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Showing posts from August, 2019

कलौ विप्रा: ।। हिमांशु गौड़।। संस्कृत श्लोक।।

कलौ विप्रास्तपोहीनाश्शापं दातुं न सक्षमाः। अतो दुष्टाः प्रवर्धन्ते बिभ्यतीह न मानुषाः।। - कलियुग में ब्राह्मण तप से हीन हैं, शाप दे नहीं सकते इसलिए दुष्ट लोग बढ़ रहे है, ...

मत समझो।। हिन्दी कविता।। हिमांशु गौड।।

मत समझो स्वयं को जरा भी हीन अगर खो गई है तुम्हारी कौपीन छा रही है तुमपे आज निराशा क्योंकि नहीं मिला है तुम्हें तान्त्रिक दुर्वासा वह कभी नही गया था काशी तालिमनगर वालो ने सम...

संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान के अध्यक्ष के लिए दोहात्मक

बीमारी के कारण अवकाश स्वीकृति के सन्दर्भ में--- मौसम रोज बदल रहा, गर्मी की है मार । सर्दी-गर्मी से क्वचित्, हो जाता है बुखार ।। ऑफिस में एसी चले, बाहर लू भरमार । खाँसी नजला हो गया, ...

सिर पर मुंडासा ।। हिन्दी कविता।। हिमांशु गौड़।।

सिर पर मुँडासा, माथे पर त्रिपुण्ड लगाया है........ तुम्हारा ये अन्दाज मुझे बहुत भाया है........ सीताराम बाबा-आश्रम पर तो गये हो बहुत बार........ क्या तुमने टाटिया बाबा का भण्डारा खाया है....... ज़र...

१०८ कलशों में।। हिन्दी कविता।। हिमांशु गौड

108 कलशो में जल भरवा दो, इन सब जजमानों का मुंडन करवा दो । दिल्ली मैं नहीं मिल रही तो कोई बात नहीं, वेणीराम गौड़ जी से रुद्री मंगवा लो अग्नि के लिए माचिस नहीं अपितु अरणी मंगवा लो । ...

हितोपदेश

हितोपदेश- मनुष्य संसार में जैसे वह अजर और अमर है ऐसा सोचकर विद्या और धन का अर्जन करें लेकिन जैसे मौत ने बाल पकड़ रखे हैं ऐसा सोच कर धर्म का पालन करें ।।

तुम कैय्यट हो ।। हिमांशु गौड़

साहित्यशास्त्र के लोगों के , लिए कवे! तुम मम्मट हो वैदिक लोगों के लिए सदा निश्चय ही तुम उव्वट हो शब्द शास्त्र की सभा जहां होती हो सिंह दहाड़ों से , नागेश नहीं , ना भट्टोजी , तुम ...

ऐसा कैसे कह सकते आप।। हिन्दी कविता।। हिमांशु गौड।।

यजमानों को बहका करके यदि झूठे ग्रह बता कर के किंचित् भी ना कर के जाप हमको तो नहीं लगता है पाप ऐसा कैसे कह सकते आप।।१।। संध्या वंदन से हीन रहे रोली चंदन से हीन रहे सज्जन लोगों ...

सोच सोच कर।। हिन्दी कविता।। हिमांशु गौड़।।

सोच-सोच कर कहना पड़ता है सब कुछ, खुलकर कहना मुश्किल है, हंसना रोना मुश्किल है, सांसों की इस माला का , कोई नहीं विश्वास, फिर भी, जीना मरना मुश्किल है।।१।। ऐसे वैसे कैसे कैसे लोगों से भरी हुई है राहें भरे हुए बाजार भरे हुए चौराहे आना जाना मुश्किल है ।।२।। मिलते हैं हर कदम पर खुशियों से जलने वाले हंसना गाना मुश्किल है दिल बहलाना मुश्किल है ।।३।। अपनी-अपनी सब कहते बात सुनाना मुश्किल है । रोकर सुन लेते हैं बातें हंसकर फिर सब में फैलाते ऐसे आलम में लोगों को दर्द बताना मुश्किल है हाल सुनाना मुश्किल है।।४।। टेढ़ी दुनिया में सीधी चाल चलाना मुश्किल है झूठे लोगों में सच की दाल गलाना मुश्किल है।।५।। बालों को नुकसान आजकल शैंपू से गंजी होती दुनियां में, बाल बचाना मुश्किल है तेल लगाना मुश्किल है।।६।। ****** अपराह्णे ३:१०।। गाजियाबादे।।

