओं में विशेषज्ञता रखने वाले, अंग्रेजी और संस्कृत मेंं इतनी तीव्र प्रवाहरूपता इनकी थी, कि मनुष्य को आश्चर्य हो जाए। जिनकी दिव्य प्रतिभा और सर्वव्यापी वैदुष्य देखकर लोगों ने जिन्हें "देवदूत" की उपाधि दे डाली! सदैव ये शास्त्रों का आचार करते रहे ! हमेशा भोजन में तुलसी डा...

पूजा के समय सिर्फ वैदिक,शास्त्रीय एवं पौराणिक मंत्रों का ही प्रयोग होना चाहिए ना कि स्वयं की बनाई हुई स्तुति का :आचार्य हिमांशु गौड़

।।नमो देव्यै।। दुर्गा-सप्तशती का प्रत्येक श्लोक, अपने आप में एक सिद्ध मंत्र है। देवी का कवच हो या फिर अर्गला स्तोत्र या फिर कीलक स्तोत्र या सभी अध्याय ! इसके प्रत्येक अक्षर में , प्रत्येक शब्द में,  प्रत्येक वाक्य में , प्रत्येक श्लोक में, असीमित शक्ति का भंडार है ! बल्कि यह कहा जाए कि यह दुर्गा-सप्तशती साक्षात् भगवती की शब्दमयी-विग्रह है , तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस संसार में लोगों ने दुर्गा-सप्तशती का इतना पाठ किया है , कि समस्त ब्रह्मांड में इसकी महान् ऊर्जा फैली हुई है - "रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि" आज के संस्कृत कवि कितने ही अच्छे संस्कृत श्लोक क्यों न बना लें , लेकिन उनके हजारों श्लोक मिलकर भी दुर्गा-सप्तशती के मंत्रों की तुलना नहीं कर सकते ! पौराणिक जो श्लोक हैं, वे भी मंत्र ही हैं। वस्तुतः ऋषियों ने जो मंत्र लिखे हैं , वे हजारों वर्षों की तपस्या एवं इस ब्रह्माण्ड में गूंजते हुए परब्रह्म को अनुभव करके लिखे हैं। आज के भोगवादी मानव चाहे संस्कृत पढ़ कर, कितने भी अच्छे श्लोक क्यों न बना लें , लेकिन उन भगवत् अनुभूति संपन्न ऋषियों के मं...

।।ब्रह्मलीन स्वामी श्री आनंद आश्रम जी महाराज के लिए श्रद्धांजलि।।(हिन्दी सहित)

।।ब्रह्मलीन स्वामी श्री आनंद आश्रम जी महाराज के लिए श्रद्धांजलि।। ...............(हिन्दी सहित)........... ✍✍✍✍✍✍ ।।श्रीआनन्दाश्रमजीमहाराजाय श्रद्धाञ्जलि: ।। ****** श्रीबाबागुरुराश्रमे यतिनुतं प्रेम्णा निवासं ह्यदात् तद्वै निम्बतरोस्तलस्थभवने मन्नेत्रवर्ति ध्रुवं काषायेन सुवेष्टितं धरति यो दण्डं स्वहस्ते सदा भ्राम्येद्यश्च सनातनध्वजधरोऽद्य ब्रह्मलोकङ्गत:।।१।। जिन साधु पुरुष को श्री बाबा गुरु जी ने प्रेम पूर्वक चातुर्मास निवास अपने आश्रम में दिया था उनका वह बाबा की कुटिया स्थित कक्ष नीम के पेड़ के नीचे था, वह मेरे समक्ष था । वे साधु पुरुष एक भगवा रंग के कपड़े से लिपटा हुआ दंड धारण करते थे ! और सनातन धर्म का झंडा हाथ में लेकर, इस संसार में घूमते थे ! आज वे ब्रह्मलीन हो गए हैं।।१।। साङ्ख्याद्यध्ययने रतोऽस्मि हनुमद्धामातिरम्याश्रमे दृष्टस्तत्रहरीशजप्यनिरतश्शास्त्रिद्वितीये मया चायात: कपिमन्दिराद्यतिवरो गङ्गावगाहप्रियश्- श्रीओमादिपदप्रियावृतगुरु: "आनन्दपूर्वाश्रम:"।।२।। यह मेरे सन् 2008 (शास्त्री द्वितीय वर्ष) का यह दृश्य देखो - मैं हनुमत् धाम नामक अति ...