ननकू : हिमांशु गौड: आख्यान

ननकू ! हां यही नाम था उस विद्यार्थी  का जिसकी उम्र इस समय 17 साल थी और वह इस समय बाबा गुरु से प्रौढ़मनोरमा का पाठ पढ़ रहा था । बाबा गुरु जी जिस तरह से उसे पढ़ाते थे वह उसी तरह से कंठस्थ कर के उन्हें सुना देता था । इस तरह से वह उस संपूर्ण विद्या नगरी का होनहार शाब्दिक था बाबागुरुजी का उससे बड़ा प्रेम था । यद्यपि वह बहुत ही चंचल था वह नए-नए कौतुक करता था लेकिन फिर भी अपनी अत्यंत तीव्र बुद्धि के कारण वह व्याकरण के आचार्य काशी में प्रख्यात और अधुना नरवर के व्याकरण  पढ़ाने वाले श्री ज्ञानेंद्र आचार्य का भी अत्यंत प्रिय होने के साथ-साथ पढ़ने वाला शिष्य था । ज्ञानेंद्र आचार्य उसके विषय में सदा यह कहते थे कि ननकू तो बना बनाया ही विद्वान है । इसको तो बस अपने संस्कारों का उदय मात्र करना है । इस तरह से मनुष्य अपने पूर्व पुण्यों के आधार पर इस जन्म में तीक्ष्ण बुद्धि को प्राप्त करता है और उससे ही वह शास्त्रों का वैभव प्राप्त कर सकता है लेकिन यह सब पुण्य पर ही आधारित है । कोई कोई तीव्र बुद्धि का होते हुए भी विद्वान् नहीं बन पाता लेकिन कोई साधारण बुद्धि का होकर भी विद्वत...

।। मौनं मे रोचते।। संस्कृत कविता ।। हिमांशु गौड़।।

प्रायो हि मौनं बहु रोचते मे दिनानि तान्येव निदर्शकानि । यदाsप्यहं वा विपिनेsवसं श्रीभृच्छ्रौतकातृप्तमना: सदर्थिन् ।।

तुम भी इस गाथा में।। हिन्दी कविता।। हिमांशु गौड।।

तुम भी  इस गाथा में अपना नाम लिखा लो अंधेरे के प्रेतों से अपनी ताल मिला लो रात कोे जंगलों में घूमा करो मंत्रों से अपने गले के ताबीजों को चूमा करो स्वामी अभयानंद तुम्हें प्र...

।। चल नरवरम् ।। हिन्दी कविता।। हिमांशु गौड़।।

आवाज देती कौमुदी , उच्चै: पुकारत शेखरम् मंजूषा तेरी है रखी पढ़नी भी है बाकी बची मत रह गृहं, मत रह गृहम् चल नरवरं चल नरवरम् ।।१।। यत् पुण्यदं गंगाजलम् च्छायास्वपि प्रेतभ्रम...

।। आश्रम के बच्चे ।। हिन्दी कविता ।। हिमांशु गौड़

रहते थे जब आश्रम में तब तुम कितना पढ़ते थे , बात-बात पर बच्चों से रोजाना ही लड़ते थे । मेरी धोती मेरी लुटिया, कर्मा ने ही चुराई है , लौटा दो मुझको इस में तुम्हारी भलाई है । कर्मा गुस्सा होकर बोला झूठा दोष लगाते हो, मेरे पात्र चुरा कर के मुझ पर ही रौब जमाते हो । दोनों में हो चली लड़ाई सीनातानी हो निकली , एक दूसरे की चुटिया की, खींचातानी हो निकली । तब तक आश्रम के स्वामी जी , आ गए उनके पास , बोले तुमने कर डाला है इस आश्रम का नाश । चुटिया धारी गुस्सा होकर बोला स्वामी सुनो जरा , मेरे गुस्से का कारण भी अपने मन में गुनों जरा । ये जो कर्मा खड़ा सामने , घूंसे लात चलाता है , सब बच्चों के कपड़े बर्तन ये ही रोज चुराता है । स्वामीजी बोले कर्मा से तुम भी बात बताओ , दोनों अपना चलकर के बक्सा चेक कराओ । धोती लुटिया नहीं मिली तब खुश हो गया कर्मा , लेकिन पुस्तक एक मिली जिस पर नाम लिखा था धर्मा । इसका मतलब धर्मा की पुस्तक उसने चुराई थी , धर्मा भी था खड़ा सामने जिसकी कर्मा से लड़ाई थी । लेकिन कर्मा अपने पक्ष में बोला एक बात , एक बार धर्मा ने म...

गुरु का लंगड़ : हिन्दी कविता, हिमांशु गौड

।।।।गुरु का लंगड़।।। ******** विजया छानें नित्य प्रति, त्रिपुंड्र लगाकर रहते हैं , गंगाजल पीते हैं जमके , हर-हर करके रहते हैं, उच्च-क्वालिटी बात करें ये, बातें नहीं बतंगड़ हैं हर हर महादेव कर देते , ये ही तो गुरु का लंगड़ है।।1।। आचार्यों सी शैली इनकी , जैसे आचार्य दिवाकर की, महाभाष्य के सूत्र खोल दें, मानों रश्मि सुधाकर की, परपक्षी को ना उठने दें, ऐसे धींग-धिमंगड़ हैं हर हर महादेव कर देते हैं , ये ही तो गुरु का लंगड़ है।।2।। दूध पिएं , सोएं जमकर , कुश्ती-व्यायाम, भी करते हैं , गंगा तैेरें, दुर्गापाठी , शैवाचार भी करते हैं , दैहिक हार्दिक शक्ति इनमें , पूरे मल्ल मलंगड़ हैं हर हर महादेव कर देते हैं, ये ही तो गुरु का लंगड़ है ।।3।। भूत प्रेत का वास यहां पर विचरण करते रात्रि में दीख जाएं ये कभी कभी तब भी ना डरते रात्रि में भूतों की क्या चले यहां तो, खुद ही भूत-भुतंगड़ हैं हर हर महादेव कर देते हैं, ये ही तो गुरु का लंगड़ है ।।4।। तिमि मत्स्य को सुना किसी ने और सुना तिमिंगल को तिमिंगिलों के गिल को सुनते देखा जंगल मंगल को वेदादिक से ...

हिमांशु गौड़ का संस्कृत गद्य काव्य

सोपि कश्चिदाकर्ष्टा नव्यप्रभातानामुड्डीयानिल उच्छलदपोभृदशेषहर्षवीक्ष्यक्षिकस्साक्षितां वरुणस्य ययौ नवनीलोल्लासिभासिस्वर्णरज्जुसज्जिनिमज्जिताम्ब्वम्ब...

दीपदान का महत्व : हिमांशु गौड

उसका जीवन सार्थक उसका जन्म महान् कार्तिक में हरिसक्त हो करे दीप का दान   करे दीप का दान, हरि की कथा सुनावे, श्रद्धा से फल फूल चढ़ा, पूजा करवावे।। अश्वमेध का काम क्या , तीर्थों में क्यों जाय सब तीर्थों का फल यहीं , दीपदान से पाय इस धरती पर है नहीं , पाप कोई अवशिष्ट दीपदान से जो नहीं , हो सकता हो नष्ट।। अंधकार से पूर्ण हो जो मंदिर एकांत , दीपदान उसमें करो, होओ मत विभ्रान्त।। विष्णुधाम में जो कोई करता दीपक दान, गरुडध्वज के लोक को, जावे चढ़ा विमान।। भीड़ भड़क्के में नहीं होती कोई तपस्या , शोर शराबे से सदा , बढ़ती बहुत समस्या ।। अतः शांत मन से सदा करो श्रीश का ध्यान , पुण्य-नदी या मंदिरों में, करो प्रदीप प्रदान।।

एक दिन : हिन्दी कविता : हिमांशु गौड

एक दिन मेरे भी बहुत से चेले होंगे चारों और खुशियों के मेले होंगे ऐसा सोचकर वह , शास्त्रों को पढ़ता रहा प्रतिदिन विद्वत्ता की ऊंचाइयों पर चढता रहा शुक्ल यजुर्वेद को उसने कं...

पंचगृहाणि क्रीत्त्वा - संस्कृत श्लोक : हिमांशु गौड

क्रीत्वा पंचगृहाणि यश्च नगरे सम्पत्तिभिश्शोभते धृत्वा कोटिशतं च रूप्यकमहो नैकेषु कोशेष्वपि। वाणिज्यं हि विदेशमार्गशरणं यो वायुयानैरपि कुर्यात्सोsत्र जनो समस्त...

नरवर-मंगलम् - हिमांशु गौड

यन्मङ्गलन्नरवरे च विलोक्यतेऽद्य यच्छास्त्रचर्यमपि विप्रगणैश्च चर्यम्। यत्सौरभं सुमनसामनुभूयते वा बाबागुरोस्सकलमेव हि तत्प्रभावात्।।1।। -आज जो कुछ भी नरवर में मङ्गल दिखाई दे रहा है,या जो ब्राह्मणों की जो शास्त्रचर्या उनके द्वारा आचरणीय है, तद्गत जो माङ्गल्य है, और जो पुष्पों की सुगन्धि यहां अनुभूत की जाती है, वह सब श्रीबाबागुरूजी के प्रभाव से ही है।। भो भो बुधाः क्षणमिमम्परितश्शृणुध्वं यूयन्धनेषु परिसक्ततया विनिन्द्याः। लोभैकपातितधियोऽपि च शास्त्रपाठै- र्नैवङ्कदापि सुगतिम्परिलब्धुमर्हाः।।2।। -अरे विद्वानों क्षण भर को इस जन की भी बात सुनों,तुम धन की सब ओर से आसक्ति में पडे रहनें के कारण ही निन्दनीय हो। सांसारिक लोभों में गिराई गयी है बुद्धि जिसकी,ऐसे होकर तुम शास्त्र-पाठों के द्वारा भी सद्गति प्राप्त करनें के योग्य नहीं हो।।2।। चेन्निर्धनत्वपरिपीडितसज्जनाना- मापद्विनश्यथ न रे पदमानसक्ताः। वाक्ष्वेव वस्सकलशास्त्रगलज्जलानि कर्मस्वहो न दधथ स्मरपाशबद्धाः।।3।। -यदि तुम दारिद्र्य से परिपीडित सज्जनों की आपत्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार नष्ट नहीं करते हो और सदा अपने...

कैसी सर्दी ? हिन्दी कविता - हिमांशु गौड

अलाव नहीं चौराहों पर फिर कैसी सर्दी दिल में कोई लगाव नहीं है , कैसी सर्दी उपन्यास पढ़ते पढ़ते जब चाय ना मिले नोचो अपने बाल कहो फिर कैसी सर्दी। मीठी मीठी धूप ना मिले खेतों में...

हिन्दी कविता , हिमांशु गौड, गांवों में फिर रंग सजा दो

गांवों में फिर रंग सजा दो लोगों को सम्मान सिखा दो धरती की आभा का इक संपत्ति-प्रतिमान दिखा दो गंगा जी की लहरों में भक्ति और विज्ञान दिखा दो नृत्य शास्त्र की परंपरा का खुश हो...

तन्त्र जगत् : हिमांशु गौड

  ☠☠☠☠तन्त्र-जगत् ☠☠☠☠ ----------मैं उन जंगलों में आगे बढ़ा जा रहा था!! मुझे ताबीज बनानें के लिए जिस पौधे की तलाश थी, वह उन्हीं जंगलों में मिल सकता था ! खैर , काफी मशक्कत के बाद भी वह पौधा मुझे नहीं मिला। अगले दिन उसे ढूंढने का विचार बनाकर मैं अपने घर की तरफ लौटने लगा। लेकिन तभी मुझे लगा कि मेरे पीछे कोई चल रहा है !! मैंने एक बार पीछे मुड़कर देखा लेकिन कोई नहीं था मुझे लगा शायद मेरा भ्रम है !! फिर मैं सामान्य गति से चलने लगा लेकिन मैं महसूस कर रहा था कि कोई अदृश्य शक्ति है , कि जो मेरे आस-पास है!! जो दिन रात तंत्र शक्तियों के पहरे में रहते हैं, वो आसानी से इन ताकतों को पहचान जाते हैं !! वह बार-बार अपनी छाया दिखा कर मुझे डराना चाहता था!! वह ...जो उस शाम के हल्के उजाले में मुझे साफ साफ महसूस हो रहा था... वह शख्स,मेरे पीछे घूमते ही धुवें में तब्दील हो गया !!! मैं समझ नहीं पा रहा था कि यह किस तांत्रिक की भेजी हुई शक्ति है ??या यह कोई  प्रेतात्मा है जो मेरे पीछे लगी हुई है! क्योंकि पिछले कई दिनों से कुछ परछाइयां मेरा पीछा कर रही थी कभी सपने में तो कभी अपन...